Sambhav-2025

दिवस- 3: भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देने में 'रवींद्र संगीत' के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

04 Dec 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • ‘रवींद्र संगीत’ के बारे में संक्षेप में बताइये।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देने में 'रवींद्र संगीत' के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष निकालिये।

परिचय:

‘रवींद्र संगीत’ का तात्पर्य रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे और संगीतबद्ध गीतों से है, जिसमें काव्यात्मक बोलों के साथ समृद्ध धुनें भी शामिल हैं। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में बंगाली पुनर्जागरण के दौरान विकसित ये गीत उस समय की भावना को व्यक्त करते हैं, जिसमें व्यक्तिगत तथा सामाजिक दोनों तरह के विषयों को संबोधित किया जाता है।

मुख्य भाग: 

'रवींद्र संगीत' का महत्त्व: 

  •  सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देना
    • सांस्कृतिक पहचान: रवींद्र संगीत बंगाली संस्कृति, परंपराओं और त्योहारों का उत्सव है, जो अपने श्रोताओं में एक गहरी पहचान तथा आत्मीयता का अहसास उत्पन्न करता है।
    • लोक तत्त्वों का एकीकरण: रवींद्र संगीत में स्थानीय लोक संगीत को शामिल करने से क्षेत्रीय परंपराओं को बढ़ावा मिलता है और विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों की सराहना को प्रोत्साहन मिलता है।
      • "अमरा शोबाई राजा"  जैसे गीत लोक धुनों से प्रेरित होते हैं तथा विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों की सराहना को प्रोत्साहित करते हैं।
  • सामाजिक टिप्पणी और जागरूकता
    • सामाजिक मुद्दों पर चर्चा: टैगोर के गीत अक्सर लैंगिक समानता, सांप्रदायिक सद्भाव और शिक्षा सहित सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं, जिससे वे प्रासंगिक तथा विचारोत्तेजक बन जाते हैं।
    • गीत के माध्यम से सशक्तीकरण: "चुरा बोलेछी शुंडोरी" जैसे गीत प्रगतिशील आदर्शों को व्यक्त करते हैं, श्रोताओं को उनकी सामाजिक ज़िम्मेदारियों पर विचार करने और परिवर्तन का समर्थन करने के लिये सशक्त बनाते हैं।
  •  स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका
    • प्रतिरोध का गान: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, ‘रवींद्र संगीत’ एकता और प्रतिरोध का प्रतीक बन गया, जिसने औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ सामूहिक संघर्ष को प्रेरित किया।
      • वर्ष 1905 में बंगाल के ब्रिटिश विभाजन के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन के दौरान, रवींद्रनाथ टैगोर ने "आमार सोनार बांग्ला" की रचना की।
      • "एकला चलो रे" ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आत्मनिर्भरता और दृढ़ संकल्प को प्रेरित किया।
  •  शैक्षिक प्रभाव
    • संस्थागत संवर्द्धन: टैगोर द्वारा स्थापित शांतिनिकेतन जैसी संस्थाएँ रवींद्र संगीत के विषय में छात्रों को शिक्षित करने, इसके संरक्षण और प्रासंगिकता को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • सांस्कृतिक पाठ्यक्रम: इन गीतों को शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल करने से युवा पीढ़ी में सांस्कृतिक जागरूकता और प्रशंसा उत्पन्न करने में मदद मिलती है।
  •  भावनात्मक और आध्यात्मिक अनुनाद
    • सार्वभौमिक विषयवस्तु: रवींद्र संगीत में प्रेम, प्रकृति और आध्यात्मिकता के विषय सार्वभौमिक रूप से प्रतिध्वनित होते हैं, जिससे विभिन्न पृष्ठभूमियों से आने वाले श्रोता भावनात्मक रूप से संगीत से जुड़ जाते हैं।
    • चिकित्सीय मूल्य: धुनों और गीतों का उपयोग अक्सर चिकित्सा तथा माइंडफुलनेस प्रथाओं में किया जाता है, जो मानसिक कल्याण पर संगीत के गहन प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं।
  • समकालीन प्रासंगिकता
    • वैश्विक प्रभाव: रवींद्रनाथ टैगोर की नोबेल पुरस्कार विजेता काव्य कृति "गीतांजलि" और रवींद्र संगीत की वैश्विक लोकप्रियता ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया है एवं  उनकी विरासत का उत्सव मनाने के लिये दुनियाभर में प्रदर्शन आयोजित किये जाते हैं।
    • अनुकूलन और संलयन: रवींद्र संगीत निरंतर विकसित हो रहा है, समकालीन कलाकार संगीत की पुनर्व्याख्या कर रहे हैं, जिससे नए श्रोताओं तक पहुँच बन रही है और इसकी स्थायी प्रासंगिकता सुनिश्चित हो रही है।
      • बैंड चंद्रबिंदु द्वारा टैगोर की रचनाओं के रूपांतरण के माध्यम से युवा दर्शकों को उनकी रचनाओं से परिचित कराया जा रहा है।

निष्कर्ष:

‘रवींद्र संगीत’ का महत्त्व सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता को प्रोत्साहित करने, पीढ़ियों के बीच संबंध स्थापित करने तथा बदलाव के लिये आंदोलनों को प्रेरित करने की इसकी शक्ति में निहित है। एक जीवंत परंपरा के रूप में, रवींद्र संगीत सांस्कृतिक पहचान, सामाजिक न्याय और समाज को प्रभावित करने की कला की शक्ति के इर्द-गिर्द संवाद को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।