Sambhav-2025

दिवस- 4: भारत में भाषाओं को शास्त्रीय के रूप में वर्गीकृत करने की आवश्यकता और मानदंड का आकलन करते हुए, इन भाषाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार की नीतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

05 Dec 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण: 

  • भारत के संदर्भ में शास्त्रीय भाषाओं को परिभाषित कीजिये।
  • भारत में भाषाओं को शास्त्रीय के रूप में वर्गीकृत करने की आवश्यकता और मानदंड का आकलन कीजिये।
  • इन भाषाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता का आकलन कीजिये।
  • उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।

परिचय:

किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का उद्देश्य उस भाषा के ऐतिहासिक महत्त्व को मान्यता देना और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक तथा बौद्धिक धरोहर के संरक्षक के रूप में उसकी भूमिका को सराहना है। सरकार इन भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देकर उनकी प्राचीनता, समृद्ध साहित्यिक परंपराओं और राष्ट्र के सांस्कृतिक ताने-बाने में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान को मान्यता प्रदान करती है।

मुख्य भाग: 

भाषाओं को शास्त्रीय के रूप में वर्गीकृत करने की आवश्यकता

  • सांस्कृतिक विरासत संरक्षण: यह सुनिश्चित करता है कि अतीत की भाषाई और सांस्कृतिक संपदा को स्वीकार किया जाए तथा भविष्य की पीढ़ियों के लिये संरक्षित रखा जाए।
  • पहचान और गौरव को बढ़ावा देना: शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता समुदायों को अपनी ऐतिहासिक जड़ों से जोड़ने में सहायक होती है और इसके परिणामस्वरूप उनमें अपनेपन तथा गौरव की भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • शैक्षणिक और अनुसंधान मूल्य: शास्त्रीय भाषाएँ भाषा विज्ञान, साहित्य और इतिहास में शैक्षणिक अनुसंधान तथा अध्ययन के लिये आवश्यक हैं। 

वर्ष 2024 में भाषाओं को शास्त्रीय के रूप में वर्गीकृत करने के मानदंडों को निम्नानुसार संशोधित किया गया:

  • इसके प्रारंभिक ग्रंथों या अभिलिखित इतिहास की प्राचीनता लगभग 1500-2000 वर्ष पुरानी है। 
  • प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी बोलने वालों द्वारा सांस्कृतिक विरासत के रूप में संजोया गया है। 
  • ज्ञान ग्रंथ, विशेषकर गद्य ग्रंथ के अलावा काव्य ग्रंथ, पुरालेखीय और अभिलेखीय साक्ष्य।
  • शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक भाषा से भिन्न होने के कारण, शास्त्रीय भाषा तथा उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है। 

शिक्षा मंत्रालय ने शास्त्रीय भाषाओं को आगे बढ़ाने हेतु विभिन्न कदम उठाए हैं

  • वर्ष 2020 में, संस्कृत को बढ़ावा देने के लिये संसद के एक अधिनियम के तहत तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई।
  • केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद को सुगम बनाने, अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा विश्वविद्यालय के छात्रों और भाषा विद्वानों के लिये पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई थी।
  • मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तत्त्वावधान में शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और उड़िया में अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये गए।
  • शास्त्रीय भाषाओं में उत्कृष्ट उपलब्धियों को सम्मानित और प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार स्थापित किये गए हैं।
  • शिक्षा मंत्रालय ने शास्त्रीय भाषाओं के लिये राष्ट्रीय पुरस्कारों की स्थापना, विश्वविद्यालयों में विशेष अध्यक्षीय पदों का सृजन और उनके प्रचार-प्रसार के लिये समर्पित केंद्रों की स्थापना जैसी पहलें की हैं। 

निष्कर्ष:

भाषाओं को शास्त्रीय के रूप में वर्गीकृत करना उनके सांस्कृतिक महत्त्व को पहचानने और उनके संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है। हालाँकि इसमें और सुधार की आवश्यकता है, जिसमें अधिक धन, सामुदायिक भागीदारी और बढ़ी हुई शैक्षिक पहुँच शामिल है। भारत के विविध समाज में शास्त्रीय भाषाओं की निरंतर प्रासंगिकता इस समृद्ध विरासत को जीवित रखने के लिये निरंतर समर्थन और मान्यता की आवश्यकता को रेखांकित करती है।