Sambhav-2025

दिवस-2: आर्थिक हाशिये पर होने के बावजूद लोक चित्रकला की सांस्कृतिक प्रामाणिकता को बनाए रखने में कलाकारों के सामने आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिये और उनकी सहायता के लिये प्रभावी उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

03 Dec 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • भारत में लोक चित्रकला के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
  • इन कारीगरों के सामने आने वाली मुख्य चुनौतियों को रेखांकित कीजिये।
  • कारीगरों को समर्थन देने हेतु उपाय सुझाइये।
  • उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।

परिचय: 

भारत में लोक चित्रकला का अत्यधिक महत्त्व है, क्योंकि यह देश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और विविध परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। ये कला रूप केवल सजावटी नहीं हैं; वे उपमहाद्वीप के विभिन्न समुदायों की कहानियों, विश्वासों और रोज़मर्रा के जीवन को समेटे हुए हैं।

कारीगरों के सामने आने वाली चुनौतियाँ: 

  • आर्थिक हाशिये पर: कई कारीगरों की आय बहुत कम होती है, जो अक्सर गरीबी रेखा से नीचे होती है और इस कारण वे पारंपरिक तकनीकों से समझौता करने के लिये विवश हो जाते हैं।
    • ओडिशा में पट्टचित्र चित्रकारी के कारीगर अक्सर लागत की कमी के कारण प्राकृतिक रंगों के स्थान पर कृत्रिम रंगों का उपयोग करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कला की प्रामाणिकता पर प्रभाव पड़ता है।
  • मान्यता और समर्थन का अभाव: लोक चित्रकला के सांस्कृतिक मूल्य के बावजूद, कई कलाकारों को उनकी उन्नति के लिये आवश्यक मान्यता या वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती है। 
    • सिक्किम की थंगका चित्रकला को सीमित प्रचार-प्रसार का सामना करना पड़ रहा है, जिससे कलाकारों को आय के लिये छोटे पर्यटक बाज़ारों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
  • पारंपरिक ज्ञान की हानि: आर्थिक प्रोत्साहन अक्सर कला के बजाय आधुनिक कॅरियर को प्राथमिकता देते हैं, जिससे पारंपरिक कौशल और ज्ञान की हानि होती है।
    • राजस्थान की फड़ चित्रकला परंपरा में गिरावट आ रही है, क्योंकि युवा कलाकार पारंपरिक कला को जारी रखने के स्थान पर स्थायी नौकरियों की ओर रुख कर रहे हैं।
  • बाज़ार की मांग और व्यवसायीकरण: लोक चित्रकला के व्यवसायीकरण से कारीगरों को आय तो मिलती है, लेकिन इसके साथ ही उन्हें पर्यटकों की पसंद को पूरा करने का दबाव भी महसूस होता है, जिससे उनकी कला के पारंपरिक तत्त्वों से समझौता होता है।
    • आंध्र प्रदेश की कलमकारी पेंटिंग, जो कभी प्राकृतिक रंगों से हाथ से बनाई जाती थी और हिंदू परंपराओं पर आधारित थी, अब बड़े पैमाने पर उत्पादन की मांग को पूरा करने के लिये अक्सर स्क्रीन प्रिंटिंग तथा आधुनिक डिज़ाइन का उपयोग करती है।
    • मधुबनी चित्रकला को अक्सर स्मृति चिह्नों में परिवर्तित कर दिया जाता है, जिससे उनकी समृद्ध कहानी कहने की क्षमता खत्म हो जाती है।

कारीगरों का समर्थन करने हेतु सुझाए गए उपाय: 

  • वित्तीय सहायता: ऐसी नीतियों को लागू करना जो कारीगरों को अनुदान, सब्सिडी और वित्तीय सहायता प्रदान करें, जिससे आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो तथा वे अपने शिल्प पर ध्यान केंद्रित कर सकें। 
    • संस्कृति मंत्रालय के तहत “सांस्कृतिक विरासत योजना” जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य पारंपरिक कारीगरों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • कौशल विकास कार्यक्रम: ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना जो कारीगरों को पारंपरिक तकनीकों और समकालीन विपणन रणनीतियों दोनों में शिक्षित करें। 
    • उदाहरण के लिये, "ग्रामीण कौशल विकास योजना" में डिजिटल मार्केटिंग पर मॉड्यूल शामिल किया जा सकता है ताकि कारीगरों को व्यापक दर्शकों तक पहुँचने में मदद मिल सके।
  • बाज़ार तक पहुँच और संवर्द्धन: कलाकारों को अपने कार्य को प्रदर्शित करने और बेचने के लिये ऑनलाइन बाज़ार तथा प्रदर्शनी स्थल स्थापित करने चाहिये, ताकि लोक कला की दृश्यता और सराहना बढ़ सके।
    • “अंतर्राष्ट्रीय मधुबनी कला महोत्सव” जैसे आयोजन कलाकारों को अपना काम प्रदर्शित करने और जनता को शिक्षित करने के लिये मंच प्रदान करते हैं।
    • "क्राफ्ट्सविला" जैसी पहल कारीगरों को अपने उत्पाद ऑनलाइन बेचने के लिये एक मंच प्रदान करती है, जिससे वे लाभ का उचित हिस्सा अपने पास रख सकते हैं।
  • मेंटरशिप कार्यक्रम: ऐसे मेंटरशिप अवसर सृजित करना जो अनुभवी कारीगरों को युवाओं से जोड़ते हैं, कौशल और ज्ञान का हस्तांतरण सुनिश्चित करते हैं तथा युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने के लिये प्रोत्साहित करते हैं। 
  • सहकारिताएँ: कारीगरों की सामूहिक कार्य प्रणाली को सशक्त बनाने के लिये सहकारी समितियों की स्थापना करनी चाहिये, जो उनकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए उनकी सौदेबाज़ी क्षमता और बाज़ार तक पहुँच को बढ़ा सकें।
    • “राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम” ऐसे सहकारी मॉडलों को प्रोत्साहित करता है, जिससे कारीगरों को संसाधनों को एकत्र करने और ज्ञान साझा करने का अवसर मिलता है।

निष्कर्ष:

उपभोक्ताओं में प्रामाणिकता की सराहना बढ़ाने और कारीगरों को संसाधन, प्रशिक्षण तथा उचित बाज़ार पहुँच प्रदान करके, हम एक सशक्त पारिस्थितिकी तंत्र बना सकते हैं जो लोक कला की समृद्ध विरासत का सम्मान करता है। सरकार, समुदायों और उपभोक्ताओं के सहयोगात्मक प्रयास एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो इन सांस्कृतिक धरोहरों को भविष्य की पीढ़ियों के लिये महत्त्व देता है और संरक्षित करता है।