राजस्थान
108 कुंडीय रुद्र महामृत्युंजय महायज्ञ
- 08 Apr 2025
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चर्चा में क्यों?
केंद्रीय गृह मंत्री ने राजस्थान के कोटपुतली में 108 कुंडीय रुद्र महामृत्युंजय महायज्ञ की महापूर्णाहुति एवं सनातन सम्मेलन में भाग लिया।
मुख्य बिंदु
- महायज्ञ के बारे में:
- बाबा नस्तीनाथ द्वारा एक साल तक चलाए गए महायज्ञ का मुख्य उद्देश्य समाज के हर वर्ग को जोड़ना और समाज में धार्मिक जागरूकता फैलाना था।
- आध्यात्मिक और जीवनदृष्टि के सिद्धांत:
- केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने बाबा नस्तीनाथ द्वारा अपनाए गए चार सिद्धांतों—सत्य, तपस्या, वैराग्य और सेवा की सराहना की। इन सिद्धांतों को जीवन का आधार बनाने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
- ये किसी व्यक्ति के आत्मा की शुद्धि, अपने जीवन को धर्ममय बनाने और संसार की सेवा करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण सिद्धांत हैं।
- इसके अलावा, बाबा नस्तीनाथ द्वारा प्रकृति की सेवा और पशु-पक्षियों की देखभाल पर भी ज़ोर दिया गया।
- नाथ संप्रदाय का महत्त्व:
- केंद्रीय गृह मंत्री ने सनातन धर्म को सशक्त करने में नाथ संप्रदाय के योगदान का उल्लेख करते हुए बताया कि महाप्रभु आदिनाथ से लेकर 9 गुरुओं और उनके बाद आने वाले ऊर्जा के वाहकों ने सनातन धर्म को शक्ति दी।
- उन्होंने यह भी कहा कि नाथ संप्रदाय में धूनि को आत्मज्ञान प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम माना गया है, जो पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु के तत्त्वों को मिलाकर संतुलन और ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया है।
नाथ संप्रदाय
- नाथ संप्रदाय एक प्रमुख हिंदू धार्मिक पंथ है, जो मध्यकाल में उत्पन्न हुआ और जिसमें शैव, बौद्ध तथा योग की परंपराओं का अद्वितीय समन्वय देखने को मिलता है।
- यह पंथ विशेष रूप से हठयोग की साधना पद्धति पर आधारित है, जो आत्मा के उच्चतम अनुभव और शारीरिक नियंत्रण की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
- इस पंथ के प्रवर्तक मत्स्येंद्रनाथ माने जाते हैं, जो 9वीं सदी के एक महान भारतीय योगी और ऋषि थे।
- मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ पंथ की नींव रखी और इसे शैव परंपरा के भीतर एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिलवाया।
- उनके योगदान के कारण ही नाथ पंथ को व्यापक पहचान मिली और यह भारत और नेपाल में एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक परंपरा बन गया।
- इसके अतिरिक्त, मत्स्येंद्रनाथ को तिब्बती बौद्ध धर्म में भी एक महासिद्ध के रूप में सम्मानित किया गया।
- गोरखनाथ, जो 10वीं सदी के एक महान गुरु थे, मत्स्येंद्रनाथ के शिष्य थे।
- गोरखनाथ ने नाथ पंथ को और अधिक विकसित किया और इसे भारत के विभिन्न हिस्सों में लोकप्रिय बनाया। गोरखनाथ को हठयोग का संस्थापक भी माना जाता है।