Sambhav-2025

दिवस-3: भारत के शास्त्रीय नृत्य रूपों की मुख्य विशेषताओं और उनके भौगोलिक क्षेत्रों का विश्लेषण कीजिये। इन पारंपरिक कला रूपों को प्रोत्साहित करने और संरक्षित करने के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

04 Dec 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • भारत के शास्त्रीय नृत्य रूपों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • भारत के शास्त्रीय नृत्य रूपों की मुख्य विशेषताओं और क्षेत्रों पर चर्चा कीजिये।
  • इन पारंपरिक कलाओं को समर्थन और बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा की गई पहलों का वर्णन कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष निकालिये।

परिचय: 

भारत के शास्त्रीय नृत्य रूप इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की जीवंत अभिव्यक्ति हैं, जो विविध परंपराओं, कथाओं और क्षेत्रीय शैलियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये कला रूप न केवल मनोरंजन करते हैं बल्कि गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक अर्थ भी व्यक्त करते हैं।

शास्त्रीय नृत्य रूपों की मुख्य विशेषताएँ: 

  • भरतनाट्यम (तमिलनाडु): जटिल पदचाप, भावपूर्ण हस्त मुद्राएँ और विस्तृत चेहरे के भावों की विशेषता वाला यह नृत्य रूप अभिनय एवं नृत्त के संयोजन के माध्यम से कहानियाँ सुनाता है।
  • कथक (उत्तर प्रदेश): कथक, जो अपनी लयबद्ध चालों और घुमावों के लिये प्रसिद्ध है, में कहानी को संगीत के साथ जोड़ा जाता है, जो आमतौर पर हिंदू पौराणिक कथाओं से प्रेरित होता है। इसमें चेहरे की भावनाओं का उपयोग विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण होता है।
  • ओडिसी (ओडिशा): यह नृत्य अपनी काव्यात्मक गतिविधियों और मूर्तिकला जैसी मुद्राओं के लिये  प्रसिद्ध है, जो अक्सर धार्मिक विषयों तथा भक्ति को अनुकूल गति एवं अभिव्यक्तिपूर्ण इशारों के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं।
  • कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश): एक गतिशील नृत्य शैली, जिसमें कथात्मक नृत्य-नाटक शामिल है, कुचिपुड़ी में नृत्य और अभिनय का संयोजन होता है, जिसमें पैरों की गति तथा भावपूर्ण कहानी कहने पर ज़ोर दिया जाता है।
  • कथकली (केरल): कथकली नृत्य, अपनी विस्तृत वेशभूषा, चेहरे के जटिल  शृंगार और जीवंत कहानी कहने के लिये प्रसिद्ध है, जो नृत्य, नाटक एवं संगीत के सम्मिलित रूप में महाकाव्य कथाओं का प्रदर्शन करता है।
  • मणिपुरी (मणिपुर): अपनी सुंदर, प्रवाहपूर्ण गति के लिये जानी जाने वाली मणिपुरी में अक्सर प्रेम और भक्ति के विषय होते हैं, विशेष रूप से भगवान कृष्ण के जीवन से संबंधित।
  • मोहिनीअट्टम (केरल): अपनी सुंदर और स्त्रियोचित शैली के लिये प्रसिद्ध है, जिसमें लयात्मकता और जटिल चेहरे की भाव-भंगिमाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है तथा यह नृत्य प्रेम एवं भक्ति के विषयों को दर्शाता है।
  • सत्रिया (असम): असम के वैष्णव मठों में निहित सत्रिया नृत्य को नाटक और संगीत के साथ जोड़ता है तथा धार्मिक आख्यानों एवं स्थानीय लोककथाओं को प्रतिबिंबित करता है।

सरकारी पहलें

  • संगीत नाटक अकादमी: यह राष्ट्रीय अकादमी पारंपरिक कलाओं के अध्ययन और प्रदर्शन को प्रोत्साहित करते हुए कलाकारों को छात्रवृत्ति, फेलोशिप तथा अनुदान प्रदान करती है।
  • स्पिक मैके द्वारा नृत्य को बढ़ावा देना: स्पिक मैके (युवाओं के बीच भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये सोसायटी), सरकार द्वारा समर्थित, युवा दर्शकों को शास्त्रीय नृत्य से परिचित कराने के लिये स्कूलों एवं कॉलेजों में संगीत कार्यक्रम, कार्यशालाएँ और व्याख्यान प्रदर्शन आयोजित करता है।
  • संस्कृति मंत्रालय: मंत्रालय सांस्कृतिक कार्यक्रमों और समारोहों का आयोजन करता है जो शास्त्रीय नृत्य शैलियों के प्रति जागरूकता एवं प्रशंसा को बढ़ावा देते हैं, जिससे देश भर में उनकी दृश्यता बढ़ती है।
    • संस्कृति मंत्रालय के आज़ादी का अमृत महोत्सव में शास्त्रीय नर्तकों द्वारा प्रस्तुतियाँ दी गईं, जिनमें परंपरा और समकालीन प्रासंगिकता का मिश्रण था।
  • अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय महोत्सव: खजुराहो नृत्य महोत्सव और कोणार्क नृत्य महोत्सव जैसे आयोजन प्रतिष्ठित मंचों पर शास्त्रीय नृत्य का प्रदर्शन करते हैं।
  • यूनेस्को के तहत मान्यता: कुटियाट्टम जैसे कई नृत्य रूपों को सरकारी सहायता से यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में अंकित किया गया है।
  • राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन (एनएमसीएम): इस मिशन का उद्देश्य शास्त्रीय नर्तकों सहित कलाकारों का दस्तावेज़ीकरण और मानचित्रण करना है, ताकि सरकारी पहलों तथा प्रदर्शनों में उनका समावेश सुनिश्चित हो सके।

निष्कर्ष:

भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूप देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें प्रत्येक क्षेत्र के लिये अद्वितीय कहानी, संगीत और आंदोलन का मिश्रण होता है। इन शास्त्रीय परंपराओं का उत्सव मनाना और उन्हें पोषित करना न केवल हमारे सांस्कृतिक अतीत का सम्मान करता है, बल्कि समकालीन कलात्मक परिदृश्य को भी समृद्ध करता है, जिससे भारतीय विरासत की सुंदरता और विविधता के प्रति गहरी प्रशंसा को बढ़ावा मिलता है।