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Sambhav-2025

  • 27 Jan 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 49: आकलन कीजिये कि भारतीय संविधान ने वैश्विक ढाँचे से प्रेरणा लेते हुए भारत की विशिष्ट सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विशिष्ट रूप से उधार ली गई विशेषताओं को अपनाया। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारतीय संविधान को वैश्विक सिद्धांतों और स्वदेशी नवाचारों के संश्लेषण के रूप में प्रस्तुत कीजिये।
    • मुख्य भाग में उधार ली गई विशेषताओं, उनके स्रोतों तथा भारत की विविध आवश्यकताओं के लिये स्वदेशी अनुकूलनों को उदाहरणों सहित विस्तार से समझाइये।
    • प्रभावी शासन और स्थिरता सुनिश्चित करने में इस संश्लेषण की भूमिका पर बल देते हुए निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय:

    भारतीय संविधान, जिसे अक्सर "उधार लिया गया दस्तावेज़" कहा जाता है, में दुनिया भर के संविधानों की विशेषताएँ शामिल हैं। हालाँकि इन विशेषताओं को भारत की अनूठी सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक जटिलताओं को संबोधित करने के लिये सावधानीपूर्वक अनुकूलित किया गया था। स्वदेशी नवाचारों और वैश्विक सिद्धांतों के इस समन्वय ने ऐसा ढाँचा तैयार किया है जो विविधता एवं बहुलवाद से युक्त समाज की चुनौतियों का प्रभावी रूप से सामना कर सकता है।

    मुख्य भाग:

    अधिग्रहित विशेषताएँ और उनकी स्वदेशी अनुकूलन प्रक्रिया:

    • संसदीय प्रणाली (यूनाइटेड किंगडम): वेस्टमिंस्टर मॉडल विधायिका के प्रति जवाबदेह कार्यपालिका पर ज़ोर देता है, जो राजनीतिक स्थिरता और सार्वजनिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
      • अनुकूलन: भारत ने इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ जोड़ दिया, जिससे विविध सामाजिक, भाषाई और क्षेत्रीय समूहों में समावेशी प्रतिनिधित्व की अनुमति मिली।
      • उदाहरण: प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी हैं, जो जनता की इच्छा को प्रतिबिंबित करता है।
    • मज़बूत केंद्र के साथ संघीय संरचना (कनाडा):
      • कनाडा के संघवाद से प्रेरित होकर भारत ने संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया।
      • अनुकूलन: नव-स्वतंत्र राष्ट्र में एकता बनाए रखने के लिये, आपातकाल के दौरान एकात्मक पूर्वाग्रह की शुरुआत की गई।
      • उदाहरण: अनुच्छेद 246 (शक्तियों का विभाजन) और 356 (राष्ट्रपति शासन) केंद्र को राष्ट्रीय अखंडता सुनिश्चित करते हुए संकटों से निपटने का अधिकार देते हैं।
    • मौलिक अधिकार (संयुक्त राज्य अमेरिका):
      • अमेरिकी अधिकार विधेयक के अनुरूप, ये प्रावधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता की रक्षा करते हैं।
      • अनुकूलन: मौलिक अधिकारों को भारत की सामाजिक पदानुक्रम का सामना करने के लिये तैयार किया गया था, जिसमें जाति-आधारित भेदभाव जैसे मुद्दों को संबोधित किया गया था।
      • उदाहरण: अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है, जबकि अनुच्छेद 15 जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
    • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (आयरलैंड):
      • इन गैर-न्यायसंगत सिद्धांतों का उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक न्याय की दिशा में शासन का मार्गदर्शन करना है
      • अनुकूलन: भारत ने अनुच्छेद 39 (संसाधन वितरण) और 45 (सार्वभौमिक शिक्षा) के माध्यम से समान विकास को प्राथमिकता दी।
      • उदाहरण: इन सिद्धांतों ने मनरेगा और शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसी कल्याणकारी योजनाओं को प्रभावित किया
    • न्यायिक समीक्षा के साथ स्वतंत्र न्यायपालिका (संयुक्त राज्य अमेरिका):
      • संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए अपनाई गई न्यायिक समीक्षा शक्ति संतुलन सुनिश्चित करती है।
      • हालाँकि, अमेरिका के विपरीत, भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से की जाती है, जिससे राजनीतिक प्रभाव से स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है। 
        • उनकी असहमति मुख्यतः राजनीतिक के बजाय बौद्धिक, सामाजिक या कानूनी असहमतियों को प्रतिबिम्बित करती है।
      • उदाहरण: अनुच्छेद 50 न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करता है, जिससे न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है।

    स्वदेशी नवाचार:

    • आरक्षण नीतियाँ: सकारात्मक कार्रवाई ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करते हुए हाशिये पर पड़े समूहों के लिये उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती है।
    • पंचायती राज प्रणाली: अनुच्छेद 40 ने स्थानीय स्वशासन को संस्थागत बनाया, ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाया और ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा दिया।
    • आपातकालीन प्रावधान: जर्मनी से प्रेरित होकर भारत ने आंतरिक और बाह्य खतरों से निपटने तथा राष्ट्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये इन्हें तैयार किया।

    निष्कर्ष:

    भारतीय संविधान में उधार ली गई विशेषताओं और स्वदेशी अनुकूलनों का संयोजन विविधता को समायोजित करने तथा समावेशिता को बढ़ावा देने की इसकी क्षमता को दर्शाता है। इस संश्लेषण ने स्थिरता, अनुकूलनशीलता और प्रभावशीलता सुनिश्चित की है, जिससे संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ बन गया है जो एक बहुलवादी एवं विकासशील राष्ट्र की गतिशील आवश्यकताओं को संबोधित करने में सक्षम है।

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