Sambhav-2025

दिवस-27: रणनीतिक रूप से परिकल्पित होने के बावजूद, भारत छोड़ो आंदोलन स्वतःस्फूर्तता और समन्वय की कमी से चिह्नित एक जन विद्रोह बन गया। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

01 Jan 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत छोड़ो आंदोलन का संक्षिप्त परिचय देकर आरंभ कीजिये।
  • बताइये कि भारत छोड़ो आंदोलन की परिकल्पना रणनीतिक रूप से की गई थी।
  • आंदोलन के दौरान सहजता और समन्वय की कमी का वर्णन कीजिये।
  • उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।

परिचय:

8 अगस्त 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान मोहनदास करमचंद गांधी ने 'भारत छोड़ो' आंदोलन की शुरुआत की। अगले दिन गांधी, नेहरू और भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के कई अन्य नेताओं को ब्रिटिश अधिकारियों ने हिरासत में ले लिया। उसके बाद के दिनों में पूरे देश में अव्यवस्थित लेकिन अहिंसक विरोध प्रदर्शन हुए।

मुख्य भाग:

आंदोलन की रणनीतिक अवधारणा:

  • यह आंदोलन क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद शुरू किया गया था, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत को पर्याप्त स्वायत्तता देने में विफल रहा था।
  • जुलाई 1942 में कॉन्ग्रेस कार्यसमिति की वर्धा में बैठक हुई और उसमें यह संकल्प लिया गया कि वह गांधी जी को अहिंसक जन आंदोलन की कमान संभालने के लिये अधिकृत करेगी।
    • इस प्रस्ताव को सामान्यतः 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव कहा जाता है।
  • कॉन्ग्रेस कार्यसमिति ने प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी, जिसमें स्पष्ट रूप से ब्रिटिश वापसी और स्वतंत्रता की मांग की गई थी।
  • गांधी जी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि संघर्ष जनता द्वारा संचालित होना चाहिये, जिसमें किसानों, मज़दूरों, छात्रों और महिलाओं सहित समाज के सभी वर्गों की व्यापक भागीदारी होनी चाहिये।
  • गांधी जी ने ब्रिटिश शासन को तत्काल हटाने की मांग के लिये "करो या मरो" का नारा दिया।

कार्यान्वयन में सहजता और समन्वय का अभाव:

  • यह आंदोलन तब स्वतःस्फूर्त हो गया जब ब्रिटिश सरकार ने गांधी, नेहरू और अन्य कॉन्ग्रेस नेताओं को तुरंत गिरफ्तार कर लिया।
    • गांधी जी की गिरफ्तारी के बाद, दिल्ली में अरुणा आसफ अली और बंबई में उषा मेहता जैसे स्थानीय नेताओं ने आंदोलन को जीवित रखने के लिये विरोध प्रदर्शन तथा भूमिगत रेडियो प्रसारण का नेतृत्व किया।
  • आम जनता ने सत्ता के प्रतीकों पर हमला किया और सार्वजनिक भवनों पर जबरन राष्ट्रीय झंडे फहराये।
    • सत्याग्रहियों ने गिरफ्तारी दी, पुल उड़ा दिये गए, रेल पटरियाँ हटा दी गईं और टेलीग्राफ लाइनें काट दी गईं।
  • केंद्रीय नेतृत्व के अभाव के कारण क्षेत्रीय विद्रोहों में समन्वय का अभाव हो गया।
    • उत्तर प्रदेश के बलिया में चित्तू पांडे के नेतृत्व में एक समानांतर सरकार बनाई गई, जिसने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की घोषणा की।
  • बिना नेताओं के रहने के कारण कोई संयम नहीं रहा और हिंसा आम हो गई।
    • इस आंदोलन के मुख्य तूफान केंद्र पूर्वी संयुक्त प्रांत, बिहार, मिदनापुर, महाराष्ट्र और कर्नाटक में थे।
  • स्वतःस्फूर्त विद्रोहों के जवाब में ब्रिटिश प्रशासन ने कठोर प्रतिक्रिया दी, जिसमें व्यापक गिरफ्तारियाँ, दमनकारी कदम और हिंसक उपाय शामिल थे। आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज, आँसू गैस का इस्तेमाल तथा गोलीबारी की गई, जिससे लगभग 10,000 लोगों की मृत्यु होने का अनुमान है।

निष्कर्ष:

भारत छोड़ो आंदोलन, हालाँकि रणनीतिक रूप से परिकल्पित था, एक स्वतःस्फूर्त और असमन्वित तरीके से सामने आया। चुनौतियों के बावजूद, आंदोलन जनता को संगठित करने और राष्ट्रवादी उत्साह को बढ़ाने में सफल रहा। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण अध्याय बन गया, जिसने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को कमज़ोर करने और वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के लिये मंच तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।