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Sambhav-2025

  • 07 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 59: लोक लेखा समिति संसद की एक प्रमुख वित्तीय निगरानी संस्था है, जो यह सुनिश्चित करती है कि कार्यपालिका का व्यय विधायी प्रावधानों और संसदीय स्वीकृति के अनुरूप हो। इसकी भूमिका और प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • लोक लेखा समिति (PAC) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • वित्तीय निगरानी संस्था के रूप में PAC के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • सीमाओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये सुधार सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय: 

    लोक लेखा समिति (PAC) प्रमुख संसदीय समितियों में से एक है, जो एक वित्तीय निगरानी संस्था के रूप में कार्य करती है और यह सुनिश्चित करती है कि कार्यपालिका का व्यय विधायी उद्देश्यों के अनुरूप हो। भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत वर्ष 1921 में स्थापित, PAC नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्टों की जाँच करती है तथा सार्वजनिक व्यय में जवाबदेही सुनिश्चित करती है। 

    मुख्य भाग: 

    वित्तीय निगरानी संस्था के रूप में PAC का महत्त्व: 

    • CAG रिपोर्ट की जाँच: PAC इस बात की जाँच करती है कि क्या सार्वजनिक धन संसद द्वारा अनुमोदित उद्देश्यों के लिये खर्च किया गया है।
      • 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2010): PAC ने CAG की रिपोर्ट के आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितताओं की जाँच की और 1.76 लाख करोड़ रुपए के संभावित राजस्व नुकसान का खुलासा किया।
    • वित्तीय अनियमितताओं की रोकथाम: यह अनावश्यक व्यय, अनधिकृत खर्च और अपव्यय के मामलों की जाँच करता है।
      • राष्ट्रमंडल खेल घोटाला (2010): PAC ने धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार की जाँच की तथा खराब वित्तीय नियोजन पर प्रकाश डाला।
    • अनुपालन सुनिश्चित करना: यह सुनिश्चित करता है कि वित्तीय लेन-देन संसद द्वारा निर्धारित नियमों और विनियमों के अनुरूप हो।
      • कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला (2012): PAC ने गैर-पारदर्शी कोयला ब्लॉक आवंटन के कारण ₹1.86 लाख करोड़ के नुकसान को उजागर करने में मदद की।
    • कार्यपालिका को जवाबदेह बनाना: हालाँकि PAC के पास कार्यकारी अधिकार नहीं हैं, फिर भी यह अनियमितताओं को उजागर कर जनता का ध्यान आकर्षित करती है और सरकार को कार्रवाई के लिये बाध्य करती है।
      • 22 सदस्यों (लोकसभा से 15 और राज्यसभा से 7) वाली लोक लेखा समिति एक गैर -पक्षपाती निकाय के रूप में कार्य करती है क्योंकि इसका अध्यक्ष विपक्ष से होता है। 
      • इससे वित्तीय जाँच में निष्पक्षता और तटस्थता सुनिश्चित होती है।

    सीमाएँ और चुनौतियाँ:

    • प्रवर्तन शक्ति का अभाव: PAC केवल सिफारिशें कर सकती है; इसमें सुधारात्मक कार्रवाई लागू करने का अधिकार नहीं है।
    • सरकार की गैर-बाध्यकारी प्रतिक्रिया: कार्यपालिका PAC के सुझावों को लागू करने के लिये बाध्य नहीं है, जिसके कारण कार्रवाई में विलंब होता है या अपर्याप्त कार्रवाई होती है
    • सीमित समय और संसाधन: PAC बड़ी संख्या में CAG रिपोर्टों की जाँच करती है, लेकिन समय की कमी के कारण सभी मामलों की गहराई से जाँच नहीं हो पाती है।
    • राजनीतिक हस्तक्षेप: हालाँकि PAC को निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिये, लेकिन राजनीतिक मतभेद कभी-कभी इसकी प्रभावशीलता को बाधित कर सकते हैं।

    PAC को मज़बूत करने के उपाय:

    • PAC की सिफारिशों को बाध्यकारी बनाना: सरकार को एक निश्चित समय-सीमा के भीतर PAC की सिफारिशों पर प्रतिक्रिया देना आवश्यक होना चाहिये
    • पारदर्शिता बढ़ाना: जनता के लिये PAC रिपोर्ट की बेहतर उपलब्धता से जवाबदेही और पारदर्शिता को और अधिक सुनिश्चित किया जा सकता है।
    • अधिक तकनीकी सहायता प्रदान करना: PAC को अपनी जाँच बढ़ाने के लिये वित्तीय विशेषज्ञों, फोरेंसिक लेखा परीक्षकों और स्वतंत्र विश्लेषकों तक पहुँच होनी चाहिये।
    • अनुवर्ती तंत्र को मज़बूत करना: PAC की सिफारिशों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये एक समर्पित निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष

     जैसा कि पूर्व CAG विनोद राय ने कहा, "शासन की जटिलताओं के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये PAC जैसे जवाबदेही तंत्र को लगातार विकसित किया जाना चाहिये।" PAC को सशक्त बनाकर, भारत शासन में जनता का विश्वास बढ़ा सकता है, वित्तीय कुप्रबंधन पर अंकुश लगा सकता है और सार्वजनिक व्यय में पारदर्शिता को बढ़ावा दे सकता है।

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