-
03 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस-79: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता बनाए रखने में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। साथ ही, धोखाधड़ी, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) और शासन संबंधी चुनौतियों से निपटने में इसकी विनियामक नीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता में RBI की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- इसके विनियामक उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।
- आगे की राह सुझाइये।
- उचित रूप से निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये बैंकिंग क्षेत्र को विनियमित करने और उसकी निगरानी करने के लिये ज़िम्मेदार सर्वोच्च मौद्रिक प्राधिकरण है। यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, तरलता का प्रबंधन करने, बैंकिंग संकटों को रोकने और शासन संबंधी मुद्दों से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मुख्य भाग:
बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता में RBI की भूमिका
- विनियामक निरीक्षण और जोखिम प्रबंधन
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 RBI को वाणिज्यिक बैंकों को विनियमित करने, विवेकपूर्ण मानदंड निर्धारित करने और निरीक्षण करने का अधिकार देता है।
- बेसल III मानदंडों के कार्यान्वयन से पूंजी पर्याप्तता सुनिश्चित होती है तथा प्रणालीगत जोखिम कम होता है।
- गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) से निपटना
- त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) फ्रेमवर्क (2017) विफलता से बचने के लिये कमज़ोर बैंकों पर प्रतिबंध लगाता है।
- दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), 2016 संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के तीव्र समाधान को सक्षम बनाती है।
- कोविड-19 के दौरान लागू की गई ऋण पुनर्गठन योजनाओं ने MSME और कॉर्पोरेट क्षेत्रों को वित्तीय राहत प्रदान की।
- बैंकिंग धोखाधड़ी पर अंकुश लगाना और शासन को मज़बूत बनाना
- धोखाधड़ी जोखिम निगरानी उपकरण जैसे केवाईसी मानदंड, AI-आधारित लेन-देन निगरानी और जोखिम-आधारित पर्यवेक्षण।
- सख्त लेखापरीक्षा एवं रिपोर्टिंग मानक वित्तीय रिपोर्टिंग में पारदर्शिता में सुधार करते हैं।
- डिजिटल भुगतान सुरक्षा उपाय इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन में सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
- मौद्रिक नीति और तरलता प्रबंधन
- रेपो दर समायोजन मुद्रास्फीति और ऋण उपलब्धता को नियंत्रित करता है।
- नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और सांविधिक तरलता अनुपात (SLR) विनियम प्रणाली में तरलता सुनिश्चित करते हैं।
- तरलता समायोजन सुविधा (LAF) और बाज़ार स्थिरीकरण योजना (MSS) अल्पकालिक तरलता झटकों का प्रबंधन करती हैं।
- डिजिटल बैंकिंग और साइबर सुरक्षा विनियम
- डिजिटल भुगतान पर विनियमन - UPI, भारत बिल भुगतान प्रणाली (BBPS) और रुपे को बढ़ावा देना।
- बैंकों के लिये साइबर सुरक्षा ढाँचा (2016) - साइबर अनुकूलन को मज़बूत करने के लिये दिशा-निर्देश।
- डिजिटल ऋण दिशा-निर्देश (2022) – फिनटेक परिचालन में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
- उदाहरण: RBI ने KYC गैर-अनुपालन और साइबर सुरक्षा चिंताओं के कारण PAYTM पेमेंट्स बैंक को नए ग्राहकों को रोकने का निर्देश दिया।
RBI के उपायों की प्रभावशीलता
- सफलता
- PCA रूपरेखा और IBC समाधान के कारण NPA में कमी आई है।
- उदाहरण: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) का सकल NPA वर्ष 2018 में 11.2% से घटकर वर्ष 2023 में 3.9% हो गया (RBI वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, 2023)।
- संकटग्रस्त परिसंपत्तियों का त्वरित समाधान: IBC ने वर्ष 2023 तक 9.92 लाख करोड़ रुपए मूल्य की संकटग्रस्त परिसंपत्तियों का समाधान किया।
- यस बैंक (2020) और लक्ष्मी विलास बैंक (2020) में RBI के हस्तक्षेप से बैंकिंग विफलताओं को रोका गया।
- धोखाधड़ी का पता लगाने में सुधार - AI-संचालित वास्तविक समय की निगरानी घोटालों को रोक रही है।
- उदाहरण: RBI की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS) ने संभावित अनियमितताओं को चिह्नित किया, जिससे ABG शिपयार्ड ऋण धोखाधड़ी (₹23,000 करोड़) जैसे घोटालों को रोकने में मदद मिली।
- प्रभावी संकट प्रबंधन - RBI के नेतृत्व में विलय से कमज़ोर बैंकों को मज़बूती मिली।
- उदाहरण: देना बैंक और विजया बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय (2019) और यस बैंक बेलआउट (2020) ने बैंकिंग क्षेत्र को स्थिर कर दिया।
- PCA रूपरेखा और IBC समाधान के कारण NPA में कमी आई है।
- चुनौतियाँ और सीमाएँ
- NPA समाधान में देरी - IBC के अंतर्गत कानूनी देरी से वसूली प्रभावित होती है।
- उदाहरण: एस्सार स्टील के दिवालियेपन मामले में 900 दिन से अधिक का समय लग गया, जबकि IBC की समाधान की समय-सीमा 180-270 दिन थी।
- बैंकिंग धोखाधड़ी जारी है – डिजिटल बैंकिंग घोटाले और साइबर खतरे बढ़ रहे हैं।
- उदाहरण: वर्ष 2018 में PNB में 14,000 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी ने स्विफ्ट निगरानी प्रणाली की कमज़ोरियों को उजागर किया।
- विनियामक मध्यस्थता - छाया बैंकिंग (NBFC) RBI के प्रत्यक्ष नियंत्रण से परे जोखिम उत्पन्न करती है।
- उदाहरण: IL&FS संकट (2018) ने NBFC में तरलता असंतुलन को उजागर किया, जिससे ऋण संकट उत्पन्न हो गया।
- NPA समाधान में देरी - IBC के अंतर्गत कानूनी देरी से वसूली प्रभावित होती है।
आगे की राह
- बैंकिंग प्रशासन को मज़बूत करें - कॉर्पोरेट प्रशासन के कठोर मानदंड लागू करें।
- उदाहरण: वर्ष 2022 में RBI का निर्देश कि प्रमोटर प्रभाव को रोकने के लिये निजी बैंकों में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति की जाए।
- साइबर सुरक्षा विनियमों को बढ़ाना – वास्तविक समय धोखाधड़ी का पता लगाने वाली प्रणालियों में सुधार करना।
- उदाहरण: KYC और साइबर सुरक्षा चूक के कारण RBI द्वारा PAYTM पेमेंट्स बैंक पर प्रतिबंध (2024) सख्त डिजिटल निगरानी पर प्रकाश डालता है।
- NPA समाधान में तेज़ी लाएँ – कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी लाने के लिये IBC को सुव्यवस्थित करें।
- उदाहरण: RBI का जून 2023 का 'समझौता निपटान' ढाँचा छोटे NPA के तेज़ी से समाधान की अनुमति देता है।
- बेहतर डिजिटल पर्यवेक्षण - फिनटेक और NBFC पर्यवेक्षण को मज़बूत करना।
- उदाहरण: वर्ष 2022 में जारी RBI के डिजिटल ऋण दिशा-निर्देश फिनटेक ऋणदाताओं द्वारा अपनाई जाने वाली अनैतिक और शोषणकारी प्रथाओं पर रोक लगाते हैं।
निष्कर्ष:
RBI ने बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये सक्रिय कदम उठाए हैं, लेकिन धोखाधड़ी, NBFC से जुड़े जोखिम और धीमा NPA समाधान जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। कॉर्पोरेट प्रशासन, साइबर सुरक्षा और डिजिटल बैंकिंग निगरानी को मज़बूत करने से अधिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित होगी।