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उत्तर प्रदेश

कालिंजर दुर्ग में मिली दसवीं शताब्दी की मूर्तियाँ

  • 24 Jan 2023
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

23 जनवरी, 2023 को उत्तर प्रदेश सामाजिक संस्था कालिंजर शोध संस्थान के निदेशक अरविंद छिरौलिया ने बताया कि राज्य के बांदा ज़िले में ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग के कोटि तीर्थ सरोवर की दीवार से शिवलिंग, गणेश, भगवान विष्णु, माँ लक्ष्मी समेत अनेक देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ मलबे से निकली हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • अरविंद छिरौलिया ने बताया कि कालिंजर दुर्ग में कई छोटे-बड़े सरोवर और तालाब हैं। उन्हीं में से एक कोटि तीर्थ सरोवर है, जहाँ मूर्तियाँ व पत्थरों पर बनीं कलाकृतियाँ मिली हैं, जो नवीं और दसवीं शताब्दी की हैं।
  • उन्होंने बताया कि कुछ पत्थरों पर देवी-देवताओं की नक्काशी है। इसमें भगवान विष्णु, गणेश, लक्ष्मी जी, पार्वती जी की प्रसन्न मुद्रा वाली भी मूर्तियाँ हैं। शिवलिंग को छोड़कर अधिकतर मूर्तियाँ खंडित हैं।
  • कालिंजर दुर्ग के इतिहास के जानकार समाजसेवी विवेक शुक्ला ने बताया कि 1986 में दुर्ग तक जाने के लिये रोड बनाई जा रही थी। तब भी खोदाई के दौरान इसी तरह से मूर्तियाँ निकली थीं। उन्हें पुरातत्त्व विभाग ने संरक्षित कर राजा अमान सिंह महल में रखवा दिया था।
  • दुर्ग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि तब 282 केएफ नंबर से 305 तक की मूर्तियाँ और तोप के गोले निकले थे। उनको पुरातत्त्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया था। इसके अलावा 1960 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने कालिंजर दुर्ग को अपने संरक्षण में लिया था।
  • ज्ञातव्य है कि कालिंजर काफी प्राचीन दुर्ग है, जहाँ गुप्त काल से लेकर बुंदेलों तक का शासन रहा है। यहाँ पर पूर्व में भी निर्माण कार्य के दौरान इस तरह की मूर्तियाँ मिलती रही हैं।
  • विदित है कि तीर्थ सरोवर कालिंजर दुर्ग का सबसे सुंदर और पौराणिक स्थल है। पूरा दुर्ग भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अधीन है। सरोवर की दीवार से मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ सहेजकर इसका निर्माण दोबारा कराया जा रहा है। सरोवर के चारों तरफ की प्राचीन दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ व कलाकृतियाँ हैं।
  • कालिंजर इतिहास से जुड़े अरविंद छिरौलिहा ने बताया कि भारत पर राज करने वाला छठवाँ शासक औरंगजेब आलमगीर के नाम से जाना जाता था। 15वीं और 16वीं शताब्दी के मध्य उसका शासन रहा, इसे मूर्ति भंजक कहा जाता था। वह हिन्दू धर्म की मूर्तियों को खंडित करवा देते थे।
  • वर्ष 1812 से 1947 के बीच ब्रिटिश शासन के समय पर हिन्दू धर्म से जुड़ी स्मृतियों को भी नष्ट करने का काम किया जाता था। कोर्ट तीर्थ सरोवर काफी प्राचीन है, लेकिन इसके चारों तरफ की दीवारें अंग्रेजों द्वारा बनाई गईं थीं। तब दीवार के पीछे यह मूर्तियाँ भी दबा दी गईं थीं, जिससे कि सनातन धर्म और हिन्दू धर्म जागृत न हो सके।
  • कालिंजर दुर्ग नीलकंठ मंदिर के राजपुरोहित पंडित शंकर प्रताप मिश्रा ने बताया कि कोटि तीर्थ सरोवर में सभी तीर्थों का जल मिला है। ऐसे में इस सरोवर के जल से यहीं पर विराजमान भगवान नीलकंठ का जलाभिषेक करने से एक हज़ार गायों के दान का पुण्य मिलता है। खास तौर से कार्तिक पूर्णिमा पर जलाभिषेक अधिक फलदायी माना जाता है।
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