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19 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 16: मध्यकालीन भारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना पर अलाउद्दीन खिलजी के बाज़ार सुधारों के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- अलाउद्दीन खिलजी और उसके शासनकाल का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- उनके शासन के दौरान बाज़ार सुधारों के प्रभाव का विश्लेषण कीजियेरें।
- अपने सुधार की मिश्रित विरासत को स्वीकार करते हुए निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
1296 ई. से 1316 ई. तक दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन खिलजी को उनके महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक और आर्थिक सुधारों के लिये जाना जाता है। उनके शासनकाल में अर्थव्यवस्था को स्थिर करने, कीमतों को नियंत्रित करने और राजस्व को अधिकतम करने के उद्देश्य से कई बाज़ार सुधारों को लागू किया गया।
मुख्य भाग:
अलाउद्दीन खिलजी के प्रमुख बाज़ार सुधार:
- मूल्य नियंत्रण: अलाउद्दीन खिलजी ने प्रत्येक वस्तु के लिये एक निश्चित दर तालिका शुरू की, जिसमें सामानों की अधिकतम कीमत निर्धारित की गई थी, जिस पर उन्हें बेचा जा सकता था।
- प्रशासन ने बाज़ारों में निर्धारित दरों पर माल की बिक्री सुनिश्चित करने तथा इसकी देखरेख के लिये शाहना-ए-मंडी नामक अधिकारियों को नियुक्त किया।
- बाज़ार का विभाजन: वस्तुओं की कीमत तय करने के बाद अलाउद्दीन ने बाज़ार का विभाजन किया। उसने बाज़ार को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया–
- शहर के प्रत्येक मोहल्ले में सहायक नियंत्रण दुकानों के साथ केंद्रीय अनाज बाज़ार या मंडी।
- सेर-ए-अदल, कपड़ों और विलासिता की वस्तुओं के लिये एक विशिष्ट बाज़ार।
- दासों, घोड़ों और मवेशियों का बाज़ार।
- अनाज भंडारण और आपूर्ति नियंत्रण: अलाउद्दीन ने अनाज आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिये भी नीतियाँ लागू कीं।
- अनाज भंडारण सुविधाओं की स्थापना से अभाव के समय आपूर्ति का प्रबंधन करने में मदद मिली।
- इन उपायों ने यह सुनिश्चित किया कि अकाल या युद्ध के समय में भी सेना और सामान्य जनता दोनों को भोजन की आपूर्ति बनी रहे।
- बाज़ार नियंत्रक की नियुक्ति: उन्होंने मलिक कबूल उलुग खानी को अनाज बाज़ारों का नियंत्रक नियुक्त किया।
- व्यापारियों का पंजीकरण: व्यापारियों को अपना माल बेचने से पहले बाज़ार विभाग में पंजीकरण कराना आवश्यक था।
- दुकानदारों को दंडित करना: उन दुकानदारों को कड़ी सज़ा दी गई जो निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य पर सामान बेचकर या गलत वज़न का उपयोग करके नियमों का उल्लंघन करते थे।
अर्थव्यवस्था और समाज पर प्रभाव:
- मुद्रास्फीति पर नियंत्रण:
- कीमतों को स्थिर करके, अलाउद्दीन मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में सक्षम था, जो युद्ध या बाहरी खतरों के समय विशेष रूप से लाभदायक था।
- राज्य के लिये राजस्व सृजन:
- बाज़ार सुधारों से राज्य के लिये राजस्व का एक स्थिर प्रवाह उत्पन्न करने में मदद मिली, जिसका उपयोग सैन्य अभियानों, सार्वजनिक कल्याण और प्रशासन के लिये किया गया।
- किसानों और कृषि पर प्रभाव:
- निश्चित अनाज कीमतों ने किसानों को अपनी उपज उचित दरों पर बेचने में मदद की, जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण होने वाले जोखिम कम हो सके।
- व्यापार और वाणिज्य का विकास:
- कीमतों के विनियमन और मानकीकृत मुद्रा की शुरुआत ने आंतरिक तथा बाह्य व्यापार दोनों को प्रोत्साहित करने में मदद की।
- सामाजिक गतिशीलता और आर्थिक समानता:
- बाज़ार सुधारों से आम लोगों को लाभ हुआ क्योंकि इससे यह सुनिश्चित हुआ कि बुनियादी वस्तुएँ सस्ती कीमतों पर उपलब्ध हों।
- शहरीकरण और बाज़ार विस्तार:
- शहरी केंद्र वाणिज्य के केंद्र बन गए, जिससे कारीगरों, व्यापारियों और अन्य पेशेवरों को बेहतर अवसर उपलब्ध हुए।
सीमाएँ और आलोचनाएँ:
- प्रशासनिक अतिक्रमण: इन नीतियों को लागू करने के लिये बनाई गई व्यापक नौकरशाही के कारण प्रशासन के निचले स्तरों पर भ्रष्टाचार और अकुशलता उत्पन्न हो गई।
- स्थानीय बाज़ार गतिशीलता का दमन: स्थानीय बाज़ार गतिशीलता के इस दमन के कारण व्यापारियों में असंतोष उत्पन्न हो गया, जो आपूर्ति और मांग की वास्तविक समय स्थितियों के अनुसार कीमतों को समायोजित करने में असमर्थ थे।
- अल्पकालिक सफलता: राज्य के लिये अस्थिर बाज़ार स्थितियों के मद्देनज़र विनियमन प्रणाली को बनाए रखना कठिन हो गया, विशेष रूप से जब बाहरी खतरों ने राज्य के नियंत्रण को कमज़ोर कर दिया।
निष्कर्ष:
अलाउद्दीन खिलजी के बाज़ार सुधार, अर्थव्यवस्था को स्थिर करने, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और राज्य के राजस्व को बढ़ाने के लिये साहसिक प्रयास थे। हालाँकि इन सुधारों की दीर्घकालिक स्थिरता प्रशासनिक चुनौतियों और स्थानीय बाज़ार गतिशीलता के दमन द्वारा सीमित थी। फिर भी, उनकी बाज़ार नीतियाँ एक शासक के रूप में उनकी विरासत का एक महत्त्वपूर्ण पहलू बनी हुई हैं, जिन्होंने अधिक नियंत्रित और विनियमित अर्थव्यवस्था बनाने की मांग की।