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Sambhav-2025

  • 14 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 65: भारत में शहरी नियोजन और विकास में नगर निकायों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। उनके प्रदर्शन को प्रभावी बनाने के लिये वित्तीय स्वायत्तता और प्रशासनिक दक्षता में सुधार के संभावित उपायों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नगर निकायों का संक्षिप्त परिचय दीजिये। 
    • भारत में शहरी नियोजन और विकास में नगर निकायों की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • वित्तीय स्वायत्तता और प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने के लिये आवश्यक सुधारों का प्रस्ताव कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय: 

    नगर निकाय भारत में शहरी शासन की आधारशिला हैं, जो कई आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने और शहरी विकास का प्रबंधन करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। वर्ष 1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम ने नगर निगम शासन की रूपरेखा निर्धारित की, जिसका उद्देश्य शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बनाते हुए उनके अधिकारों और ज़िम्मेदारियों का विकेंद्रीकरण करना है।

    मुख्य भाग: 

    शहरी नियोजन और विकास में नगर निकायों की भूमिका: 

    • शहरी शासन और सेवा वितरण: 
      • नगर निकाय नागरिकों के लिये प्रथम संपर्क बिंदु के रूप में कार्य करते हैं तथा दैनिक शासन और आवश्यक सेवाएँ प्रदान करते हैं।
      • नगर पालिकाओं को जलापूर्ति, स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन, स्ट्रीट लाइटिंग और सार्वजनिक स्थानों के रखरखाव जैसी बुनियादी सेवाएँ सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है। 
      • इंदौर नगर निगम शहरी स्वच्छता में अग्रणी रहा है, जिसे स्वच्छ भारत मिशन के तहत भारत में सबसे स्वच्छ शहर का खिताब मिला है।
    • शहरी नियोजन और ज़ोनिंग: 
      • नगर पालिकाएँ मास्टर प्लान तैयार करती हैं जो भूमि उपयोग को विनियमित करते हैं तथा आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक उद्देश्यों के लिये निर्दिष्ट क्षेत्रों के साथ नियोजित विकास सुनिश्चित करते हैं।
      • वे सतत् शहरी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये डिजिटल गवर्नेंस, हरित बुनियादी ढाँचे और किफायती आवास को एकीकृत करते हुए स्मार्ट सिटीज़ मिशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • आर्थिक विकास और आजीविका: 
      • नगर निकाय बाज़ार, व्यापारिक बुनियादी ढाँचे और व्यवसाय क्षेत्रों के प्रावधान के माध्यम से स्थानीय आर्थिक विकास को सुविधाजनक बनाते हैं। 
      • इसमें सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) को बढ़ावा देना, पर्यटन को बढ़ावा देना और स्थानीय उद्योगों को विकसित करना शामिल है जो शहरी क्षेत्रों के समग्र आर्थिक विकास में योगदान देते हैं।
      • मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MMRDA) ने मुंबई मेट्रो और ट्रांस-हार्बर लिंक जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को आगे बढ़ाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • सामाजिक अवसंरचना और समावेशिता:
      • अस्पताल, स्कूल, पार्क और मनोरंजन स्थल जैसे सामाजिक बुनियादी ढाँचे उपलब्ध कराने में नगरपालिकाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 
      • किफायती आवास, मलिन बस्तियों में स्वच्छता और महिलाओं के अनुकूल स्थान सुनिश्चित करना उनके कार्य के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।
      • अहमदाबाद नगर निगम की स्लम नेटवर्किंग परियोजना ने हज़ारों झुग्गीवासियों के लिये स्वच्छता और आवास में सुधार किया।

    नगर निकायों की वित्तीय स्वायत्तता में सुधार:

    • राजस्व सृजन में वृद्धि:
      • कर सुधार: नगरपालिकाओं को अपना राजस्व आधार बढ़ाने के लिये संपत्ति कर, जल कर और सेवा शुल्क लगाने में अधिक स्वायत्तता मिलनी चाहिये।
      • म्यूनिसिपल बांड और पीपीपी: पुणे और हैदराबाद जैसे शहरों ने शहरी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये म्यूनिसिपल बाॅण्ड के माध्यम से सफलतापूर्वक धन जुटाया है।
      • उपयोगकर्त्ता शुल्क: अपशिष्ट संग्रहण, पार्किंग शुल्क और भीड़भाड़ शुल्क से अतिरिक्त धनराशि जुटाने में मदद मिल सकती है।
    • राज्य सरकारों द्वारा निधियों का हस्तांतरण:
      • राज्य वित्त आयोग (SFC): शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को समय पर और समान निधि वितरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
      • अनुदान में वृद्धि: अनुच्छेद 280 के अंतर्गत वित्त आयोग के अनुदान से अधिक आवंटन से स्थिरता मिल सकती है।
      • छोटे शहरों पर ध्यान: विकास संबंधी असमानताओं को दूर करने के लिये निधियों को टियर-2 और टियर-3 शहरों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • शहरी विकास निधि की शुरुआत:
      • समर्पित निधि: एक केंद्रीय/राज्य-प्रबंधित शहरी विकास निधि शहर की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है।
      • बुनियादी ढाँचा ऋण: मेट्रो रेल, फ्लाईओवर, जल आपूर्ति और अपशिष्ट प्रबंधन के लिये सॉफ्ट लोन से शहरी नियोजन को बढ़ावा मिल सकता है।
        • उदाहरण: अमृत (अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन) योजना छोटे शहरों में जलापूर्ति और सीवरेज परियोजनाओं के लिये धन उपलब्ध कराती है।

    प्रशासनिक दक्षता में सुधार:

    • विकेंद्रीकरण और स्थानीय नेताओं को सशक्त बनाना:
      • अधिक स्वायत्तता: राज्य स्तरीय नौकरशाही हस्तक्षेप को कम करने से नगर निकायों को तेज़ी से निर्णय लेने में सशक्त बनाया जा सकता है।
      • निर्वाचित महापौरों को अधिक शक्ति: निर्वाचित महापौरों के अधिकार को मज़बूत करने से शासन की दक्षता में सुधार हो सकता है।
        • उदाहरण: कोलकाता नगर निगम मेयर-इन-काउंसिल प्रणाली का पालन करता है, जिससे बेहतर शहरी नियोजन संभव होता है।
      • शहरी विकास प्राधिकरणों और नगर पालिकाओं के बीच समन्वय: आवास बोर्डों, नगर नियोजन निकायों और मेट्रो प्राधिकरणों के साथ समन्वय से एकीकृत शहरी विकास हो सकता है।
    • क्षमता निर्माण और व्यवसायीकरण:
      • प्रशिक्षण एवं कौशल विकास: नगरपालिका कर्मचारियों को शहरी नियोजन, वित्तीय प्रबंधन और प्रौद्योगिकी अपनाने में प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
      • विशिष्ट कैडर: एक समर्पित शहरी सेवा कैडर बनाने से शहरी प्रशासन में विशेषज्ञता आ सकती है।
        • उदाहरण: शहरी शिक्षण इंटर्नशिप कार्यक्रम (ट्यूलिप) का उद्देश्य शहरी प्रशासन में युवा पेशेवरों को प्रशिक्षित करना है।
    • प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस का लाभ उठाना:
      • स्मार्ट सिटी पहल: GIM मैपिंग, ऑनलाइन कर संग्रह और स्वचालित शिकायत निवारण जैसे डिजिटल गवर्नेंस उपकरण दक्षता बढ़ाते हैं।
      • नागरिक सहभागिता मंच: संपत्ति कर, जल बिल भुगतान और शिकायत पंजीकरण के लिये मोबाइल ऐप तथा पोर्टल सेवा वितरण में सुधार करते हैं।
      • AI और डाटा एनालिटिक्स: इसका उपयोग अपशिष्ट प्रबंधन, यातायात नियंत्रण और आपदा तैयारी के लिये किया जा सकता है।
        • उदाहरण: भुवनेश्वर स्मार्ट सिटी ऐप नगरपालिका सेवाओं और नागरिक शिकायतों की वास्तविक समय पर निगरानी प्रदान करता है।
      • एकल खिड़की प्रणाली: एकीकृत शहरी शासन मॉडल प्रशासनिक देरी और अतिव्यापी ज़िम्मेदारियों को कम कर सकता है।
        • उदाहरण: गुजरात शहरी विकास मिशन विभिन्न शहरी एजेंसियों के नियोजन प्रयासों का समन्वय कर परियोजनाओं के सुचारु क्रियान्वयन को सुनिश्चित करता है।

    निष्कर्ष:

    नगर पालिकाओं को अधिक संसाधन, बेहतर प्रशासनिक संरचना और प्रभावी शहरी नियोजन के लिये उपकरण प्रदान करके, भारत अपने शहरी केंद्रों को कुशल, स्थायी और समावेशी स्थानों में बदल सकता है। ये सुधार तेज़ी से हो रहे शहरीकरण से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने और शहरी निवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

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