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Sambhav-2025

  • 19 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    दिवस- 90: छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) क्या हैं और वे पारंपरिक परमाणु रिएक्टरों से कैसे भिन्न हैं? भारत की ऊर्जा सुरक्षा में उनके महत्त्व और व्यवहार्यता का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय में, लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) और उनके महत्त्व को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
    • डिज़ाइन, दक्षता, सुरक्षा और लागत के संदर्भ में SMR की तुलना पारंपरिक परमाणु रिएक्टरों से कीजिये।
    • भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं का विश्लेषण कीजिये और यह निर्धारित कीजिये कि छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) ऊर्जा सुरक्षा ढाँचे में किस प्रकार समाहित हो सकते हैं।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) उन्नत परमाणु रिएक्टर हैं जिनकी क्षमता 300 मेगावाट प्रति यूनिट तक है। पारंपरिक बड़े परमाणु रिएक्टरों के विपरीत, SMR कॉम्पैक्ट, फैक्ट्री-निर्मित और स्केलेबल हैं, जो परमाणु ऊर्जा परिनियोजन के लिये एक अनुकूल दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। भारत की बढ़ती ऊर्जा मांगों को देखते हुए, SMR सुरक्षा और लागत दक्षता सुनिश्चित करते हुए ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिये एक संभावित समाधान प्रस्तुत करते हैं

    मुख्य भाग:

    SMR और पारंपरिक परमाणु रिएक्टरों की तुलना:

    • आकार और मापनीयता: SMR छोटे, मॉड्यूलर और फैक्ट्री-असेम्बल होते हैं, जबकि पारंपरिक रिएक्टर बड़े होते हैं, साइट-निर्मित होते हैं तथा व्यापक बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है
    • सुरक्षा और विश्वसनीयता: SMR निष्क्रिय शीतलन प्रणाली का उपयोग करते हैं, जिससे पिघलने का जोखिम कम हो जाता है, जबकि पारंपरिक रिएक्टरों को सक्रिय शीतलन प्रणाली की आवश्यकता होती है, जो अधिक जटिल होती है
    • लागत और परिनियोजन: SMR की आरंभिक लागत कम होती है और निर्माण समय भी कम होता है (3-5 वर्ष), जबकि पारंपरिक रिएक्टर महँगे होते हैं तथा इनके निर्माण में 8-10 वर्ष लगते हैं।
    • स्थान निर्धारण में अनुकूलन: SMR को सुदूर क्षेत्रों और आपदा-प्रवण क्षेत्रों में तैनात किया जा सकता है, जबकि पारंपरिक रिएक्टरों के लिये बड़े, भूकंपीय रूप से स्थिर स्थान की आवश्यकता होती है

    भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये SMR का महत्त्व और व्यवहार्यता:

    • बढ़ती ऊर्जा मांग: भारत की विद्युत की मांग वर्ष 2040 तक सालाना 4.7% बढ़ने का अनुमान है (IEEA), जिसके लिये विश्वसनीय, स्वच्छ और स्केलेबल ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता होगी
    • डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्य: SMR कोयला आधारित विद्युत के लिये कम कार्बन विकल्प प्रदान करके भारत के वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य के अनुरूप है।
    • भूमि एवं जल संबंधी बाधाएँ: पारंपरिक रिएक्टरों को विशाल भूमि और शीतलन जल की आवश्यकता होती है, जबकि SMR कम भूमि एवं जल का उपभोग करते हैं, जिससे वे भूमि की कमी वाले क्षेत्रों के लिये व्यवहार्य हो जाते हैं
    • ग्रिड स्वतंत्रता और ऊर्जा पहुँच: SMR बड़े विद्युत ग्रिडों से स्वतंत्र रूप से काम कर सकते हैं, जिससे ग्रामीण और दूर-दराज़ के क्षेत्रों में ऊर्जा पहुँच में सुधार होगा।
    • वैश्विक उदाहरण: कनाडा, अमेरिका और चीन जैसे देश SMR में निवेश कर रहे हैं। भारत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये वैश्विक खिलाड़ियों के साथ सहयोग कर सकता है
    • विनियामक और आर्थिक चुनौतियाँ: भारत का परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रतिबंधित करता है। उच्च प्रारंभिक निवेश और विनियामक अनुमोदन में देरी से SMR अपनाने में बाधा आ सकती है।

    निष्कर्ष:

    SMR भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के लिये एक आशाजनक समाधान प्रदान करते हैं, जो सुरक्षा, अनुकूलन और मापनीयता सुनिश्चित करते हैं। हालाँकि बड़े पैमाने पर तैनाती के लिये नीतिगत सुधार, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है। SMR को रणनीतिक रूप से अपनाने से जलवायु प्रतिबद्धताओं का समर्थन करते हुए भारत की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ सकती है

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