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21 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-18: पानीपत के तृतीय युद्ध ने भारतीय प्रतिरोध को कमज़ोर कर दिया और उपमहाद्वीप को औपनिवेशिक शोषण के प्रति संवेदनशील बना दिया। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- पानीपत के तृतीय युद्ध का संक्षिप्त परिचय देकर शुरुआत कीजिये।
- युद्ध के परिणामों पर चर्चा कीजिये।
- युद्ध के स्थायी प्रभाव के साथ निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
वर्ष 1761 में मराठा साम्राज्य और अहमद शाह अब्दाली (उनके अफगान सहयोगियों के साथ) के बीच लड़ी गई पानीपत का तृतीय युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण क्षण साबित हुआ। हालाँकि उस समय भारत में मराठा एक प्रमुख शक्ति थे, लेकिन इस लड़ाई में उन्हें गंभीर हार का सामना करना पड़ा जिसका उपमहाद्वीप पर गहरा प्रभाव पड़ा।
मुख्य भाग:
भारतीय प्रतिरोध का कमज़ोर होना
- मराठा सेना की हार: बड़ी सेना होने के बावजूद, मराठों की निर्णायक हार हुई, उनके 1,00,000 से अधिक सैनिक मारे गए तथा उनका नेतृत्व गंभीर रूप से कमज़ोर हो गया।
- इस पराजय ने मराठाओं के सैन्य प्रभुत्व को नष्ट कर दिया, जिससे वे आंतरिक कलह और बाहरी खतरों के प्रति असुरक्षित हो गए।
- एकीकृत भारतीय प्रतिरोध का पतन: जैसे-जैसे मराठा कमज़ोर होते गए, क्षेत्रीय शासक विदेशी खतरों का प्रतिरोध करने के लिये एकजुट होने के बजाय आंतरिक संघर्षों में अधिक व्यस्त हो गए।
- संसाधनों पर दबाव: साम्राज्य के राजस्व में काफी कमी आई, जिससे उनके लिये अपनी सैन्य या राजनीतिक संरचना का पुनर्निर्माण करना मुश्किल हो गया। इस आर्थिक पतन ने स्वदेशी शक्तियों की विदेशी औपनिवेशिक प्रगति का विरोध करने की क्षमता को बाधित किया।
सत्ता गतिशीलता में बदलाव:
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का उदय: अंग्रेज़ों ने क्षेत्रीय शक्तियों के साथ गठबंधन करना शुरू किया, जैसे कि हैदराबाद के निज़ाम के साथ एक सुनियोजित सहायक गठबंधन और मौजूदा प्रतिद्वंद्विता का लाभ उठाकर अपने फायदे के लिये इसका उपयोग किया।
- बक्सर का युद्ध (1764) के बाद मुगलों का प्रभुत्व तेज़ी से कमज़ोर हुआ। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से पराजित होने के बाद, मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय को कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर दीवानी (राजस्व संग्रह अधिकार) देने के लिये बाध्य होना पड़ा।
- इससे भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व की शुरुआत हुई, क्योंकि मुगल सत्ता कमज़ोर हो गई, जिससे साम्राज्य एक प्रतीकात्मक व्यक्ति तक सीमित रह गया, जिसका विशाल क्षेत्रों पर वास्तविक नियंत्रण बहुत कम रह गया।
- ब्रिटिश आर्थिक प्रभुत्व: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, अपने स्थापित व्यापारिक नेटवर्क और आर्थिक आधार के साथ, भारत की कमज़ोर स्थिति का फायदा उठाने के लिये अच्छी स्थिति में थी।
- उनकी आर्थिक रणनीतियों, जैसे व्यापार पर एकाधिकार, ने उन्हें धन और शक्ति संचित करने का अवसर दिया, जिसका उपयोग उन्होंने भारत में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिये किया।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, पानीपत के तृतीय युद्ध ने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत को एकजुट करने में सक्षम अंतिम प्रमुख स्वदेशी शक्ति को कमज़ोर करके अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश प्रभुत्व को सुविधाजनक बनाया। मराठा हार, प्लासी (1757) और बक्सर (1764) में पहले की ब्रिटिश जीत के साथ मिलकर, अंग्रेज़ों को क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में हेरफेर करने तथा धीरे-धीरे भारत के बड़े हिस्से पर नियंत्रण स्थापित करने में सक्षम बनाती है।