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Sambhav-2025

  • 09 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 7: वैदिक ग्रंथ केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि भारतीय चिंतन के प्रारंभिक दस्तावेज़ हैं, जो उस समय के सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक आदर्शों को दर्शाते हैं। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • वैदिक ग्रंथों और उनके ऐतिहासिक महत्त्व का संक्षिप्त अवलोकन कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि वैदिक ग्रंथ अपने समय के सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक आदर्शों को किस प्रकार प्रतिबिंबित करते हैं।
    • उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय: 

    1500-500 ईसा पूर्व के बीच रचित वैदिक ग्रंथ न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि जीवन के विविध पहलुओं को समाहित करते हुए भारतीय विचारों की सबसे प्रारंभिक अभिव्यक्तियाँ भी हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद से मिलकर बने ये ग्रंथ अपने समय के सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक आदर्शों के बारे में जानकारी देते हैं।

    मुख्य भाग: 

    वेदों में प्रतिबिंबित सामाजिक आदर्श: 

    • वर्ण व्यवस्था: ऋग्वेद में समाज को चार वर्णों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - में विभाजित किया गया है, जो कार्य और कर्त्तव्य के आधार पर है, न कि आनुवंशिकता के आधार पर।
    • पशुपालन और कृषि जीवन: ऋग्वेद की ऋचाएँ पशुपालन और कृषि पर निर्भर समाज का वर्णन करती हैं, जो उस युग के आर्थिक आधार पर प्रकाश डालती हैं।
    • पारिवारिक संरचना: वैदिक ग्रंथों में परिवार को एक इकाई के रूप में महत्त्व दिया गया है, जिसमें गृहस्थ चरण को आश्रम प्रणाली में केंद्रीय माना गया है।
      • ऋग्वैदिक स्तोत्र पुरुष सूक्त में आदर्श सामाजिक संगठन का चित्रण किया गया है।

    नैतिक एवं आचारिक आदर्श: 

    • धर्म और कर्म: वेद धार्मिकता (धर्म) और कार्यों के नैतिक परिणामों (कर्म) की अवधारणाओं का परिचय देते हैं तथा भारतीय नैतिक चिंतन की नींव रखते हैं।
    • सत्य और धार्मिकता: सत्य और धर्म को व्यक्तिगत एवं सामाजिक सद्भाव के लिये आवश्यक गुणों के रूप में महत्त्व दिया जाता है।
    • यज्ञ: नैतिक कर्त्तव्यों को यज्ञ जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से व्यक्त किया जाता था, जो निस्वार्थता और सामूहिक कल्याण का प्रतीक था।
      • यजुर्वेद में त्याग और सांप्रदायिक सद्भाव के सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की गई है।

    आध्यात्मिक आदर्श और दर्शन

    • तत्त्वमीमांसा: उपनिषद, जो वैदिक साहित्य का परवर्ती भाग है, ब्रह्म (सार्वभौमिक आत्मा) और आत्मा (व्यक्तिगत आत्मा) जैसी गहन दार्शनिक अवधारणाओं पर प्रकाश डालता है।
    • विविधता में एकता: वेद सार्वभौमिक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं तथा विभिन्न प्रकार की पूजा और आध्यात्मिक प्रथाओं को शामिल करते हैं।
    • ज्ञान की खोज: ज्ञान (विद्या) की खोज पर ज़ोर वैदिक समाज की बौद्धिक और आध्यात्मिक आकांक्षाओं को उजागर करता है।
      • छांदोग्य उपनिषद आत्मा और ब्रह्म की एकता की चर्चा करता है, जो आत्म-साक्षात्कार की शाश्वत खोज का प्रतीक है।

    धर्म से परे प्रासंगिकता

    • शासन: अथर्ववेद में वर्णित राजधर्म के सिद्धांतों ने प्रारंभिक शासकों को नैतिक प्रशासन में मार्गदर्शन दिया।
    • विज्ञान: गणित और खगोल विज्ञान में वैदिक योगदान, जैसे कि चंद्र मास की गणना, उन्नत बौद्धिक उपलब्धियों को दर्शाते हैं।
    • कला और साहित्य: भजनों और मंत्रों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत और साहित्य की नींव रखी।

    निष्कर्ष

    वैदिक ग्रंथ केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं; वे भारतीय सभ्यता के बौद्धिक और सांस्कृतिक आधार हैं। ये सामाजिक संगठन, नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक ज्ञान को समाहित करते हैं, जिससे वे कालातीत दस्तावेज बन जाते हैं जो लगातार प्रेरणा देते हैं। अपने बहुआयामी योगदान के माध्यम से, वेद प्राचीन भारतीय समाज के समग्र दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

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