दिवस- 49: प्रस्तावना में 'स्वतंत्रता' के विभिन्न पहलुओं - विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और उपासना - का विश्लेषण कीजिये। साथ ही, वर्तमान परिदृश्य में इन मूल्यों की प्रभावशीलता और उनके संरक्षण के उपायों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
27 Jan 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना में उल्लिखित स्वतंत्रता की अवधारणा का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- स्वतंत्रता के प्रत्येक पहलू पर चर्चा कीजिये- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और उपासना।
- प्रासंगिक उदाहरणों, आँकड़ों और तर्कों का उपयोग करके वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में उनकी स्थिति का मूल्यांकन कीजिये।
- उनकी प्रभावशीलता और चुनौतियों पर संतुलित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष निकालें।
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परिचय:
प्रस्तावना में निहित स्वतंत्रता व्यक्तियों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता की गारंटी देती है, जो एक लोकतांत्रिक समाज की आधारशिला है। यह सुनिश्चित करता है कि नागरिक दबाव और भेदभाव से मुक्त होकर सम्मान एवं स्वायत्तता के साथ रह सकें। हालाँकि इन स्वतंत्रताओं का प्रभावी कार्यान्वयन विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक कारकों और वर्तमान संदर्भ में उनकी व्याख्या पर निर्भर करता है।
मुख्य भाग:
- विचार की स्वतंत्रता: व्यक्तियों को उत्पीड़न या दबाव के भय के बिना स्वतंत्र रूप से सोचने की अनुमति देती है।
- समकालीन समय में, वैचारिक विभाजन, मीडिया का प्रभाव और सामाजिक अनुरूपता अक्सर जनमत को आकार देते हैं तथा कभी-कभी स्वतंत्र विचार को प्रतिबंधित कर देते हैं।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म के उदय ने सूचना तक बेहतर पहुँच प्रदान की है, लेकिन इससे गलत सूचना और संज्ञानात्मक पूर्वाग्रहों का प्रसार भी हुआ है।
- उदाहरण: वैश्विक शैक्षिक संसाधनों तक पहुँच व्यक्तियों को विविध दृष्टिकोण बनाने में सक्षम बनाती है, जबकि गलत सूचना अभियान स्वतंत्र विचार में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: भाषण, लेखन, कला और मीडिया के माध्यम से स्वतंत्र रूप से राय व्यक्त करने का अधिकार सुनिश्चित करता है।
- इस स्वतंत्रता की रक्षा के लिये कानूनी ढाँचे मौजूद हैं; हालाँकि आत्म-सेंसरशिप, कानूनी प्रतिबंध और सामाजिक प्रतिक्रिया जैसी चुनौतियाँ भी हैं।
- सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार बन गया है, जो खुले संवाद को बढ़ावा देता है लेकिन ट्रोलिंग, अभद्र भाषा और डिजिटल निगरानी को भी बढ़ावा देता है।
- उदाहरण: विभिन्न मुद्दों पर जन-जागरूकता अभियान कार्रवाई में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रदर्शित करते हैं, जबकि ऑनलाइन उत्पीड़न अक्सर भागीदारी को हतोत्साहित करता है।
- मानवाधिकार संगठनों के आँकड़े विभिन्न मंचों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध से संबंधित मामलों में वृद्धि दर्शाते हैं।
- विश्वास की स्वतंत्रता: बाहरी प्रभाव या भेदभाव के बिना व्यक्तिगत विश्वास रखने के व्यक्तियों के अधिकार की रक्षा करती है।
- सांस्कृतिक पूर्वाग्रह, गलत जानकारी और सामाजिक दबाव जैसे कारक अक्सर व्यक्ति की निष्पक्ष रूप से विश्वास स्थापित करने की क्षमता को बाधित करते हैं।
- सर्वेक्षणों से ज्ञात होता है कि विश्वास प्रणालियाँ तेज़ी से मीडिया की कहानियों और राजनीतिक प्रभावों से प्रभावित हो रही हैं, जिससे कभी-कभी आलोचनात्मक सोच सीमित हो जाती है।
- आस्था की स्वतंत्रता: व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है।
- यद्यपि कानूनी प्रावधान मौजूद हैं, फिर भी धार्मिक असहिष्णुता, पूर्वाग्रह और भेदभाव की घटनाएँ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं।
- सामाजिक सद्भाव विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच आपसी सम्मान और समझ को बढ़ावा देने पर निर्भर करता है।
- उदाहरण: विभिन्न धर्मों के सांस्कृतिक उत्सव विभिन्न समुदायों के बीच एकता और आपसी सम्मान को प्रोत्साहित करने में सहायक होते हैं।
- विवरणों के अनुसार, सांप्रदायिक सद्भाव की पहल और अंतर-धार्मिक संवाद मंचों ने सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देने में सकारात्मक योगदान दिया है।
- उपासना की स्वतंत्रता: व्यक्तियों को बिना किसी अनुचित प्रतिबंध के अपने धर्म का पालन करने का अधिकार प्रदान करती है।
- चुनौतियों में धार्मिक समारोहों पर प्रतिबंध, भेदभावपूर्ण प्रथाएँ और स्थानीय संघर्ष शामिल हैं।
- न्यायिक हस्तक्षेप ने पूजा के अधिकार को मज़बूत किया है तथा मनमाने प्रतिबंधों के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित की है।
- समावेशी नीतियों और अंतर-धार्मिक संवाद को प्रोत्साहित करने के प्रयासों ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने में प्रभावी परिणाम दिये हैं।
निष्कर्ष:
स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी सुदृढ़ बनी हुई है, लेकिन बदलते सामाजिक और राजनीतिक परिवेश के कारण इसके प्रभावी कार्यान्वयन में चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित रखने के लिये सामाजिक सामंजस्य, जागरूकता और कानूनी सुरक्षा उपायों को प्रोत्साहित करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। समाज के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मज़बूत करने के लिये समावेशिता, सहिष्णुता और खुले संवाद को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।