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Sambhav-2025

  • 26 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-22:भारत में दलितों के सामने आने वाले मुद्दों को संबोधित करने में डॉ. बी.आर. अंबेडकर और गांधीजी के विपरीत दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिये। (150 शब्द)
     

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • इन दो प्रमुख नेताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • उनके विपरीत दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिये।
    • दोनों नेताओं की स्थायी विरासत के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।

    परिचय:

    भारत में दलित समुदाय, विशेष रूप से जातिवाद के शोषित लोग, लंबे समय से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करने वाले दो प्रमुख नेता डॉ. बी.आर. अंबेडकर और महात्मा गांधी थे। हालाँकि दोनों ही हाशिये पर पड़े समुदायों के कल्याण के बारे में गहराई से चिंतित थे, लेकिन इन मुद्दों को संबोधित करने के उनके तरीके मौलिक रूप से अलग थे।

    मुख्य भाग:

    डॉ. बी.आर. अंबेडकर का दृष्टिकोण: दलितों की समस्याओं के समाधान के लिये डॉ. बी.आर. अंबेडकर का दृष्टिकोण राजनीतिक सशक्तीकरण और कानूनी सुधार पर आधारित था।

    • राजनीतिक और कानूनी ढाँचा: उनका मानना था कि जाति-आधारित भेदभाव को केवल राजनीतिक प्रतिनिधित्व, कानूनी सुरक्षा और संस्थागत परिवर्तनों के संयोजन से ही समाप्त किया जा सकता है।
      • शिक्षा, रोज़गार और राजनीति में आरक्षण जैसी सकारात्मक कार्रवाई नीतियों का समर्थन करना, दलितों को सशक्त बनाने के लिये उनके दृष्टिकोण की आधारशिला था।
    • राजनीतिक लामबंदी: अंबेडकर का मानना था कि केवल राजनीतिक शक्ति के माध्यम से ही दलितों को सच्ची समानता और न्याय प्राप्त हो सकता है।
      • उन्होंने वर्ष 1924 में बहुश्रुत हितकारणी सभा का गठन किया जिसका आदर्श वाक्य था- "शिक्षित करो, आंदोलन करो और संगठित करो" तथा इसका उद्देश्य जनता को संगठित करना था।
      • 15 अगस्त 1936 को उन्होंने दलित वर्गों, जोकि अधिकांशतः श्रमिक आबादी थी, के हितों की रक्षा के लिये स्वतंत्र लेबर पार्टी का गठन किया।
      • वर्ष 1942 में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ की स्थापना की, जो उनकी दूसरी राजनीतिक पार्टी थी, जिसका उद्देश्य अनुसूचित जातियों के हितों और अधिकारों का प्रतिनिधित्व करना था।
    • हिंदू धर्म की आलोचना: उनका मानना था कि जाति व्यवस्था हिंदू धार्मिक प्रथाओं में गहराई से अंतर्निहित है और इसलिये, उन्होंने दलितों को इससे बाहर निकालने का प्रयास किया।
      • डॉ. भीमराव अंबेडकर ने सवर्ण हिंदुओं की प्रतिगामी प्रथाओं को चुनौती देने के लिये मार्च 1927 में महाड़ सत्याग्रह का नेतृत्व किया।
      • वर्ष 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया, जो हिंदू जाति व्यवस्था के खिलाफ राजनीतिक और सामाजिक विद्रोह का एक कार्य था।

    गांधी जी का दृष्टिकोण: महात्मा गांधी का दृष्टिकोण नैतिक और सामाजिक सुधार पर आधारित था।

    • हरिजन आंदोलन: गांधी जी ने अछूतों के लिये "हरिजन" शब्द गढ़ा, जिन्हें वे ईश्वर की संतान मानते थे।
      • केरल में वैकोम सत्याग्रह (1924-25) के दौरान, गांधी जी ने जाति-आधारित प्रतिबंधों को चुनौती दी और मंदिरों एवं सार्वजनिक सड़कों तक अछूतों के अधिकारों का समर्थन किया।
    • अहिंसा और सामाजिक सद्भाव: गांधी जी ने अहिंसा, सत्य और सामाजिक समावेश के माध्यम से लोगों के दिल और दिमाग में परिवर्तन लाकर, विशेष रूप से हिंदू समाज में, अस्पृश्यता एवं जातिगत भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया।
      • उन्होंने उच्च जातियों को विनम्रता का अभ्यास करने और समाज में बिना किसी भेदभाव के दलितों को स्वीकार करने के लिये प्रेरित किया।
    • हिंदू धर्म में सुधार: गांधी जी का मानना था कि जातिगत भेदभाव का समाधान हिंदू धर्म में सुधार करने में ही निहित है। उनका तर्क था कि हिंदू धर्म की पवित्रता जाति व्यवस्था में नहीं, बल्कि इसकी नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं में है।

    निष्कर्ष:

    गांधी जी और अंबेडकर के बीच पूना समझौता (1932) एक निर्णायक क्षण के रूप में जाना जाता है। गांधी जी ने दलितों के लिये अलग निर्वाचन क्षेत्र से बचने की कोशिश की, जबकि अंबेडकर ने आरक्षित सीटों के माध्यम से राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया, जो उनकी विचारधाराओं के बीच एक समझौता था। उनके अलग-अलग दृष्टिकोण - एक आध्यात्मिक और सामाजिक परिवर्तन में निहित है, दूसरा कानूनी और राजनीतिक समाधानों में - भारत के हाशिये के समुदायों के अधिकारों तथा सम्मान के लिये जटिल एवं बहुआयामी संघर्ष को दर्शाता है।

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