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03 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
संस्कृति
दिवस-2: भारतीय चित्रकला परंपरा के विकास को धर्म, दर्शन और राजनीति ने कैसे आकार दिया? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
दृष्टिकोण:
- भारतीय चित्रकला परंपराओं का एक संक्षिप्त परिचय देकर चर्चा कीजिये।
- भारतीय चित्रकला पर धर्म के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।
- भारतीय चित्रकला पर दार्शनिक प्रभाव का उल्लेख कीजिये।
- भारतीय चित्रकला पर राजनीतिक प्रभावों का मूल्यांकन कीजिये।
- भारतीय चित्रकला परंपराओं की स्थायी विरासत को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।
परिचय:
भित्ति चित्र, लघुचित्र और लोक कला जैसी भारतीय चित्रकला परंपराएँ सहस्राब्दियों से विकसित हुईं, जो उपमहाद्वीप को आकार देने वाले विविध सांस्कृतिक, धार्मिक तथा दार्शनिक प्रभावों का प्रतीक हैं एवं कलात्मक अभिव्यक्ति की समृद्ध विरासत को उजागर करती हैं। धर्म, दर्शन और राजनीति की परस्पर क्रिया ने इन कलात्मक रूपों को परिभाषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे वे केवल सौंदर्य की खोज तक सीमित न रहकर आध्यात्मिक, वैचारिक एवं राष्ट्रीय पहचान के माध्यम के रूप में विकसित हो सके हैं।
धर्म का प्रभाव
- हिंदू धर्म:
- हिंदू विद्या और आध्यात्मिकता ने भारतीय चित्रकला के विषयों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। कलाकारों ने देवताओं, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों तथा आध्यात्मिक अनुभवों को विभिन्न शैलियों में चित्रित किया, जैसे कि पट्टचित्र, जो जटिल विवरण एवं जीवंत रंगों की विशेषता है।
- उदाहरण: मधुबनी चित्रकला में प्रायः धार्मिक विषयों का चित्रण किया जाता है, जिसमें देवी-देवताओं के चित्र भक्ति और सांस्कृतिक आख्यानों को सजीव रूप प्रदान करते हैं।
- बौद्ध धर्म:
- प्राचीन भारत में विकसित बौद्ध कला ने बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं को केंद्र में रखा, जिसे थंगका चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया। ये चित्र ध्यान और आध्यात्मिक साधना में सहायक के रूप में कार्य करते हैं।
- उदाहरण: अजंता की गुफाओं में भित्तिचित्रों में जातक कथाओं को दर्शाया गया है तथा दृश्य कथा के माध्यम से बौद्ध धर्म की नैतिक शिक्षाओं को दर्शाया गया है।
- इस्लाम:
- मुगल काल में भारतीय और फारसी कलात्मक परंपराओं का मिश्रण देखने को मिला। मुगल चित्रकला में दरबार के दृश्य, प्रकृति और धार्मिक प्रतीकवाद को दर्शाया जाता था, जिसे अक्सर सम्राटों द्वारा अपने शासनकाल को गौरवान्वित करने के लिये बनवाया जाता था।
- उदाहरण: बसावन और दसवंत जैसे कलाकारों ने उत्कृष्ट लघुचित्रों का निर्माण किया, जिनमें भारतीय विषय-वस्तु को फारसी सौंदर्यशास्त्र के साथ जोड़ा गया, जो उस समय की समन्वयात्मक संस्कृति को दर्शाता है।
दर्शनशास्त्र का प्रभाव
- भक्ति आंदोलन:
- इन दार्शनिक विचारधाराओं ने व्यक्तिगत भक्ति और आध्यात्मिक अनुभव को प्राथमिकता दी, जिससे कलाकारों को अपने कार्यों में दिव्य प्रेम तथा संबंध को चित्रित करने के लिये प्रभावित किया।
- उदाहरण: कलाकारों ने राधा-कृष्ण को दिव्य प्रेम के प्रतीक के रूप में चित्रित किया तथा आध्यात्मिक आदर्शों के साथ मानवीय भावनाओं के अंतर्संबंध पर प्रकाश डाला।
- बंगाल में पुनर्जागरण:
- 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के प्रारंभ में बंगाल पुनर्जागरण के दौरान भारतीय दर्शन में रुचि का पुनरुत्थान हुआ।
- उदाहरण: अबनिंद्रनाथ टैगोर की कृतियाँ शास्त्रीय और समकालीन विचारों का मिश्रण दर्शाती हैं तथा भारतीय आध्यात्मिकता एवं सांस्कृतिक गौरव पर बल देती हैं।
राजनीति का प्रभाव
- संरक्षण:
- शासकों ने अपनी शक्ति और सांस्कृतिक आदर्शों को प्रदर्शित करने वाली कलाकृतियाँ बनवाकर चित्रकला परंपरा के विकास में एक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- मुगल सम्राट अकबर ने तस्वीरखाना नामक एक औपचारिक कलात्मक स्टूडियो की स्थापना की, जहाँ कलाकारों को वेतन पर रखा जाता था और वे अपनी शैली विकसित करते थे।
- औपनिवेशिक प्रभाव:
- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने कलात्मक परिदृश्य को परिवर्तित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप एक प्रतिक्रियावादी आंदोलन को बढ़ावा मिला, जिसमें कलाकारों ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया।
- उदाहरण: बंगाल स्कूल ने राष्ट्रीय गौरव को प्रोत्साहित करने के लिये धार्मिक विषयों का उपयोग किया तथा भारतीय संस्कृति को निम्नतर बताने वाले औपनिवेशिक आख्यानों का प्रतिकार किया।
- स्वतंत्रता के बाद की कला:
- वर्ष 1947 के बाद, कलाकारों ने सामाजिक न्याय, पहचान और सांस्कृतिक धरोहर के विषयों की खोज की, जो उभरते राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को दर्शाते थे।
- उदाहरण: एम.एफ. हुसैन जैसे आधुनिक कलाकारों ने समकालीन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को संबोधित करने के लिये प्रतीकों एवं विषयों को शामिल किया।
निष्कर्ष
इन परस्पर जुड़े प्रभावों ने भारतीय कला के सौंदर्य और विषयवस्तु को ही आकार नहीं दिया, बल्कि यह व्यापक सामाजिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक संदर्भों का भी प्रतिबिंब बन गई है। इन प्रभावों की धरोहर समकालीन भारतीय कला में स्पष्ट रूप से प्रकट होती है, जो हमें जटिल पहचानों और अनुभवों को व्यक्त करने तथा उनसे निपटने के लिये रचनात्मकता की स्थायी शक्ति की याद दिलाती है।