Sambhav-2025

दिवस-14: चोलों ने प्रशासनिक सुधारों, मंदिर वास्तुकला, और कला में अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के माध्यम से भारतीय इतिहास को कैसे प्रभावित किया? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

17 Dec 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • चोल वंश का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • प्रशासनिक नवाचारों, मंदिर वास्तुकला और कलात्मक उत्कृष्टता में उनकी स्थायी विरासत का उल्लेख कीजिये।
  • अंत में, भारतीय इतिहास और संस्कृति पर उनके दीर्घकालिक प्रभाव का सारांश दीजिये।

परिचय:

चोल राजवंश, जिसने 9वीं से 13वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत पर शासन किया, भारतीय इतिहास में सबसे प्रभावशाली राजवंशों में से एक माना जाता है। चोलों ने प्रभावी शासन, भव्य मंदिर वास्तुकला, और अद्वितीय कलात्मक उपलब्धियों के माध्यम से एक ऐसी स्थायी विरासत स्थापित की, जिसने दक्षिण भारतीय संस्कृति तथा पहचान को गहराई से प्रभावित एवं परिभाषित किया।

मुख्य भाग:

प्रशासनिक नवाचार

  • विकेंद्रीकृत शासन: चोलों ने एक उच्च संगठित और विकेंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की।
    • स्थानीय स्वशासी संस्थाएँ, जैसे सभा (ब्राह्मण गाँवों की सभाएँ) और उर (गैर-ब्राह्मण गाँवों की सभाएँ), सिंचाई, कर संग्रह और न्याय सहित स्थानीय प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार थीं।
  • राजस्व प्रणाली: चोलों ने भूमि की उर्वरता और उत्पादकता का आकलन करने के लिये भूमि सर्वेक्षण किया, जो कराधान प्रणाली का आधार बन गया।
    • भू-राजस्व प्रणाली फसल की पैदावार के सटीक अनुमान पर आधारित थी, जिससे यह सुनिश्चित होता था कि कर निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से लगाया जाए।
  • नौसेना और सैन्य शक्ति: चोलों की एक शक्तिशाली नौसेना थी, जिसने उन्हें समुद्री व्यापार मार्गों पर नियंत्रण स्थापित करने और विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभाव विस्तार करने में सक्षम बनाया।
    • श्रीलंका और मालदीव पर उनकी विजय, साथ ही मलय द्वीपसमूह में श्रीविजय साम्राज्य की पराजय, उनकी समुद्री शक्ति को दर्शाती है।

मंदिर वास्तुकला

  • द्रविड़ शैली के अग्रदूत: चोल मंदिर वास्तुकला ने द्रविड़ शैली को परिभाषित किया, जिसमें विशाल गोपुरम (प्रवेश द्वार टॉवर), जटिल रूप से नक्काशीदार मूर्तियाँ और भव्य मंदिर परिसर इसकी प्रमुख विशेषताएँ थीं।
  • राजा राज चोल प्रथम द्वारा निर्मित तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और चोल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है।
  • मंदिरों की कल्याणकारी भूमिका: मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र के रूप में बल्कि आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में भी कार्य करते थे।
  • मंदिरों को शाही परिवार, कुलीन वर्ग और धनी संरक्षकों से व्यापक दान प्राप्त हुआ। इन निधियों से शिक्षा, कला और व्यापार जैसी विभिन्न गतिविधियों को बढ़ावा मिला।

कलात्मक उत्कृष्टता

  • कांस्य मूर्तियाँ: चोल शासक कांस्य ढलाई में पारंगत थे, उन्होंने भारतीय कला में कुछ सर्वाधिक प्रतिष्ठित मूर्तियाँ बनाईं।
  • नटराज (नृत्य करते शिव) मूर्ति आध्यात्मिक और कलात्मक अभिव्यक्ति का एक आदर्श मिश्रण प्रदर्शित करती है।
  • साहित्य और संगीत: चोल तमिल साहित्य के महान संरक्षक थे, उन्होंने पेरियापुराणम जैसी कृतियों और तमिल संतों की रचनाओं का समर्थन किया।
    • उन्होंने भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्य और संगीत को भी प्रोत्साहित किया।
  • कलाकारों के लिये समर्थन: शासकों के उदार संरक्षण के कारण चोलों के शासन में कारीगरों और कलाकारों का विकास हुआ, जिससे कला एवं संस्कृति का संरक्षण तथा विकास सुनिश्चित हुआ।
  • कंबन रामायण, या रामावतारम, 12वीं शताब्दी के कवि कंबर द्वारा रचित एक प्रसिद्ध तमिल साहित्यिक कृति है, जिसे चोल शासक कुलोत्तुंग तृतीय के संरक्षण में रचा गया था।

निष्कर्ष

भारतीय इतिहास में चोलों का योगदान अद्वितीय है। उनकी प्रशासनिक प्रणाली ने विकेंद्रीकृत शासन की नींव रखी, उनकी मंदिर वास्तुकला उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियों का एक स्थायी प्रतीक बनी हुई है और उनके कलात्मक नवाचारों ने भारतीय कला को नवीन ऊँचाइयों तक पहुँचाया जो वैश्विक महत्त्व रखती है।