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Sambhav-2025

  • 05 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 57: अध्यक्ष को संसदीय कार्यवाही में एक तटस्थ मध्यस्थ के रूप में कार्य करना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सदन को नियंत्रित करने वाले नियमों का पालन करते हुए सभी को सुना जाए। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • संसदीय प्रणाली में अध्यक्ष की भूमिका को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
    • सदन के कानूनों के एक तटस्थ मध्यस्थ और संरक्षक के रूप में उनकी भूमिका का उल्लेख कीजिये।
    • अध्यक्ष के कार्यालय से जुड़े मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय: 

    लोकसभा के अध्यक्ष सदन के प्रमुख होते हैं। एक तटस्थ मध्यस्थ के रूप में, वे सुनिश्चित करते हैं कि संसदीय बहस और चर्चाएँ सुव्यवस्थित, निष्पक्ष और निर्धारित नियमों के अनुसार संचालित हों।

    मुख्य भाग: 

    तटस्थ मध्यस्थ और कानूनों के संरक्षक के रूप में अध्यक्ष की भूमिका 

    • सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करना:
      • अध्यक्ष निचले सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं और सदस्यों के बीच अनुशासन एवं मर्यादा बनाए रखने को सुनिश्चित करते हैं।
      • अध्यक्ष संसदीय बैठकों के लिये एजेंडा तय करता है और प्रक्रियात्मक नियमों की व्याख्या करता है। वह स्थगन, अविश्वास और निंदा प्रस्ताव जैसे प्रस्तावों को अनुमति देता है, जिससे व्यवस्थित संचालन सुनिश्चित होता है।
      • अध्यक्ष सदन के भीतर (क) भारत के संविधान, (ख) लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों और (ग) संसदीय मिसालों के प्रावधानों का अंतिम व्याख्याता होता है।
    • कोरम लागू करना और अनुशासनात्मक कार्रवाई:
      • कोरम के अभाव में अध्यक्ष आवश्यक उपस्थिति पूरी होने तक बैठक स्थगित या स्थगित कर देता है। 
      • अध्यक्ष को संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत अनुशासनहीन आचरण पर कार्रवाई करने और दल-बदल के आधार पर सदस्यों को अयोग्य ठहराने का अधिकार प्राप्त है।
    • समितियों का गठन: 
      • सदन की समितियों का गठन अध्यक्ष द्वारा किया जाता है तथा वे अध्यक्ष के समग्र निर्देशन में कार्य करती हैं।
      • सभी संसदीय समितियों के अध्यक्षों को अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाता है।
      • कार्य मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजन समिति और नियम समिति जैसी समितियाँ सीधे उनकी अध्यक्षता में काम करती हैं।
    • सदन के विशेषाधिकार: 
      • अध्यक्ष सदन, उसकी समितियों और सदस्यों के अधिकारों तथा विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है।
      • किसी विशेषाधिकार के प्रश्न को परीक्षण, जाँच और रिपोर्ट के लिये विशेषाधिकार समिति को भेजना पूर्णतः अध्यक्ष पर निर्भर करता है।
      • वे सदन के नेता के अनुरोध पर सदन की 'गुप्त' बैठक की अनुमति प्रदान कर सकते हैं। गुप्त बैठक के दौरान, अध्यक्ष की अनुमति के बिना कोई भी बाहरी व्यक्ति कक्ष, लॉबी या दीर्घाओं में उपस्थित नहीं रह सकता।
    • प्रशासनिक प्राधिकारी:
      • लोकसभा सचिवालय के प्रमुख के रूप में, अध्यक्ष संसद भवन के भीतर प्रशासनिक मामलों और सुरक्षा व्यवस्था का प्रबंधन करते हैं। वे संसदीय बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन और परिवर्द्धन को नियंत्रित करते हैं।
    • अंतर-संसदीय संबंध:
      • अध्यक्ष भारतीय संसदीय समूह के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं, जो अंतर-संसदीय संबंधों को सुगम बनाता है। वह विदेश में प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करते हैं और भारत में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की अध्यक्षता करते हैं।

    अध्यक्ष के पद से जुड़े मुद्दे: 

    • पक्षपात का मुद्दा: स्पीकर, जो अक्सर सत्ताधारी पार्टी से संबंधित होता है, पर पक्षपात का आरोप लगाया जाता है। किहोटो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन उदाहरणों को उजागर किया जहाँ स्पीकर ने कथित तौर पर अपनी पार्टी के पक्ष में काम किया है।
    • राष्ट्रीय हित के ऊपर पार्टी हितों को प्राथमिकता देना: अध्यक्ष को उन बहसों या चर्चाओं को प्रतिबंधित करने का अधिकार होता है जो राजनीतिक दलों के एजेंडे को प्रभावित कर सकती हैं, जब तक कि वे चर्चाएँ राष्ट्रहित में आवश्यक न हों।
    • कार्यवाही में व्यवधान और रुकावट में वृद्धि: यदि अध्यक्ष को पक्षपाती माना जाता है तो इससे विपक्ष में निराशा और व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, जिससे अंततः संसद की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • समितियों और जाँच को नज़रअंदाज़ करना: अध्यक्ष को उन बहसों या चर्चाओं पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार होता है जो राजनीतिक दलों के एजेंडे को प्रभावित कर सकती हैं, जब तक कि वे चर्चाएँ राष्ट्रहित में अनिवार्य न हों।
      • उदाहरण: वर्ष 2020 में तीन कृषि कानूनों को संसदीय समिति को भेजे बिना पारित करने को विपक्ष द्वारा व्यापक विरोध का कारण माना गया, जिससे बाद में इन कानूनों को वापस लेना पड़ा।

    निष्कर्ष

    लोकसभा का अध्यक्ष केवल पीठासीन अधिकारी नहीं होता, बल्कि सदन की कार्यवाही को दिशा देने और विशेष रूप से गठबंधन सरकार के संदर्भ में, सत्तारूढ़ दल एवं विपक्ष के बीच संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में ब्रिटेन की "एक बार अध्यक्ष, हमेशा अध्यक्ष" परंपरा को अपनाने से अध्यक्ष की निष्पक्षता और तटस्थता मज़बूत हो सकती है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे केवल सत्तारूढ़ दल नहीं, बल्कि संपूर्ण संसद के हित में कार्य करें।

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