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Sambhav-2025

  • 10 Jan 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस-35: "जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दुनिया भर में एक समान नहीं है।" उदाहरणों के साथ विश्लेषण कीजिये कि कैसे विकासशील देश, विकसित देशों की तुलना में, जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जलवायु परिवर्तन और उसके वैश्विक प्रभाव को परिभाषित कीजिये।
    • जलवायु परिवर्तन के असमान प्रभावों पर चर्चा कीजिये।
    • उदाहरणों सहित समझाइये।
    • अंत में, प्रभावी उपाय सुझाइये।

    परिचय:

    जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक संकट है, जिसकी पहचान बढ़ते तापमान, पिघलती बर्फ की टोपियों और लगातार बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं से होती है। हालाँकि इसका प्रभाव पूरी दुनिया में एक जैसा नहीं है। जबकि सभी राष्ट्र चुनौतियों का सामना करते हैं, विकासशील देश अपनी भौगोलिक स्थिति, जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों पर आर्थिक निर्भरता और सीमित अनुकूलन क्षमता के कारण असमान रूप से प्रभावित होते हैं।

    मुख्य भाग:

    जलवायु परिवर्तन के असमान प्रभाव:

    • भौगोलिक जोखिम: विकासशील देश प्रायः उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थित होते हैं, जहाँ जलवायु परिवर्तन गंभीर सूखे, बाढ़ तथा तूफान के रूप में प्रकट होता है।
      • कुल मिलाकर, पृथ्वी वर्ष 2023 में 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध (1850-1900) के पूर्व-औद्योगिक औसत की तुलना में लगभग 2.45 डिग्री फारेनहाइट (या लगभग 1.36 डिग्री सेल्सियस) अधिक गर्म थी।
      • आर्कटिक क्षेत्र वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक गर्म हो रहा है, जिसके कारण बर्फ की चादरें और ग्लेशियर पिघल रहे हैं।
      • मालदीव और तुवालु जैसे निचले द्वीप राष्ट्रों को बढ़ते समुद्री स्तर के कारण अस्तित्व संबंधी खतरे का सामना करना पड़ रहा है।
    • आर्थिक भेद्यता: विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं, जो जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
      • विश्व बैंक का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन वर्ष 2030 तक अतिरिक्त 132 मिलियन लोगों को गरीबी में डाल सकता है, जो मुख्य रूप से विकासशील देशों में होंगे।
    • खाद्य सुरक्षा जोखिम: चरम मौसम की घटनाएँ और बढ़ता तापमान कृषि चक्र को बाधित करते हैं, खाद्य उत्पादन को कम करते हैं तथा कुपोषण को बढ़ाते हैं।
      • विश्व संसाधन संस्थान के अनुसार, अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन से वर्ष 2050 तक वैश्विक कृषि उत्पादकता में 17% की कमी आ सकती है
      • भारत में अनियमित मानसून और बढ़ते तापमान के कारण फसल की पैदावार में क्षरण हुआ है, जिससे कृषि पर निर्भर 58% ग्रामीण आबादी प्रभावित हुई है।
    • स्वास्थ्य प्रभाव: विकासशील देशों में स्वास्थ्य देखभाल का बुनियादी ढाँचा कमज़ोर होता है और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न रोगों से निपटने के लिये उनके पास सीमित संसाधन होते हैं, जिसके कारण उन्हें उच्च स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
      • अफ्रीकी देशों में बढ़ते तापमान के कारण मलेरिया और डेंगू जैसी वेक्टर जनित बीमारियों की समस्याएँ बढ़ गई हैं।
    • सामाजिक और संस्थागत कारक: कमज़ोर शासन, आपदा प्रबंधन प्रणालियों की कमी और अपर्याप्त तकनीकी पहुँच जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बढ़ाती है।
      • चक्रवात इडाई (2019) ने मोज़ाम्बिक में अपर्याप्त चेतावनी प्रणालियों और आपातकालीन तैयारियों के कारण बड़े पैमाने पर नुकसान किया।
      • जबकि ऑस्ट्रेलिया बढ़ते तापमान के कारण भीषण वनाग्नि का सामना कर रहा है, इसकी मज़बूत आपदा प्रबंधन प्रणाली और वित्तीय संसाधन शीघ्र पुनर्निर्माण में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
    • स्मुत्थानशीलता और अनुकूलन: विकसित राष्ट्र उन्नत प्रौद्योगिकी, मज़बूत संस्थानों और वित्तीय संसाधनों से लाभान्वित होते हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी समुत्थानशीलता को बढ़ाते हैं।
      • नीदरलैंड बढ़ते समुद्र स्तर का सामना करने के लिये उन्नत जल प्रबंधन प्रणालियों का उपयोग करता है, जिससे उसकी जनसंख्या को न्यूनतम व्यवधान का सामना करना पड़ता है।

    भेद्यता को दूर करने के उपाय

    • वैश्विक सहयोग:
      • कमज़ोर देशों की सहायता के लिये पेरिस समझौते और हानि एवं क्षति कोष जैसे अंतर्राष्ट्रीय ढाँचों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना चाहिये।
    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और वित्तीय सहायता:
      • जलवायु अनुकूलता में सुधार के लिये विकासशील देशों को हरित प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण को सुगम बनाना चाहिये।
        • भारत और फ्राँस के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) सौर ऊर्जा की कमी वाले क्षेत्रों, विशेष रूप से अफ्रीका तथा दक्षिण एशिया में सौर प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुविधाजनक बनाने पर काम करता है।
      • संवेदनशील क्षेत्रों में अनुकूलन प्रयासों में सहायता के लिये ग्रीन क्लाइमेट फंड जैसे तंत्रों के माध्यम से धन जुटाना चाहिये।
        • जलवायु वित्त पर नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) का लक्ष्य वर्ष 2035 तक विकासशील देशों के लिये जलवायु वित्त को बढ़ाकर 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष करना है।
    • स्थानीय क्षमताओं को सुदृढ़ बनाना:
      • विकासशील देशों में आपदा तैयारी, पूर्व चेतावनी प्रणालियों और सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये।
        • एशिया-प्रशांत आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) पहल ने संवेदनशील क्षेत्रों को समुदाय-आधारित जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियाँ तैयार करने के लिये सशक्त बनाया है।
    • जलवायु-स्मार्ट कृषि:
      • जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिये स्थायी कृषि पद्धतियों और सूखा प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देना चाहिये।
      • इसमें सूखा प्रतिरोधी फसल किस्मों को अपनाना, जल-कुशल सिंचाई पद्धतियाँ तथा बदलती जलवायु परिस्थितियों में भी कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिये मृदा संरक्षण तकनीकें शामिल हैं।

    निष्कर्ष:

    सतत् विकास लक्ष्य 13 जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देता है, जिसमें विशेष ध्यान विकासशील देशों को अनुकूल बनाने में मदद करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने पर दिया गया है। इस विचार को अपनाकर, हम एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर सकते हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हो, जहाँ हर किसी को अनुकूलित करने, विकसित करने और भविष्य में जलवायु संकट से बचने के लिये समुचित संसाधन उपलब्ध हों।

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