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Sambhav-2025

  • 14 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 65: क्या पंचायतों को ‘तीन एफ’—कार्य, कार्यकर्त्ता और निधि—का अपर्याप्त हस्तांतरण 73वें संशोधन की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर रहा है? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • पंचायती राज को मज़बूत बनाने में 'तीन एफ' के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • बताइये कि 'तीन एफ' को हस्तांतरित करने में विफलता ने पंचायती राज को कैसे कमज़ोर किया है।
    • पंचायती राज को मज़बूत करने के उपाय सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय:

    73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 का उद्देश्य पंचायती राज को शासन के तीसरे स्तर के रूप में संस्थागत बनाना था। हालाँकि कई राज्यों द्वारा पंचायतों को 'तीन एफ' - कार्य, कार्यकर्त्ता और निधि - हस्तांतरित करने में विफलता के कारण इसका कार्यान्वयन कमज़ोर बना हुआ है। इस अधूरे हस्तांतरण ने भारत में धरातलीय स्तर के लोकतंत्र और स्थानीय शासन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है।

    मुख्य भाग:

    'तीन एफ' के हस्तांतरण न होने के कारण पंचायती राज कमज़ोर हो रहा है: 

    • कार्यों का अपूर्ण हस्तांतरण: ग्यारहवीं अनुसूची में पंचायती राज संस्थाओं (PRI) के अंतर्गत 29 विषयों को सूचीबद्ध करने के बावजूद, कई राज्यों ने प्रमुख क्षेत्रों में पंचायतों की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट नहीं किया है।
    • राज्य नियंत्रण और नौकरशाही निरीक्षण
      • कई राज्यों में अत्यधिक नौकरशाही नियंत्रण बना हुआ है, जिससे पंचायतों का अधिकार सीमित हो गया है।
      • राज्य स्तर पर लाइन विभाग सेवा वितरण पर नियंत्रण रखते हैं, जिससे पंचायतों की स्वायत्तता कम हो जाती है।
      • उदाहरण: उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पंचायतों के पास निर्णय लेने की न्यूनतम शक्तियाँ हैं, क्योंकि अधिकांश कार्य राज्य सरकार के पास ही रहते हैं।
    • ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का कमज़ोर कार्यान्वयन
      • कार्यात्मक स्वायत्तता के अभाव के कारण पंचायतों को स्वच्छता, जल आपूर्ति और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने में संघर्ष करना पड़ता है।
      • उदाहरण: 15वें वित्त आयोग ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में केवल सीमित संख्या में ग्राम पंचायतों के पास ही पेयजल आपूर्ति प्रणालियों पर नियंत्रण है।
    •  पर्याप्त कार्यकर्त्ताओं का अभाव: पंचायतों में अक्सर शासन कार्यों को कुशलतापूर्वक चलाने के लिये आवश्यक प्रशासनिक कर्मचारियों का अभाव रहता है।
      • राज्य द्वारा नियुक्त अधिकारियों पर निर्भरता
        • पंचायतें राज्य द्वारा नियुक्त अधिकारियों पर निर्भर रहती हैं जो स्थानीय शासन की अपेक्षा राज्य सरकार के निर्देशों को प्राथमिकता देते हैं।
      • सरपंच-नौकरशाही गठजोड़
        • कुछ राज्यों में, सरपंच-पटवारी गठजोड़ राज्य स्तर के अधिकारियों को निर्णय लेने में हावी होने की अनुमति देता है, जिससे धरातलीय स्तर पर लोकतंत्र कमज़ोर होता है।
    • तकनीकी कर्मियों की कमी
      • पंचायती राज मंत्रालय की एक रिपोर्ट (2022) में पाया गया कि इंजीनियरों, लेखाकारों और विकास अधिकारियों जैसे प्रशिक्षित अधिकारियों की कमी ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को प्रभावित करती है।
    • वित्तीय बाधाएँ और राज्यों पर निर्भरता: पंचायतों की वित्तीय स्वायत्तता सीमित है, जिसके कारण वे धन के लिये राज्य सरकारों पर निर्भर रहती हैं।
      • सीमित राजस्व सृजन शक्तियाँ
        • कई राज्य पंचायतों को संपत्ति कर, उपयोगकर्त्ता शुल्क और बाज़ार शुल्क प्रभावी ढंग से एकत्र करने की अनुमति नहीं देते हैं।
        • भारत में पंचायतें अपने राजस्व का केवल एक प्रतिशत करों के माध्यम से अर्जित करती हैं, शेष राशि राज्य और केंद्र से अनुदान के रूप में जुटाई जाती है।
        • विशेष रूप से, 80% राजस्व केंद्र सरकार के अनुदान से प्राप्त हुआ, जबकि केवल 15% राज्य सरकार के अनुदान से प्राप्त हुआ।
    • राज्य वित्त आयोग (SFC) अनुदान में देरी
      • कई राज्य SFC की अनुशंसित धनराशि के पंचायतों को हस्तांतरण में विलंब करते हैं, जिससे उनकी वित्तीय स्थिरता और अधिक प्रभावित होती है।
      • आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मिज़ोरम, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में औसत राजस्व काफी कम है, जो प्रति पंचायत 6 लाख रुपए से भी कम है।
    • केंद्रीय वित्त आयोग (CFC) अनुदान पर अत्यधिक निर्भरता
      • पंचायतें मुख्यतः CFC फंड पर निर्भर रहती हैं, जिससे उनकी वित्तीय स्वतंत्रता कम हो जाती है।
      • उदाहरण: 15वें वित्त आयोग ने वर्ष 2021-26 के लिये स्थानीय निकायों हेतु 4.36 लाख करोड़ रुपए की सिफारिश की, लेकिन वित्तीय स्वायत्तता के अभाव में इसका प्रभावी उपयोग सुनिश्चित नहीं हो सका।

     पंचायती राज को मज़बूत करने के उपाय

    • कार्यात्मक ज़िम्मेदारियों का स्पष्ट हस्तांतरण
      • राज्यों को ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध सभी 29 विषयों का पूर्ण हस्तांतरण करना होगा।
      • बेहतर समन्वय के लिये ज़िला योजना समितियों (DPC) को मज़बूत करना चाहिये।
      • उदाहरण: केरल का विकेंद्रीकृत नियोजन मॉडल एक सफल ढाँचा प्रदान करता है, जहाँ पंचायतों को वास्तविक कार्यात्मक अधिकार प्राप्त हैं।
    • कार्यकर्त्ताओं को मज़बूत बनाना
      • पंचायत स्तर पर इंजीनियरों, लेखाकारों और विकास अधिकारियों सहित समर्पित कर्मचारियों की भर्ती।
      • शासन दक्षता में सुधार के लिये निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रम।
    • वित्तीय स्वायत्तता बढ़ाना
      • पंचायतों को स्वतंत्र राजस्व सृजन के लिये संपत्ति कर, उपयोगकर्त्ता शुल्क और बाज़ार शुल्क एकत्र करने की अनुमति देना।
      • उदाहरण: कर्नाटक और महाराष्ट्र ने पंचायतों को बाज़ार तथा जल उपयोग पर कर एकत्र करने का अधिकार दिया है, जिससे स्थानीय शासन मज़बूत हुआ है।
    • राज्य वित्त आयोगों (SFC) में सुधार
      • पंचायतों को समय पर और पर्याप्त धनराशि का हस्तांतरण सुनिश्चित करना चाहिये।
      • विलंब से बचने के लिये वास्तविक समय पर धन हस्तांतरण तंत्र को लागू करना चाहिये।
    • राजनीतिक और नौकरशाही हस्तक्षेप को कम करना
      • निर्णय लेने में सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये ग्राम सभाओं को मज़बूत बनाना चाहिये।
      • निधि आवंटन और उपयोग में अधिक पारदर्शिता तथा जवाबदेही।
      • उदाहरण: राजस्थान ने पंचायत स्तर पर मनरेगा निधि की पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु सामाजिक लेखा परीक्षा तंत्र लागू किया है।

    निष्कर्ष:

    जैसा कि गांधीजी ने कहा था, "वास्तविक स्वराज कुछ लोगों द्वारा सत्ता प्राप्त करने से नहीं आएगा, बल्कि सभी द्वारा सत्ता का दुरुपयोग होने पर उसका प्रतिरोध करने की क्षमता प्राप्त करने से आएगा।" सच्चा सहभागी लोकतंत्र तभी प्राप्त किया जा सकता है जब पंचायतें आत्मनिर्भर और सशक्त निकायों के रूप में कार्य करें तथा धरातलीय स्तर पर समावेशी एवं सतत् विकास को बढ़ावा देना चाहिये।

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