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Sambhav-2025

  • 31 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-26: भारत के स्वतंत्रता संग्राम की प्रकृति को अभिजात वर्ग के नेतृत्व से जन-आधारित भागीदारी में बदलने में सविनय अवज्ञा आंदोलन की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सविनय अवज्ञा आंदोलन का संक्षिप्त अवलोकन प्रस्तुत कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि किस प्रकार सविनय अवज्ञा आंदोलन ने समाज के सभी वर्गों की व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहित किया।
    • उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय:

    महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934) भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक चरण था। इसने अभिजात वर्ग के नेतृत्व वाले प्रतिरोध से जन-आधारित भागीदारी की ओर बदलाव को चिह्नित किया, जिसमें ग्रामीण आबादी, महिलाओं और श्रमिकों सहित भारतीय समाज का एक व्यापक वर्ग शामिल था।

    मुख्य भाग:

    सविनय अवज्ञा आंदोलन में जन भागीदारी की सीमा:

    • पूरे भारत में व्यापक रूप से फैला: सविनय अवज्ञा आंदोलन (सीडीएम) भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण चरण था, जिसमें समस्त देश के विभिन्न क्षेत्रीय और सामाजिक समुदायों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध के लिये विभिन्न प्रकार की रणनीतियों का चयन किया।
      • अप्रैल 1930 में, सी. राजगोपालाचारी ने नमक कानून तोड़ने के लिये तिरुचिरापल्ली (अंग्रेज़ों द्वारा इसे त्रिचिनापोली कहा जाता था) से तंजौर (या तंजावुर) तट पर वेदारण्यम तक एक मार्च का आयोजन किया।
      • पटना में, अंबिका कांत सिन्हा के नेतृत्व में नमक बनाने और नमक कानून तोड़ने के लिये नखास तालाब को चुना गया था।
    • किसान और श्रमिक: दमनकारी करों, राजस्व प्रणालियों और नमक पर ब्रिटिश एकाधिकार के खिलाफ सक्रिय रूप से विरोध किया। कई लोगों ने भूमि राजस्व का भुगतान करने से इनकार कर दिया और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया।
    • शहरी मध्यम वर्ग: व्यापारी, सौदागर और पेशेवर लोग ब्रिटिश वस्तुओं तथा संस्थाओं के बहिष्कार में शामिल हुए एवं उन्होंने इस आंदोलन को आर्थिक और वैचारिक रूप से समर्थन दिया।
    • महिलाएँ: गांधीजी ने महिलाओं से विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने की अपील की थी। उनका मानना था कि महिलाएँ आंदोलन को और अधिक व्यापक तथा प्रभावशाली बना सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप, महिलाएँ जल्द ही आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगीं। उन्होंने शराब की दुकानों, अफीम के अड्डों और विदेशी कपड़े बेचने वाली दुकानों के बाहर धरना देने की शुरुआत की।
    • सरोजिनी नायडू और कमलादेवी चट्टोपाध्याय जैसी हस्तियों ने विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया, शराब की दुकानों पर धरना दिया और विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया।
    • छात्र: महिलाओं के साथ-साथ छात्रों और युवाओं ने विदेशी कपड़े तथा शराब के बहिष्कार में सबसे प्रमुख भूमिका निभाई।
    • मुसलमान: कुछ क्षेत्रों जैसे कि उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत (NWFP) में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भारी भागीदारी देखी गई। इसके अलावा, बंगाल के सेनहट्टा, त्रिपुरा, गैबांधा, बागुरा और नोआखली जैसे क्षेत्रों में भी मध्यम वर्ग के मुसलमानों की भागीदारी काफी महत्त्वपूर्ण थी।
    • व्यापारी और छोटे व्यापारी: वे बहुत उत्साही थे। व्यापारी संघ और वाणिज्यिक निकाय बहिष्कार को लागू करने में सक्रिय थे, खासकर तमिलनाडु एवं पंजाब में।
    • आदिवासी: मध्य प्रांत, महाराष्ट्र और कर्नाटक में आदिवासी सक्रिय भागीदार थे।
    • श्रमिक: बंबई, कलकत्ता, मद्रास, शोलापुर आदि में श्रमिकों ने भाग लिया।

    सामूहिक भागीदारी की सीमाएँ:

    • व्यापक भागीदारी के बावजूद, कुछ समूह, जैसे कि रियासतों के नागरिक और उद्योगपति, राजनीतिक या आर्थिक कारणों से या तो निष्क्रिय थे या हिचकिचा रहे थे।

    निष्कर्ष:

    दांडी तक की ऐतिहासिक नमक यात्रा ने हज़ारों आम भारतीयों को आकर्षित किया, जिससे नमक ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ विद्रोह का एक एकीकृत प्रतीक बन गया। इसने राष्ट्रवादी भागीदारी के दायरे का विस्तार किया, जिससे स्वतंत्रता विभिन्न समूहों के बीच एक साझा लक्ष्य बन गई। इस जन-आंदोलन ने बाद के आंदोलनों के लिये आधार तैयार किया और स्वतंत्रता के संकल्प को मज़बूत किया।

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