दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- जेट स्ट्रीम की अवधारणा को संक्षेप में समझाइये।
- भारतीय मानसून पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- जेट धाराओं में विक्षोभ के परिणामों का वर्णन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष निकालिये।
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परिचय:
जेट स्ट्रीम एक उच्च-ऊँचाई वाली, क्षैतिज दिशा में बहने वाली वायु है, जो मुख्य रूप से क्षोभमंडल की ऊपरी परतों में स्थित होती है और यह सामान्यत: पश्चिम से पूर्व की दिशा में बहती है, जिसकी ऊँचाई 20,000 - 50,000 फीट के बीच होती है। वे पृथ्वी के घूमने (कोरिओलिस प्रभाव) और भूमध्य रेखा एवं ध्रुवों के बीच तापमान के अंतर के कारण पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं। ये वायु धाराएँ भारतीय मानसून सहित वैश्विक मौसम प्रतिरूप को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं।
मुख्य भाग:
भारत में मानसून गतिशीलता को प्रभावित करने वाली दो प्राथमिक जेट धाराएँ:
- उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट (TEJ): भारत में आने वाला दक्षिण-पश्चिमी मानसून उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम से संबंधित है। यह वायु 8°N से 35°N के बीच बहती है।
- यह जेट स्ट्रीम गर्मियों में हिंद महासागर के ऊपर उभरती है और भारतीय उपमहाद्वीप पर निम्न दबाव प्रणालियों तथा आद्रता संचलन को बढ़ाकर दक्षिण-पश्चिम मानसून को मज़बूत बनाती है।
- ये जेट धाराएँ चक्रवातों और अवदाबों के निर्माण तथा उनके प्रक्षेप मार्ग को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं, जो भारत में मानसून वर्षा के वितरण में योगदान करती हैं।
- उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम (STJ): उत्तर-पूर्वी मानसून (शीतकालीन मानसून) उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम से संबंधित है। यह दोनों गोलार्द्धों में 20° और 35° अक्षांशों के बीच बहती है।
- शीत ऋतु के दौरान, STJ हिमालय की दक्षिणी ढलानों के साथ प्रवाहित होती है, जबकि गर्मियों में यह तेज़ी से उत्तर की ओर प्रवाहित होती है। जून की शुरुआत में यह हिमालय के किनारे बहती है और गर्मियों के अंत (जुलाई-अगस्त) में तिब्बती पठार के उत्तरी किनारे पर प्रवाहित होती है।
- शीतकाल में भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करने वाले पश्चिमी विक्षोभ पश्चिमी जेट स्ट्रीम द्वारा लाए जाते हैं।
- जेट स्ट्रीम की आवधिक गतिविधि अक्सर मानसून के आगमन और उसकी वापसी (STJ अपने स्थान पर लौटता है - हिमालय के दक्षिण में) का संकेत देती है।
- उपोष्णकटिबंधीय जेट का उत्तर की ओर बढ़ना भारत में मानसून के आगमन का पहला संकेत है।
जेट स्ट्रीम में विक्षोभ के परिणाम:
- विलंबित शुरुआत:
- STJ की धीमी या कमज़ोर उत्तर दिशा की ओर गति मानसून के आगमन में देरी कर सकती है।
- वर्ष 2019 में, STJ के उत्तर की ओर देर से स्थानांतरित होने के कारण केरल में मानसून की शुरुआत एक सप्ताह देरी से हुई, जिससे क्षेत्र में कृषि गतिविधियाँ प्रभावित हुईं।
- अनियमित वर्षा:
- TEJ या STJ की स्थिति में बदलाव से वर्षा का असमान वितरण हो सकता है, जिससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ आ सकती है तथा अन्य में सूखा पड़ सकता है।
- वर्ष 2013 के मानसून के दौरान, असामान्य जेट स्ट्रीम प्रतिरूप के कारण उत्तराखंड में अत्यधिक वर्षा और विनाशकारी बाढ़ आई, जबकि मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों में वर्षा की कमी देखी गई।
- मानसून की शिथिलता:
- जेट धाराओं में असामान्यताएँ मानसून में लंबे समय तक सूखा या "विराम" का कारण बन सकती हैं।
- वर्ष 2002 में, TEJ में व्यवधान के कारण मानसून में महत्त्वपूर्ण रुकावट आई, जिसके परिणामस्वरूप भारत में सबसे ज़्यादा सूखा पड़ा, जिसमें वर्षा में 19% की कमी देखी गई।
- चरम जलवायु:
- ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित जेट स्ट्रीम का विक्षोभ, तीव्र तूफानों या अत्यधिक सूखे जैसी बढ़ती चरम मौसमी घटनाओं से जुड़ी हुई है।
- वर्ष 2020 में, असामान्य जेट स्ट्रीम संचलन ने चक्रवात अम्फान को प्रभावित किया, जिससे यह एक सुपरसाइक्लोन में बदल गया, जिससे पूर्वी भारत और बांग्लादेश में व्यापक क्षति हुई।
निष्कर्ष:
जेट स्ट्रीम भारतीय मानसून की गतिशीलता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। प्राकृतिक परिवर्तनशीलता और जलवायु परिवर्तन दोनों से प्रभावित उनके संचलन विक्षोभ, उन्नत वायुमंडलीय निगरानी एवं पूर्वानुमान प्रणालियों की आवश्यकता को रेखांकित करती है। जेट स्ट्रीम प्रतिरूप की बेहतर समझ भारत में मानसून परिवर्तनशीलता के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती है।