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Sambhav-2025

  • 31 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-26:  हालाँकि साइमन कमीशन ने भारतीय प्रतिनिधित्व को बाहर रखा, फिर भी यह संवैधानिक सुधार के लिये ब्रिटिश सरकार के दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण क्षण का प्रतिनिधित्व करता था। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • साइमन कमीशन का संक्षिप्त अवलोकन प्रस्तुत कीजिये।
    • संवैधानिक सुधारों के अग्रदूत के रूप में साइमन कमीशन की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।
    • साइमन कमीशन की मुख्य आलोचना पर प्रकाश डालिये।
    • निष्कर्ष में बताइये कि आयोग ने राष्ट्रवादी मांगों को किस प्रकार तीव्र किया।

    परिचय:

    ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1927 में नियुक्त साइमन कमीशन को 1919 के भारत सरकार अधिनियम की समीक्षा करने और संवैधानिक सुधारों का सुझाव देने का कार्य सौंपा गया था। इसमें सात सदस्य शामिल थे, जिनमें से सभी ब्रिटिश थे और विशेष बात यह है कि इसमें कोई भारतीय प्रतिनिधित्व नहीं था। भारतीयों की आवाज़ को शामिल करने में विफल होने के बावजूद, साइमन कमीशन ने भारत में संवैधानिक सुधार के लिये ब्रिटिश सरकार के दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण क्षण को चिह्नित किया।

    मुख्य भाग:

    साइमन कमीशन की मुख्य सिफारिशें:

    • द्वैध शासन का उन्मूलन: इसमें द्वैध शासन को समाप्त करने और प्रांतों में प्रतिनिधि सरकार की स्थापना का प्रस्ताव किया गया, जिन्हें स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये।
    • विधान परिषदों का विस्तार: इसमें केंद्रीय और प्रांतीय दोनों विधानमंडलों में विधान परिषदों के विस्तार का प्रस्ताव रखा गया ताकि अधिक संख्या में निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल किया जा सके।
    • प्रांतीय स्वायत्तता: आयोग ने सिफारिश की कि प्रांतों को अधिक स्वायत्तता दी जानी चाहिये, उनके वित्त और विधायी मामलों पर अधिक नियंत्रण होना चाहिये, लेकिन फिर भी वे ब्रिटिश सरकार के व्यापक अधिकारक्षेत्र के अधीन बने रहेंगे।
    • केंद्रीय विधानमंडल का पुनर्गठन: इसने केंद्रीय विधान परिषद की संरचना और कार्यों में बदलाव की सिफारिश की, जिसे भारतीय हितों का प्रतिनिधित्व न करने वाला माना गया। इसने ऐसे पुनर्गठन की मांग की जिससे भारतीयों की अधिक भागीदारी हो सके।
    • अल्पसंख्यकों के लिये पृथक निर्वाचिका की शुरुआत: आयोग ने धार्मिक और सामाजिक अल्पसंख्यकों के लिये पृथक निर्वाचिका के विचार का समर्थन किया, जो एक विवादास्पद प्रस्ताव था, जिसे 1919 अधिनियम सहित पहले के सुधारों में प्रस्तुत किया गया था।
    • सेना का भारतीयकरण: आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि भारतीय सेना का भारतीयकरण किया जाए, हालाँकि ब्रिटिश सेना की संरचना को जस का तस बनाए रखा जाए। इसका उद्देश्य भारतीयों की भूमिका बढ़ाना था, लेकिन ब्रिटिश नियंत्रण और शक्ति को बनाए रखते हुए।

    साइमन कमीशन की सबसे महत्त्वपूर्ण आलोचना:

    • भारतीय प्रतिनिधित्व का बहिष्कार: भारतीय प्रतिनिधित्व की कमी के कारण पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिनका नेतृत्व लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने किया, जिन्होंने लाहौर में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया।
      • इस बहिष्कार के कारण पूरे भारत में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके परिणामस्वरूप "साइमन वापस जाओ" का नारा लगा।
      • पूर्ण स्वशासन की अस्वीकृति: आयोग ने भारत के लिये पूर्ण स्वशासन या प्रभुत्व की स्थिति की सिफारिश नहीं की, जोकि भारतीय राष्ट्रवादियों की एक प्रमुख मांग थी।
    • विधान परिषदों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: जबकि साइमन आयोग ने विधान परिषदों का विस्तार करने और भारतीय प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाने की सिफारिश की थी, आलोचकों का मानना था कि यह कदम अपर्याप्त था।
    • रूढ़िवादी सिफारिशें: अल्पसंख्यकों के लिये पृथक निर्वाचिका बनाए रखने की साइमन आयोग की सिफारिश की धार्मिक और सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने के लिये आलोचना की गई।

    निष्कर्ष:

    साइमन कमीशन के माध्यम से भारतीय नेताओं को खुश करने में ब्रिटिश सरकार की असमर्थता के कारण गोलमेज सम्मेलनों (1930-1932) में भारतीय नेताओं की अधिक भागीदारी हुई, जिसने अंततः वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम को प्रभावित किया, जो संवैधानिक सुधारों की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। इस प्रकार, अपनी कमियों के बावजूद, साइमन कमीशन ने स्वतंत्रता की ओर भारत की संवैधानिक यात्रा के विकास में एक महत्त्वपूर्ण क्षण को चिह्नित किया।

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