दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- संगम साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्राचीन दक्षिण भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं की झलक के रूप में संगम साहित्य की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।
|
परिचय:
संगम साहित्य, जो लगभग 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी तक की तमिल कविता का एक महत्वपूर्ण संग्रह है, प्राचीन दक्षिण भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिये एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करता है। यह परिवर्तनकारी युग के दौरान तमिल लोगों के जीवन, मूल्यों और दर्शन को उजागर करता है एवं उनकी पहचान, सामाजिक संरचना तथा कलात्मक अभिव्यक्ति के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
मुख्य भाग:
सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत के रूप में संगम साहित्य:
- नैतिक और पारस्परिक विषय: संगम साहित्य में विभिन्न विषय शामिल हैं, जिनमें प्रमुख रूप से प्रेम (अकम) और वीरता (पुरम) शामिल हैं।
- अकम: कविताएँ रोमांटिक रिश्तों और प्रेम के भावनात्मक परिदृश्यों का उत्सव मनाती हैं, जो अक्सर प्रकृति से गहरे जुड़ाव को प्रदर्शित करती हैं।
- पुरम: साहित्य में वीरतापूर्ण कार्यों, युद्ध और बहादुरी के गुणों का भी वर्णन है, जो सामाजिक आदर्शों को प्रतिबिंबित करता है।
- तिरुवल्लुवर द्वारा रचित "थिरुक्कुरल" एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण संगम ग्रंथ है, जो नैतिकता और आचारिक दर्शन के सिद्धांतों को समाहित करता है तथा शासन, मित्रता, न्याय जैसे विभिन्न विषयों पर ज्ञान प्रदान करता है।
- सामाजिक पदानुक्रम: ये ग्रंथ विभिन्न सामाजिक वर्गों के अस्तित्व को उजागर करते हैं और व्यवसायों, जीवनशैली तथा सामुदायिक भूमिकाओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हैं।
- पूरनानुरू में विभिन्न समूहों जैसे राजाओं (अरसर ), सैनिकों (पोरुनर ) और किसानों (वेल्लालर ) की भूमिकाओं का वर्णन किया गया है।
- लैंगिक भूमिकाएँ: महिलाओं को विविध भूमिकाओं में दर्शाया गया है, जिनमें पोषण करने वाली से लेकर मुखर चरित्र तक शामिल हैं, जो लैंगिक गतिशीलता की सूक्ष्म समझ को प्रदर्शित करता है।
- शिलप्पादिकारम में कन्नगी को न्याय और सदाचार की एक प्रबल प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपने पति की अन्यायपूर्ण मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिये संघर्ष करती है।
- अव्वैयार, नच्चेल्लैयार और कक्कईपदिनियार जैसी महिला कवयित्रियाँ थीं जिन्होंने तमिल साहित्य में योगदान दिया।
- भाषायी योगदान: कवियों द्वारा प्रयुक्त परिष्कृत शैली और अलंकारिक तकनीकों ने तमिल साहित्य को समृद्ध किया है तथा बाद की पीढ़ियों के लेखकों को प्रभावित किया है।
- तोलकाप्पियम् नामक व्याकरण ग्रंथ ने तमिल काव्य और भाषा के नियमों को संहिताबद्ध किया।
- ऐतिहासिक विवरण: संगम ग्रंथ अमूल्य ऐतिहासिक दस्तावेज़ हैं, जिनमें प्राचीन दक्षिण भारत के भूगोल, राजनीति और व्यापार प्रथाओं का विवरण मिलता है।
- अकनानूरू ने चेर, चोल और पांड्य राजवंशों का उल्लेख किया है तथा उनकी प्रतिद्वंद्विता, गठबंधन तथा शासन के बारे में जानकारी दी है।
- व्यापार और अंतःक्रियाएँ: व्यापार मार्गों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के विवरण आर्थिक परिदृश्य तथा विभिन्न समुदायों के बीच अंतःक्रियाओं को दर्शाते हैं।
- मणिमेकलाई में समुद्री व्यापार मार्गों और बंदरगाहों में हलचल भरी गतिविधियों का वर्णन किया गया है तथा विभिन्न समुदायों के बीच आपसी संबंधों को दर्शाया गया है।
निष्कर्ष:
संगम साहित्य ने समकालीन भारतीय संस्कृति में एक गहरी छाप छोड़ी है। इसके मूल्य और दर्शन आधुनिक साहित्य, कला तथा भारतीय पहचान को प्रभावित करते हुए प्रतिध्वनित होते रहते हैं। काव्यात्मक परिष्कार और ऐतिहासिक प्रामाणिकता को जोड़ते हुए, यह अतीत को वर्तमान से संलग्न करता है तथा अनुकूलता, एकता एवं उत्कृष्टता की खोज से संबंधित महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ प्रदान करता है।