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Sambhav-2025

  • 07 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस- 83: भारत में कृषि-जलवायु ज़ोनिंग क्यों महत्त्वपूर्ण है? यह कुशल संसाधन प्रबंधन और जलवायु-लचीली कृषि को बढ़ावा देने में कैसे सहायक हो सकता है? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय में, कृषि-जलवायु क्षेत्रीकरण और भारतीय कृषि में इसके महत्त्व को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
    • कुशल संसाधन उपयोग में कृषि-जलवायु ज़ोनिंग की भूमिका की व्याख्या कीजिये।
    • जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने में ACZ की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    कृषि-जलवायु ज़ोनिंग (ACZ) वैज्ञानिक कृषि नियोजन का मार्गदर्शन करने के लिये जलवायु, मृदा के प्रकार, स्थलाकृति और जल उपलब्धता के आधार पर भौगोलिक क्षेत्रों का वर्गीकरण है। योजना आयोग (1988) ने भारत को 15 कृषि-जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया, जबकि ICAR (1992) ने फसल चयन और संसाधन प्रबंधन को अनुकूलित करने के लिये इसे 127 कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया।

    मुख्य भाग:

    कुशल संसाधन उपयोग में कृषि-जलवायु ज़ोनिंग की भूमिका:

    • फसल उपयुक्तता अनुकूलन: जलवायु और मृदा की स्थिति के साथ फसल चयन को संरेखित करता है, इनपुट लागत को कम करता है एवं उत्पादकता बढ़ाता है।
      • उदाहरण: पंजाब और हरियाणा अनुकूल परिस्थितियों के कारण गेहूँ एवं चावल में विशेषज्ञ हैं, जबकि महाराष्ट्र गन्ना तथा कपास में उत्कृष्ट है।
    • कुशल जल प्रबंधन: जल संसाधनों के संरक्षण और अति-निष्कर्षण को रोकने के लिये क्षेत्र-विशिष्ट सिंचाई रणनीतियों को बढ़ावा देता है।
      • उदाहरण: शुष्क क्षेत्रों (राजस्थान, गुजरात) में ड्रिप सिंचाई से पानी की बर्बादी कम होती है।
    • मृदा स्वास्थ्य संरक्षण: मृदा स्थितियों के अनुकूल संतुलित उर्वरक उपयोग और जैविक कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करता है।
      • उदाहरण: कर्नाटक और केरल में लैटेराइट मृदा को टिकाऊ उत्पादकता के लिये जैविक संशोधन की आवश्यकता है।
    • इनपुट लागत में कमी: कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप कृषि पद्धतियों को ढालकर अत्यधिक उर्वरक, कीटनाशक और पानी के उपयोग को कम किया जाता है।
      • उदाहरण: सुंदरबन (पश्चिम बंगाल) में मृदा की लवणता से निपटने के लिये नमक-सहिष्णु चावल की किस्मों को बढ़ावा दिया जाता है।

    जलवायु-अनुकूल कृषि में कृषि-जलवायु ज़ोनिंग का योगदान:

    • सूखा एवं बाढ़ प्रबंधन: उपयुक्त फसल योजना और जलवायु अनुकूलन के लिये सूखा-प्रवण तथा बाढ़-प्रवण क्षेत्रों की पहचान करना।
      • उदाहरण: शुष्क भूमि क्षेत्रों (दक्कन पठार, बुंदेलखंड) में बाजरे को बढ़ावा देने से जल संकट के तहत खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
    • परिशुद्ध खेती और स्मार्ट कृषि: जलवायु-अनुकूल कृषि के लिये AI, IOT और रिमोट सेंसिंग को अपनाने में सुविधा प्रदान करती है।
      • उदाहरण: आंध्र प्रदेश की ई-कर्षक प्रणाली फसल विकल्पों को अनुकूलित करने के लिये डिजिटल उपकरणों का उपयोग करती है।
    • सतत् भूमि उपयोग योजना: क्षेत्र-विशिष्ट कृषि मॉडल को लागू करके भूमि क्षरण, मरुस्थलीकरण और मृदा क्षरण को रोका जाता है।
      • उदाहरण: पश्चिमी घाट और हिमालयी क्षेत्रों में कृषि वानिकी मृदा क्षरण तथा जैवविविधता हानि को रोकती है।
    • जलवायु-स्मार्ट फसल विविधीकरण: चरम मौसम की घटनाओं से होने वाले जोखिम को कम करने के लिये बहु-फसल, अंतर-फसल और जलवायु-अनुकूल किस्मों को प्रोत्साहित करता है।

    निष्कर्ष:

    वैज्ञानिक संसाधन प्रबंधन, सतत् कृषि और जलवायु अनुकूलन के लिये कृषि-जलवायु ज़ोनिंग आवश्यक है। फसल नियोजन को पारिस्थितिक कारकों के साथ जोड़कर, यह उत्पादकता, जल दक्षता और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाता है, जिससे भारत में दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

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