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उत्तराखंड

राजाजी और कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के तहत गिद्धों की चार प्रजातियों पर होगा अध्ययन

  • 31 Jul 2023
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

29 जुलाई, 2023 को उत्तराखंड वन विभाग के वाइल्ड लाइफ वार्डन चीफ डॉ. समीर सिन्हा ने बताया कि प्रदेश में पहली बार राजाजी और कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के तहत गिद्धों की चार प्रजाति के दो-दो पक्षियों पर सैटेलाइट टैग लगाकर अध्ययन किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • वाइल्ड लाइफ वार्डन चीफ ने बताया कि शिकारी श्रेणी का यह पक्षी विलुप्त होने की कगार पर है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने इन्हें विलुप्तप्राय पक्षी की श्रेणी में रखा है।
  • राजाजी और कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के तहत किये जाने वाले अध्ययन के लिये पक्षियों पर टैग लगाने के लिये वन विभाग ने शासन से अनुमति मांगी है।
  • विदित है कि पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्धों की संख्या उत्तराखंड में कितनी है, इसका ठीक-ठीक आँकड़ा किसी के पास नहीं है।
  • वन विभाग की सांख्यिकी बुक में गिद्धों की संख्या का वर्ष 2005 का डाटा दर्शाया गया है। इसके अनुसार संरक्षित क्षेत्रों में गिद्धों की संख्या 1272 और संरक्षित क्षेत्रों के बाहर 3794 कुल 5066 है।
  • इसके बाद से यह डाटा अपडेट नहीं किया गया है। अब वन विभाग ने एक बार फिर से गिद्धों की दुनिया में झाँकने का बीड़ा उठाया है। इसके लिये डब्ल्यूडब्लयूएफ इंडिया के सहयोग से गिद्धों की चार प्रजातियों के दो-दो पक्षियों पर सैटेलाइट टैग लगाकर अध्ययन किया जाएगा।
  • यह अध्ययन गढ़वाल में राजाजी टाइगर रिज़र्व और कुमाऊँ में कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के तहत किया जाएगा। इस अध्ययन में गिद्धों के रहवास, प्रवास, उनके रास्ते, रहन-सहन आदि के बारे में जानकारियाँ जुटाई जाएंगी।
  • गिद्ध की इन प्रजातियों पर होगा अध्ययन:
    • लाल सिर गिद्ध (रेड हेडेड वल्चर)
    • सफेद पूँछ वाला गिद्ध (ह्वाइट रम्प्ड वल्चर)
    • सफेद गिद्ध (इजिप्सिन वल्चर)
    • प्लास फिश
  • राजाजी टाइगर रिज़र्व के निदेशक और इस प्रोजेक्ट के नोडल अधिकारी डॉ. साकेत बडोला ने बताया कि यह चारों शिकारी प्रजाति के पक्षी बेहद दुर्लभ श्रेणी के हैं, लेकिन समय-समय पर उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ के विभिन्न क्षेत्रों में इनकी उपस्थिति पाई गई है। इनके संरक्षण को लेकर वन विभाग संजीदा है। इसी के तहत इन पर वृहद अध्ययन किया जाएगा। यह प्रोजेक्ट अगले तीन साल तक चलेगा।
  • यह चारों शिकारी पक्षी शेड्यूल वन प्रजाति के हैं। वन्यजीव अधिनियम के तहत ऐसे मामलों में विशेष प्रयोजन के लिये अनुज्ञ पत्र का अनुदान की व्यवस्था है। ऐसे मामलों में शिक्षा, शोध, अनुसंधान इत्यादि के लिये राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है।

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