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13 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस:- 11 : दक्षिण भारत के इतिहास में 'महापाषाण काल' से क्या तात्पर्य है? इस अवधि के दौरान राज्य निर्माण और सभ्यता के विकास की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- दक्षिणी भारत के 'महापाषाण चरण' का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- मेगालिथिक चरण की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये, जिन्होंने राज्य निर्माण और सभ्यता के उत्थान में योगदान दिया।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
दक्षिण भारत के इतिहास में "महापाषाण काल" एक विशिष्ट पुरातात्त्विक और सांस्कृतिक काल (1000 ईसा पूर्व से 100 ईसा पूर्व) को संदर्भित करता है, जिसमें महापाषाणों के उपयोग की विशेषता थी, जो बड़े पत्थर या पत्थरों के समूह होते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न प्रयोजनों के लिये किया जाता था, जैसे कि दफन स्मारक, स्मारक एवं कभी-कभी बस्तियों के चिह्नक के रूप में।
मुख्य भाग:
मेगालिथिक चरण की प्रमुख विशेषताएँ जिन्होंने राज्य निर्माण और सभ्यता के उत्थान में योगदान दिया:
- मेगालिथिक दफन: इस चरण की सबसे प्रमुख विशेषता मेगालिथिक दफन की प्रथा है। लोगों ने मृतकों की कब्रों को चिह्नित करने के लिये बड़े पत्थरों का उपयोग करके विस्तृत दफन संरचनाओं का निर्माण किया।
- इन संरचनाओं में अक्सर पत्थर के घेरे, डोलमेन्स और केयर्न शामिल होते हैं।
- तकनीकी प्रगति: महापाषाण काल के दौरान लोहे के उपकरणों का उपयोग एक महत्त्वपूर्ण तकनीकी प्रगति के रूप में उभरकर सामने आया।
- लोहे के औजार कांस्य के औजारों की तुलना में अधिक प्रभावी थे और यह संभवतः कृषि उत्पादन में वृद्धि के कारण बने।
- स्थायी कृषि: कृषि एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि बनी रही। मेगालिथिक लोग स्थायी कृषि करते थे और साक्ष्य मिट्टी एवं ईंट की संरचनाओं वाले गाँवों तथा बस्तियों के अस्तित्व का संकेत देते हैं।
- वे धान और रागी की खेती करते थे तथा उनमें सामाजिक वर्ग भी थे।
- प्रमुखता का उदय: महापाषाण काल के दौरान, प्रमुखता या प्रमुखता जैसे समाज उभरने लगे। इन प्रमुखताओं की विशेषता सामाजिक पदानुक्रम थी, जिसमें नेता या प्रमुख संगठन में प्रमुख भूमिका निभाते थे।
- अशोक के शिलालेखों में वर्णित चोल, पांड्य और केरलपुत्र संभवतः महापाषाण काल के थे।
- अशोक की उपाधि "देवताओं को प्रिय" एक तमिल सरदार द्वारा अपनाई गई थी।
- सांस्कृतिक विकास:
- महापाषाण काल में कला, मिट्टी के बर्तनों और अलंकरण के संदर्भ में सांस्कृतिक विकास हुआ। मिट्टी के बर्तनों पर बने डिज़ाइन और दफन में पाए जाने वाले व्यक्तिगत आभूषण इन प्राचीन समाजों की रचनात्मकता तथा सांस्कृतिक पहचान को प्रदर्शित करते हैं।
- त्रिशूल, जो बाद में शिव से जुड़े हुए माने गए, मेगालिथ में पाए गए हैं।
- महापाषाण काल में कला, मिट्टी के बर्तनों और अलंकरण के संदर्भ में सांस्कृतिक विकास हुआ। मिट्टी के बर्तनों पर बने डिज़ाइन और दफन में पाए जाने वाले व्यक्तिगत आभूषण इन प्राचीन समाजों की रचनात्मकता तथा सांस्कृतिक पहचान को प्रदर्शित करते हैं।
- व्यापार और विनिमय:
- महापाषाणकालीन लोग स्थानीय स्तर पर तथा संभवतः दक्षिणी भारत से बाहर के क्षेत्रों के साथ भी व्यापार और विनिमय नेटवर्क में संलग्न थे।
- दक्षिण की ओर जाने वाले मार्ग को 'दक्षिणापथ' कहा जाता था, जिसे उत्तरवासियों द्वारा इसलिये महत्त्व दिया जाता था क्योंकि दक्षिण से सोना, मोती और बहुमूल्य पत्थर मिलते थे।
- रोमन साम्राज्य के साथ फलते-फूलते व्यापार से एक ओर दक्षिण भारत के तटीय भागों और दूसरी ओर रोमन साम्राज्य के पूर्वी क्षेत्रों, विशेषकर मिस्र, के बीच होने वाले आयात-निर्यात से लाभ प्राप्त हुआ।
- महापाषाणकालीन लोग स्थानीय स्तर पर तथा संभवतः दक्षिणी भारत से बाहर के क्षेत्रों के साथ भी व्यापार और विनिमय नेटवर्क में संलग्न थे।
निष्कर्ष
महापाषाण काल को अक्सर दक्षिणी भारत के इतिहास में आधारभूत काल माना जाता है। इस काल में हुई प्रगति ने इस क्षेत्र में आगे चलकर होने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों के लिये आधार तैयार किया।