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Sambhav-2025

  • 07 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 59: संसद की कार्यवाही की सुचारुता कार्यकारी कार्रवाई की प्रभावी निगरानी पर निर्भर करती है, जिसे सर्वोत्तम रूप से संसदीय समितियों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। उपयुक्त उदाहरणों सहित, इन समितियों की भूमिका और प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • संसदीय समितियों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • कार्यकारी कार्रवाई की निगरानी में संसदीय समितियों की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • ऐसी समितियों के कामकाज से जुड़े मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
    • संसदीय समितियों को मज़बूत बनाने के लिये सुधार का सुझाव दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय: 

    संसद के सुचारु संचालन के लिये कार्यकारी कार्रवाई की निगरानी के लिये एक प्रभावी तंत्र की आवश्यकता होती है, जिसे संसदीय समितियों के माध्यम से सबसे बेहतर तरीके से प्राप्त किया जा सकता है। ये समितियाँ एक लघु संसद के रूप में कार्य करती हैं, जिससे नीतियों, व्यय और प्रशासन की गहन समीक्षा संभव होती है, जो पूर्ण संसदीय बहस के दौरान अक्सर सीमित रह जाती है। 

    मुख्य भाग: 

    कार्यकारी कार्रवाई की निगरानी में संसदीय समितियों की भूमिका:

    • लोक लेखा समिति (PAC)
      • सरकारी व्यय पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के विवरणों की जाँच करना।
      • यह सुनिश्चित करता है कि संसद द्वारा आबंटित धनराशि का उपयोग कुशलतापूर्वक और वैधानिक रूप से किया जाए।
      • उदाहरण:
        • PAC ने 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2010 ), कोयला आवंटन घोटाला (2012) और राष्ट्रमंडल खेल घोटाला (2010) की जाँच की, जिसमें वित्तीय कुप्रबंधन उजागर हुआ।
        • लोक लेखा समिति (PAC) ने स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्षेत्रों में बजटीय आवंटन के अपर्याप्त उपयोग का भी मूल्यांकन किया है।
    • अनुमान समिति
      • दक्षता और आर्थिक प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये सरकारी नीतियों तथा व्यय की समीक्षा करता है।
      • PAC के विपरीत, यह भविष्य के बजट अनुमानों और नीति-निर्माण की जाँच करता है।
      • उदाहरण:
        • प्राक्कलन समिति ने मनरेगा जैसी ग्रामीण रोज़गार योजनाओं के लिये बजट आवंटन की जाँच की है तथा बेहतर निधि उपयोग की सिफारिश की है।
    • सार्वजनिक उपक्रम समिति (COPU)
      • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के प्रदर्शन की समीक्षा करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे कुशलतापूर्वक कार्य करें और वित्तीय रूप से व्यवहार्य बने रहें।
      • राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों में शासन और प्रबंधन के मुद्दों की जाँच करता है।
      • उदाहरण:
        • सार्वजनिक उपक्रम समिति (COPU) ने BSNL और MTNL के भारी घाटे की समीक्षा की तथा उनके पुनरुद्धार हेतु संरचनात्मक सुधारों की सिफारिश की।
        • इसने वर्ष 2021 में निजीकरण से पहले एयर इंडिया की वित्तीय स्थिति की भी समीक्षा की।
    •  विभाग-संबंधित स्थायी समितियाँ (DRSC)
      • 24 DRSC हैं, जिनमें से प्रत्येक रक्षा, वित्त और कृषि जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में विधेयकों, नीतियों एवं शासन संबंधी मुद्दों के मूल्यांकन के लिये ज़िम्मेदार है।
      • उदाहरण:
        • रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति (2021) ने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिये उच्च बजट आवंटन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
        • वर्ष 2022 में पर्यावरण एवं वन संबंधी स्थायी समिति ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के कार्यान्वयन की समीक्षा की और उत्सर्जन नियंत्रण के लिये सख्त उपायों की सिफारिश की।

    संसदीय समितियों के प्रभावी कामकाज में चुनौतियाँ:

    • बाध्यकारी प्राधिकार का अभाव
      • समिति की सिफारिशें कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं, जिससे वे सलाहकार प्रकृति की हैं।
      • उदाहरण:
        • 2G घोटाला (2010) और कोयला घोटाला (2012) पर PAC के निष्कर्ष महत्त्वपूर्ण थे, लेकिन कार्रवाई में विलंब के कारण उनका प्रभाव कम हो गया।
    • राजनीतिक प्रभाव और पक्षपात
      • सत्तारूढ़ पार्टी अक्सर समिति के निर्णयों पर हावी हो जाती है, जिससे तटस्थता प्रभावित होती है।
      • उदाहरण:
        • वर्ष 2020 में, सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति में राजनीतिक गतिरोध के कारण सोशल मीडिया विनियमन और डाटा गोपनीयता से संबंधित मुद्दों पर चर्चा में विलंब हुआ।
    • सीमित पारदर्शिता
      • भारतीय समिति की कार्यवाही जनता के लिये खुली नहीं है।
      • उदाहरण:
        • सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति (2021) ने पेगासस स्पाइवेयर मामले की आंतरिक  जाँच की, लेकिन कथित रूप से गवाही और निष्कर्षों को सार्वजनिक करने से रोक दिया।
    • समय की कमी और सीमित संसाधन
      • सांसद अनेक समितियों में कार्य करते हैं, जिसके कारण ध्यान बँटा रहता है।
      • विशेषज्ञ सलाहकारों और अनुसंधान समर्थन की कमी से सिफारिशें कमज़ोर हो जाती हैं।

    संसदीय समितियों को मज़बूत करने के लिये सुधार: 

    • अनुशंसाओं को बाध्यकारी बनाएँ
      • ऐसी प्रणाली स्थापित करनी चाहिये जहाँ प्रमुख समिति की सिफारिशों के लिये औपचारिक सरकारी प्रतिक्रिया की आवश्यकता हो।
      • उदाहरण:
        • ब्रिटेन में सरकार को लोक लेखा समिति की रिपोर्टों पर दो महीने के अंदर जवाब देना आवश्यक है।
    • पारदर्शिता बढ़ाएँ
      • संवेदनशील मुद्दों को छोड़कर समिति की बैठकें जनता और मीडिया के लिये खुली रहनी चाहिये।
      • उदाहरण:
        • संयुक्त राज्य अमेरिका में, काॅन्ग्रेस समितियाँ चुनाव में हस्तक्षेप में फेसबुक की भूमिका जैसे प्रमुख नीतिगत मुद्दों पर सार्वजनिक सुनवाई करती हैं।
    • अधिक शोध और विशेषज्ञ सहायता प्रदान करें
      • समितियों को विस्तृत विश्लेषण में सहायता देने के लिये संसदीय अनुसंधान टीमों को मज़बूत बनाना।
      • उदाहरण:
        • कनाडा का संसदीय बजट कार्यालय (PBO) निष्पक्ष वित्तीय विश्लेषण प्रदान करता है, जिसका भारत अनुकरण कर सकता है।
    • द्वि-दलीय कार्यप्रणाली सुनिश्चित करना
      • समिति की चर्चाओं में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच सहयोग बढ़ाना चाहिये।
      • उदाहरण:
        • ब्रिटेन में, चयन समितियों की अध्यक्षता विपक्षी सदस्यों द्वारा की जाती है, जिससे तटस्थता सुनिश्चित होती है।

    निष्कर्ष

    विद्वानों ने सही कहा है कि ये समितियाँ संसद की "आँख और कान" के रूप में काम करती हैं, जो शासन में जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करती हैं। बाध्यकारी सिफारिशों, बढ़ी हुई सार्वजनिक जाँच और बेहतर शोध सहायता के माध्यम से समितियों को मज़बूत बनाना उनकी प्रभावशीलता को काफी हद तक बढ़ा सकता है। 

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