28वें निमाड़ उत्सव का शुभारंभ | 20 Nov 2021
चर्चा में क्यों?
19 नवंबर, 2021 को संस्कृति, पर्यटन और अध्यात्म मंत्री ऊषा ठाकुर ने महेश्वर में नर्मदा नदी के तट पर कार्तिक पूर्णिमा की चांदनी में 28वें निमाड़ उत्सव का शुभारंभ किया। यह उत्सव 21 नवंबर तक आयोजित किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- इसके साथ ही जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा प्रकाशित चौमासा पत्रिका के 116वें अंक एवं हैंडलूम वॉक के लिये बनाए गए रूट का भी विमोचन किया गया।
- इस अवसर पर मंत्री ऊषा ठाकुर ने कहा कि शीघ्र ही प्रदेश में श्री रामचरित मानस पर आधारित एक अनोखी और सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। इसके चार विद्यार्थी वर्ग के विजेताओं और 4 सामान्य जन-मानस की श्रेणी के विजेताओं को अयोध्या के हवाई दर्शन कराए जाएंगे।
- उल्लेखनीय है कि निमाड़ उत्सव का आयोजन मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग के अंतर्गत जनजाति लोक कला एवं बोली विकास अकादमी व ज़िला पुरातत्त्व, पर्यटन एवं संस्कृति परिषद खरगौन द्वारा प्रतिवर्ष जनजातीय लोक एवं पारंपरिक कलाओं में उत्कृष्टता और श्रेष्ठ उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिये किया जाता है।
- इस निमाड़ उत्सव में पहली बार तीन नवीन खेल विधाओं- मलखंब, कयाकिंग और मार्सल आर्ट के डेमो को शामिल किया गया है।
- इस उत्सव के दौरान संस्कृति विभाग द्वारा वर्ष 2017, 2018, 2019 एवं 2020 के राष्ट्रीय तुलसी सम्मान और 2019 एवं 2020 के राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान प्रदान किये गए।
- वर्ष 2017 का राष्ट्रीय तुलसी सम्मान जयपुर के सुप्रतिष्ठित चित्रकार कैलाश चंद शर्मा को, वर्ष 2018 का सम्मान राजनांदगांव के सुप्रतिष्ठित बाँसुरी वादक विक्रम यादव को, वर्ष 2019 का सम्मान रायपुर के ख्यात कबीर गायक डॉ. भारती बंधु को तथा वर्ष 2020 का सम्मान प्रतिष्ठित जनजातीय कलाकार तिलकराम पेंद्राम को प्रदान किया गया।
- वर्ष 2019 का राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान मंडला की जनजातीय कलाकार शांति बाई मरावी को और वर्ष 2020 का सम्मान लखनऊ की अवधी, भोजपुरी एवं बुंदेलखंडी शैली की सुविख्यात लोकगायिका मालिनी अवस्थी को प्रदान किया गया।
- राष्ट्रीय तुलसी एवं देवी अहिल्या सम्मान में सम्मानित होने वाले कलाकारों को 2 लाख रुपए की सम्मान राशि, सम्मान पट्टिका एवं शॉल-श्रीफल प्रदान किये गए।
- ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय तुलसी सम्मान की स्थापना वर्ष 1983 में की गई थी। राष्ट्रीय तुलसी सम्मान तीन वर्ष में दो बार प्रदर्शनकारी कलाओं और एक बार रूपंकर कलाओं के लिये दिया जाता है। जनजातीय, लोक एवं पारंपरिक कलाओं के क्षेत्र में महिला कलाकार को सम्मानित करने के लिये राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान की स्थापना वर्ष 1996 में की गई थी।