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22 Jan 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस- 45: भारत में शहरी-ग्रामीण विभाजन श्रम शक्ति भागीदारी को किस प्रकार प्रभावित करता है? इस अंतर को कम करने के लिये प्रभावी रणनीतियों का सुझाव दीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में शहरी-ग्रामीण विभाजन और भारत में श्रम बल भागीदारी के लिये इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
- चर्चा कीजिये कि शहरी-ग्रामीण विभाजन श्रम शक्ति भागीदारी को किस प्रकार प्रभावित करता है।
- इस अंतर के निपटान हेतु रणनीति सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत में शहरी-ग्रामीण विभाजन आर्थिक अवसरों, शिक्षा, बुनियादी ढाँचे और रोज़गार प्रतिरूप में असमानताओं को दर्शाता है। ये अंतर श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं, शहरी क्षेत्रों में अवसरों और संसाधनों तक बेहतर पहुँच के कारण अपेक्षाकृत अधिक भागीदारी दिखाई देती है।
मुख्य भाग:
LFPR पर शहरी-ग्रामीण विभाजन का प्रभाव:
- शहरी क्षेत्रों में उच्चLFPR: शहरी LFPR 49.3% (वर्ष 2023 में) से बढ़कर 50.4% (वर्ष 2024 में) हो गया, जिसे बेहतर रोज़गार की उपलब्धता, शिक्षा और बुनियादी ढाँचे का समर्थन प्राप्त है।
- महिला LFPR भी 24.0% से बढ़कर 25.5% हो गई, जो शहरी रोज़गार क्षेत्र में क्रमिक सुधार को दर्शाती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में कम भागीदारी: ग्रामीण क्षेत्रों को मौसमी कृषि पर निर्भरता, अल्परोज़गार और कौशल आधारित नौकरियों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- अनौपचारिक रोज़गार का प्रभुत्व है और उद्योगों में विविधीकरण के अवसर सीमित हैं।
- लैंगिक असमानताएँ: सांस्कृतिक मानदंडों और औपचारिक रोज़गारों के अवसरों की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी शहरी समकक्षों की तुलना में कम है।
- प्रवासन प्रतिरूप: गाँव से शहर की ओर प्रवासन बेहतर नौकरियों की तलाश को दर्शाता है, लेकिन इससे अक्सर शहरी प्रणालियों पर अत्यधिक बोझ पड़ता है और ग्रामीण उत्पादकता में कमी आती है।
शहरी-ग्रामीण अंतर को पाटने की रणनीतियाँ:
- विकेंद्रीकृत आर्थिक विकास: क्लस्टर आधारित मॉडल (जैसे- MSME) और कृषि प्रसंस्करण उद्योगों के माध्यम से ग्रामीण औद्योगीकरण को बढ़ावा देना चाहिये।
- उदाहरण: एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) जैसी पहल ग्रामीण रोज़गार सृजन को बढ़ाती है।
- कौशल विकास कार्यक्रम: क्षेत्र-विशिष्ट कौशल प्रशिक्षण के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का विस्तार करना चाहिये।
- ग्रामीण युवाओं को प्रौद्योगिकी-संचालित नौकरियों के लिये तैयार करने हेतु डिजिटल साक्षरता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: उद्योगों को आकर्षित करने के लिये डिजिटल इंडिया और मज़बूत परिवहन प्रणालियों के माध्यम से ग्रामीण कनेक्टिविटी में सुधार करना चाहिये।
- ग्रामीण क्षेत्रों में बाल देखभाल, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसे शहरी बुनियादी ढाँचे का विकास करना चाहिये।
- कृषि-प्रौद्योगिकी और संबद्ध क्षेत्रों को बढ़ावा देना: कृषि को आधुनिक बनाने और गैर-मौसमी, उच्च-मूल्य वाले रोजगारों का सृजन करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिये।
- उदाहरण: कृषि व्यवसाय और कृषि मशीनीकरण में स्टार्टअप को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- महिला कार्यबल भागीदारी को प्रोत्साहित करना: ग्रामीण क्षेत्रों में अनुकूल कार्य मॉडल और किफायती बाल देखभाल सुविधाएँ शुरू करनी चाहिये।
- ग्रामीण महिला उद्यमियों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिये।
निष्कर्ष:
श्रम शक्ति भागीदारी में शहरी-ग्रामीण अंतर को पाटने के लिये समान विकास रणनीतियों की आवश्यकता है जो ग्रामीण अवसरों को बढ़ाएँ और शहरी क्षेत्रों पर प्रवासन दबाव को कम करें। लक्षित नीतियाँ, कौशल-निर्माण और बेहतर बुनियादी ढाँचा संतुलित विकास को सक्षम कर सकता है, जिससे संपूर्ण भारत में समावेशी आर्थिक भागीदारी सुनिश्चित हो सके।