20 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में ग्रीन हाइड्रोजन और भारत के ऊर्जा परिवर्तन में इसके महत्त्व को परिभाषित कीजिये।
- ग्रीन हाइड्रोजन की संभावनाओं, कार्यान्वयन में चुनौतियों, सरकारी पहलों और आगे की राह पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से उत्पादित ग्रीन हाइड्रोजन, उद्योगों, परिवहन और ऊर्जा भंडारण को डीकार्बोनाइज करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण समाधान के रूप में उभर रहा है। भारत के राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (NGHM) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 5 MMT उत्पादन का लक्ष्य रखकर देश को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करना है।
मुख्य भाग:
भारत के ऊर्जा परिवर्तन में हरित हाइड्रोजन की संभावनाएँ:
- ऊर्जा सुरक्षा और आयात में कमी: ग्रीन हाइड्रोजन इस्पात, उर्वरक, पेट्रोलियम शोधन और गतिशीलता क्षेत्रों में जीवाश्म ईंधन की जगह ले सकता है, जिससे वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन के आयात में 1 लाख करोड़ रुपए की कमी आएगी।
- आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन: NGHM से वर्ष 2030 तक 8 लाख करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित होने और 6 लाख रोज़गार उत्पन्न होने की उम्मीद है, जिससे भारत की हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
- डीकार्बोनाइजेशन और जलवायु लक्ष्य: हाइड्रोजन से CO₂ उत्सर्जन में प्रतिवर्ष लगभग 50 मिलियन मीट्रिक टन की कटौती हो सकती है, जो वर्ष 2070 तक भारत के नेट ज़ीरो लक्ष्य के अनुरूप है।
- औद्योगिक एवं निर्यात संभावनाएँ: भारत के प्रचुर सौर और पवन संसाधन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिये लागत लाभ प्रदान करते हैं, जिससे जापान, दक्षिण कोरिया एवं यूरोप जैसे ऊर्जा-निर्भर देशों को निर्यात के अवसर मिलते हैं।
- क्षेत्रीय विविधीकरण: इस्पात, गतिशीलता, शिपिंग और विकेंद्रीकृत ऊर्जा अनुप्रयोगों के लिये पायलट परियोजनाएँ उद्योगों में हाइड्रोजन के एकीकरण को बढ़ाती हैं।
हरित हाइड्रोजन कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
- उच्च उत्पादन लागत: इलेक्ट्रोलाइज़र आधारित ग्रीन हाइड्रोजन की लागत 300-400 रुपए प्रति किलोग्राम है, जो उच्च विद्युत और पूंजीगत लागत के कारण ग्रे हाइड्रोजन (150 रुपए प्रति किलोग्राम) से अधिक है।
- बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: हाइड्रोजन पाइपलाइनों, भंडारण और ईंधन भरने के नेटवर्क की कमी के कारण बड़े पैमाने पर इसे अपनाना संभव नहीं हो पाता है।
- ऊर्जा स्रोत पर निर्भरता: कुशल उत्पादन के लिये नवीकरणीय ऊर्जा की उपलब्धता की आवश्यकता होती है, लेकिन भारत अभी भी कोयला आधारित विद्युत पर बहुत अधिक निर्भर है।
- तकनीकी एवं अनुसंधान एवं विकास अंतराल: इलेक्ट्रोलाइज़र दक्षता, हाइड्रोजन परिवहन और ईंधन सेल विकास के लिये महत्त्वपूर्ण अनुसंधान एवं नवाचार की आवश्यकता होती है।
- विनियामक एवं नीति अनिश्चितता: हालाँकि NGHM प्रोत्साहन प्रदान करता है, लेकिन स्पष्ट मूल्य निर्धारण तंत्र, सुरक्षा मानक और दीर्घकालिक नीतियाँ अभी भी विकसित हो रही हैं।
सरकारी पहल और आगे की राह
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (NGHM): वर्ष 2029-30 तक ₹19,744 करोड़ के परिव्यय के साथ, NGHM मांग सृजन, इलेक्ट्रोलाइज़र विनिर्माण, पायलट परियोजनाओं, अनुसंधान एवं विकास और बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देता है।
- ग्रीन हाइड्रोजन संक्रमण के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप (SIGHT) कार्यक्रम: इलेक्ट्रोलाइज़र उत्पादन और ग्रीन हाइड्रोजन विनिर्माण के लिये प्रोत्साहन प्रदान करता है।
- हरित हाइड्रोजन हब: अपनाने के पैमाने को बढ़ाने के लिये पूरे भारत में प्रमुख उत्पादन और वितरण केंद्रों का विकास करना चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी): हाइड्रोजन नवाचार, अनुसंधान और वाणिज्यिक व्यवहार्यता में उद्योग की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण का विस्तार: लागत-प्रतिस्पर्द्धी हाइड्रोजन उत्पादन सुनिश्चित करने के लिये सौर, पवन और जल विद्युत क्षमता का विस्तार करना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत का ग्रीन हाइड्रोजन ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ाकर SDG 7 (स्वच्छ ऊर्जा) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) का समर्थन करता है। जबकि उच्च लागत और बुनियादी ढाँचे की कमी चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है, रणनीतिक नीतियाँ, अनुसंधान एवं विकास निवेश व निजी क्षेत्र का सहयोग भारत को ग्रीन हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर सकता है।