दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट और 1833 के चार्टर एक्ट के संक्षिप्त अवलोकन के साथ उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- इन अधिनियमों के प्रावधानों और केंद्रीकरण पर इनके प्रभावों की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष निकालिये।
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परिचय:
1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट और 1833 का चार्टर एक्ट भारत में ब्रिटिश सत्ता के केंद्रीकरण में महत्त्वपूर्ण कदम थे। ये कानून प्रशासनिक अक्षमताओं को दूर करने और ईस्ट इंडिया कंपनी के संचालन पर अधिक नियंत्रण रखने के लिये प्रस्तुत किये गए थे, जिससे केंद्रीकृत औपनिवेशिक प्रशासन की नींव रखी गई।
मुख्य भाग:
1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट का प्रभाव:
- बंगाल के गवर्नर-जनरल का पद सृजित किया गया, जिसके पहले पदाधिकारी वारेन हेस्टिंग्स थे। इसके माध्यम से बंगाल को मद्रास और बंबई पर प्राथमिकता दी गई।
- बंगाल में समेकित निर्णय लेने को सुनिश्चित करने के लिये गवर्नर-जनरल की सहायता के लिये चार सदस्यों की एक कार्यकारी परिषद बनाई गई।
- कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई, जिससे यूरोपीय और भारतीय दोनों विषयों की देखरेख के लिये एक केंद्रीकृत न्यायिक प्रणाली की शुरुआत हुई।
- इसने भारत में कंपनी के राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों पर रिपोर्ट देने के लिये कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को बाध्य करके कंपनी पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण बढ़ा दिया।
- केंद्रीकरण प्रभाव: प्रेसिडेंसियों के बीच समन्वय बढ़ा, जिससे बंगाल ब्रिटिश सत्ता का केंद्र बन गया।
1833 के चार्टर अधिनियम का प्रभाव:
- बंगाल के गवर्नर-जनरल को भारत का गवर्नर-जनरल बनाया गया, लॉर्ड विलियम बेंटिक इस पदवी को धारण करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिससे विधायी और प्रशासनिक शक्तियों का केंद्रीकरण हुआ।
- मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी की विधायी शक्तियों को समाप्त कर दिया गया तथा कानून बनाने का कार्य कलकत्ता में केंद्रीय प्राधिकरण के अधीन कर दिया गया।
- इसका उद्देश्य कानून संहिताकरण शुरू करना था, जो बाद में भारतीय दंड संहिता (1860) के रूप में परिणत हुआ, जिससे सभी क्षेत्रों में एकरूपता सुनिश्चित हुई।
- 1833 के चार्टर एक्ट का उद्देश्य लोक सेवा पदों के लिये खुली प्रतिस्पर्द्धा शुरू करना और भारतीयों को कंपनी के कार्यालयों में रहने की अनुमति देना था। हालाँकि इस प्रावधान का कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने विरोध किया और इसे लागू नहीं किया गया।
- इसने एक वाणिज्यिक निकाय के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों को समाप्त कर दिया।
- केंद्रीकरण प्रभाव: एक एकीकृत प्रशासनिक संरचना की स्थापना की गई, जिससे सभी क्षेत्र प्रभावी रूप से प्रत्यक्ष ब्रिटिश विधायी नियंत्रण के अधीन आ गए।
निष्कर्ष
1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट और 1833 का चार्टर एक्ट भारत में ब्रिटिश सत्ता को केंद्रीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। गवर्नर-जनरल की स्थिति को मज़बूत करके, विधायी कार्यों को समेकित करके और न्यायिक निगरानी शुरू करके, उन्होंने एक एकीकृत औपनिवेशिक प्रशासन की नींव रखी जिसने पूरे भारत में अधिक ब्रिटिश नियंत्रण और दक्षता सुनिश्चित की।