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Sambhav-2025

  • 10 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 8: बौद्ध धर्म को वैश्विक धर्म के रूप में बढ़ावा देने में अशोक और पाल राजवंश की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • बौद्ध धर्म को एक वैश्विक धर्म के रूप में संक्षेप में प्रस्तुत कीजिये, जो समय के साथ भारत से बाहर भी फैल गया।
    • बौद्ध धर्म को वैश्विक धर्म के रूप में बढ़ावा देने में अशोक और पाल राजवंश की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • उचित रूप से निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय: 

    6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित बौद्ध धर्म, भारत से बाहर फैलकर दुनिया के प्रमुख धर्मों में से एक बन गया। यह परिवर्तन प्रमुख शासकों के संरक्षण और सक्रिय प्रोत्साहन से प्रेरित था, जिनमें सम्राट अशोक (तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) तथा पाल राजवंश (8वीं-12वीं शताब्दी ई.) प्रमुख थे। 

    मुख्य भाग: 

    बौद्ध धर्म के प्रचार में अशोक की भूमिका: 

    • अशोक का बौद्ध धर्म में धर्मांतरण
      • भेरिघोष से धम्मघोष तक: कलिंग की क्रूर विजय और उसके बाद की घटनाओं ने सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म अपनाने के लिये प्रेरित किया। 
        • हिंसा और जनहानि से व्यथित होकर अशोक ने युद्ध का त्याग कर दिया तथा अहिंसा एवं धर्म के बौद्ध आदर्शों को अपना लिया।
      • शाही संरक्षण: अशोक का बौद्ध धर्म में धर्मांतरण महज व्यक्तिगत नहीं था; यह बौद्ध सिद्धांतों को राज्य स्तर पर अपनाने का प्रतीक था। 
      • उन्होंने सांस्कृतिक विजय की नीति के पक्ष में भौतिक कब्ज़े की नीति को त्याग दिया। दूसरे शब्दों में, भेरिघोष का स्थान धम्मघोष ने ले लिया।
    • अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार
      • अशोक के शिलालेख: अशोक ने चट्टानों और स्तंभों पर शिलालेखों की एक शृंखला प्रचलित की, जिनमें अहिंसा, करुणा तथा सभी धर्मों के प्रति सम्मान जैसी बौद्ध नैतिक शिक्षाओं को बढ़ावा दिया गया।
      • 13वें शिलालेख में स्पष्ट रूप से अहिंसा और धार्मिक सहिष्णुता के अभ्यास का समर्थन किया गया है तथा लोगों से जीवित प्राणियों को नुकसान पहुँचाने से बचने एवं अन्य लोगों की मान्यताओं का सम्मान करने का आग्रह किया गया है।
      • मिशनरी प्रयास: अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये श्रीलंका, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध मिशनरियों को भेजा, जो भारत से बाहर बौद्ध धर्म के प्रचार का पहला आधिकारिक प्रयास था। 
        • उनके पुत्र महिंदा के नेतृत्व में श्रीलंका में उनके दूत ने द्वीप पर बौद्ध धर्म की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
        • अशोक ने चोल और पांड्य राज्यों में धर्मप्रचारक भेजे।
    • अशोका की कूटनीतिक पहुँच
      • अशोक ने विभिन्न हेलेनिस्टिक राज्यों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये, जिनमें मिस्र, ग्रीस, सीरिया और मैसेडोनिया शामिल थे, जहाँ उन्होंने बौद्ध मिशनरियों को भी भेजा। 
      • ये राजनयिक आदान-प्रदान बौद्ध विचारों के प्रसार में सहायक थे, विशेष रूप से एशिया के पश्चिमी क्षेत्रों में।

    पाल राजवंश की भूमिका: 

    • बौद्ध धर्म का संरक्षण: पाल राजवंश, जिसने उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया, बौद्ध धर्म का कट्टर समर्थक था। 
      • धर्मपाल और गोपाल जैसे प्रमुख पाल शासकों ने बौद्ध मठों, मंदिरों और शिक्षा केंद्रों को वित्तपोषित किया।
      • विक्रमशिला विश्वविद्यालय और नालंदा विश्वविद्यालय पाल वंश के अधीन बौद्ध शिक्षा के दो प्रमुख केंद्र थे, जो चीन, तिब्बत तथा दक्षिण पूर्व एशिया सहित पूरे एशिया से विद्वानों को आकर्षित करते थे।
    • बौद्ध संस्कृति का संरक्षण और संवर्द्धन: पाल शासक विशेष रूप से महायान बौद्ध ग्रंथों के संरक्षण और इन शैक्षणिक संस्थानों के माध्यम से बौद्ध दर्शन को बढ़ावा देने में सहायक थे। 
      • महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा, जिसमें करुणा और बोधिसत्व के आदर्श पर ज़ोर दिया गया था, का प्रचार इन केंद्रों से किया गया।
      • महायान सूत्र, जैसे- लोटस सूत्र, डायमंड सूत्र और हार्ट सूत्र, इन केंद्रों में संरक्षित एवं अध्ययन किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण ग्रंथ थे।
      • सोमपुरा महाविहार, पालों द्वारा निर्मित एक विशाल बौद्ध मठ परिसर, बौद्ध विचारों के प्रसार का केंद्र बन गया, विशेष रूप से तिब्बत जैसे क्षेत्रों में।
    • तांत्रिक प्रथाओं का विकास: वज्रयान बौद्ध धर्म, तांत्रिक अनुष्ठानों और देव पूजा पर ज़ोर देता था, जिसे पाल राजवंश के तहत समर्थन एवं बढ़ावा मिला। 
      • वज्रयान बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रंथ गुह्यसमाज तंत्र और हेवज्र तंत्र का अध्ययन एवं प्रचार पाल शासित क्षेत्रों में किया गया।
    • भारत से परे बौद्ध धर्म का विस्तार: पाल राजवंश ने तिब्बत में बौद्ध धर्म के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
    • रिनचेन जांगपो जैसे तिब्बती विद्वानों ने पाल शासित क्षेत्रों की यात्रा करके बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन किया और उन्हें तिब्बत लेकर गए, जहाँ ये ग्रंथ तिब्बती बौद्ध धर्म की नींव बने।
      • पाल वंश ने बौद्ध धर्म को दक्षिण-पूर्व एशिया, विशेषकर बर्मा (म्याँमार) और थाईलैंड जैसे देशों में प्रसार करने में मदद की, जहाँ सांस्कृतिक तथा बौद्धिक आदान-प्रदान के माध्यम से उनका सशक्त प्रभाव बना रहा।

    निष्कर्ष

    अशोक और पाल राजवंश दोनों ने बौद्ध धर्म को वैश्विक धर्म के रूप में बढ़ावा देने में परिवर्तनकारी भूमिका निभाई। अशोक के प्रत्यक्ष शाही संरक्षण और मिशनरी कार्य ने एशिया भर में बौद्ध धर्म के प्रसार की नींव रखी, जबकि पाल राजवंश के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक योगदान ने आने वाली शताब्दियों में धर्म की निरंतरता तथा प्रभाव को सुनिश्चित किया।

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