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Sambhav-2025

  • 28 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-24: भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के उदारवादी युग का महत्त्व और इस अवधि के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन के विकास में अन्य राजनीतिक संगठनों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत उदारवादियों के युग से कीजिये।
    • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में उदारवादियों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • इस अवधि के दौरान अन्य राजनीतिक संगठनों द्वारा निभाई गई भूमिका की व्याख्या कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) में उदारवादियों का युग 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में राष्ट्रवादी आंदोलन में एक महत्त्वपूर्ण चरण था। उदारवादी नेताओं के प्रभुत्व की विशेषता वाले इस काल में महत्त्वपूर्ण विकास और अन्य राजनीतिक संघों का उदय हुआ, जिन्होंने स्वशासन की दिशा में भारत के मार्ग को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    मुख्य भाग:

    उदारवादी युग का महत्त्व:

    • राष्ट्रवादी विचार की नींव:
      • दादाभाई नौरोजी, व्योमेश चंद्र बनर्जी और ए.ओ. ह्यूम सहित उदारवादी नेताओं ने राष्ट्रवादी आंदोलन की बौद्धिक नींव रखी।
      • दादाभाई नौरोजी की "ड्रेन थ्योरी" ने ब्रिटिश शासन के तहत भारत के आर्थिक शोषण और दरिद्रता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए इस विषय पर चर्चा को दिशा प्रदान की।
    • संवैधानिक तरीके:
      • दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले और वोमेश चंद्र बनर्जी जैसे नेताओं सहित उदारवादियों ने ब्रिटिश औपनिवेशिक ढाँचे के भीतर सुधार लाने के लिये संवैधानिक तरीकों का समर्थन किया।
      • उनके प्रयासों ने भावी संवैधानिक संघर्षों की नींव रखी।
    • सामूहिक आदर्शों की पहचान:
      • उदारवादियों का लक्ष्य भाषाई और क्षेत्रीय मतभेदों से ऊपर उठकर एकजुट भारत का निर्माण करना था।
      • राष्ट्रवादी आदर्शों पर उनके ज़ोर ने सामूहिक पहचान की भावना को सशक्त किया और गांधीवादी युग की नींव रखी।
    • शैक्षिक और सामाजिक सुधार:
      • गोखले जैसे नेताओं ने राष्ट्रीय प्रगति के लिये शिक्षा और सामाजिक सुधारों के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
      • इस अवधि में शिक्षा और सामाजिक उत्थान पर केंद्रित संस्थाओं की स्थापना हुई।
    • सरकार और भारतीयों के मध्य सेतु:
      • उदारवादियों का उद्देश्य संवाद और बातचीत के माध्यम से ब्रिटिश शासक तथा भारतीयों के बीच एक सेतु बनाना था।
      • वे औपनिवेशिक अधिकारियों के साथ सहयोग के ज़रिये क्रमिक रूप से स्वशासन प्राप्त करने में विश्वास रखते थे।

    अन्य राजनीतिक संघों द्वारा निभाई गई भूमिका

    • चरमपंथी और सूरत विभाजन (1907):
      • बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे उग्रवादी नेताओं के उदय ने उदारवादी दृष्टिकोण में बदलाव को चिह्नित किया।
      • सूरत विभाजन वैचारिक मतभेदों को प्रतिबिंबित करता है, जिसमें चरमपंथी प्रत्यक्ष कार्रवाई और स्वराज का समर्थन कर रहे थे।
    • एनी बेसेंट और होमरूल आंदोलन की भूमिका:
      • एनी बेसेंट के होम रूल आंदोलन (1916) का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वशासन की मांग करना था।
      • इस आंदोलन ने जनमत को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा स्वशासन की भावी मांगों के लिये आधार तैयार किया।
    • गदर पार्टी का गठन:
      • संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में भारतीय प्रवासियों द्वारा गठित गदर पार्टी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का समर्थन किया।
      • यद्यपि उनकी गतिविधियाँ काफी हद तक असफल रहीं, फिर भी उन्होंने राष्ट्रवादी आंदोलन की वैश्विक पहुँच को प्रदर्शित किया।
    • सामाजिक एवं धार्मिक संगठन:
      • आर्य समाज और ब्रह्म समाज जैसे सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों ने शैक्षिक सुधार, सामाजिक उत्थान एवं तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देने में योगदान देकर सहायक भूमिका निभाई।
      • उन्होंने उदारवादियों के राजनीतिक प्रयासों को पूरक बनाया।

    निष्कर्ष:

    उदारवादियों के दौर में, भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में मुस्लिम लीग, चरमपंथी, होम रूल समर्थक और गदर पार्टी जैसे कई राजनीतिक समूह सह-अस्तित्व में थे। जहाँ उदारवादी संवैधानिक तरीकों के समर्थक थे, वहीं इन समूहों ने अपने विशिष्ट दृष्टिकोण और रणनीतियों के माध्यम से स्वतंत्रता संघर्ष को नई दिशा दी।

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