03 Feb 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में सहकारी संघवाद और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को परिभाषित कीजिये।
- सहकारी संघवाद और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद की अवधारणा और केंद्र-राज्य संबंधों पर उनके प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- अंत में, संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिये।
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परिचय:
भारतीय संविधान एक अर्द्ध-संघीय संरचना स्थापित करता है, जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों को संतुलित करता है। अनुच्छेद 245-263 में निहित सहकारी संघवाद, एकीकृत नीति कार्यान्वयन के लिये केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है। वर्ष 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद प्रोत्साहित प्रतिस्पर्द्धी संघवाद, आर्थिक विकास और शासन दक्षता के लिये अंतर-राज्यीय प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है। इन सिद्धांतों के बीच की बातचीत केंद्र-राज्य संबंधों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है, भारत में शासन और नीति परिणामों को आकार देती है।
मुख्य भाग:
सहकारी संघवाद की अवधारणा:
- सहकारी संघवाद एक ऐसी प्रणाली है जिसमें केंद्र और राज्य समान शासन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये मिलकर काम करते हैं।
- संवैधानिक आधार:
- अनुच्छेद 263 राष्ट्रपति को केंद्र-राज्य विवादों को सुलझाने के लिये अंतर-राज्य परिषद स्थापित करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 280 में केंद्र और राज्यों के बीच न्यायसंगत वित्तीय वितरण सुनिश्चित करने के लिये वित्त आयोग का प्रावधान है।
- अनुसूची VII संघ, राज्य और समवर्ती सूचियों को चित्रित करती है, जिसमें शिक्षा तथा पर्यावरण जैसे विषयों पर केंद्र-राज्य सहयोग की आवश्यकता होती है।
- भारत में सहकारी संघवाद के उदाहरण:
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद (अनुच्छेद 279A) राज्यों में राजस्व-साझाकरण और एक समान कराधान सुनिश्चित करती है।
- नीति आयोग का आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम पिछड़े क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये समन्वित प्रयासों को प्रोत्साहित करता है।
- कोविड-19 प्रबंधन में वैक्सीन वितरण, लॉकडाउन उपायों और स्वास्थ्य देखभाल संसाधन आवंटन में केंद्र-राज्य समन्वय देखा गया।
प्रतिस्पर्द्धी संघवाद की अवधारणा:
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद निवेश आकर्षित करने, शासन में सुधार लाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है।
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद की मुख्य विशेषताएँ:
- संविधान में इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन आर्थिक नीतियों और वित्तीय हस्तांतरण तंत्र में इसका उल्लेख है।
- राज्य स्वायत्त आर्थिक संस्थाओं के रूप में कार्य करते हैं तथा संसाधनों, व्यवसायों और शासन मानकों के लिये प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
- उदारीकरण सुधारों (1991), नीति आयोग रैंकिंग और राज्य स्टार्ट-अप सूचकांक से प्रोत्साहित करना।
- भारत में प्रतिस्पर्द्धी संघवाद के उदाहरण:
- व्यापार करने में आसानी (EODB) रैंकिंग राज्यों को व्यापार-अनुकूल नियामक ढाँचे बनाने के लिये प्रोत्साहित करती है।
- नीति आयोग का राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (FHI) 2025, 18 प्रमुख भारतीय राज्यों के राजकोषीय स्वास्थ्य का व्यापक मूल्यांकन प्रदान करता है।
- FDI के लिये अंतर-राज्यीय प्रतिस्पर्द्धा के कारण तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्य ऑटोमोबाइल क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं।
केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रभाव:
- सकारात्मक प्रभाव:
- बेहतर शासन दक्षता: प्रतिस्पर्द्धी संघवाद राज्यों को नवीन नीतियाँ (जैसे- डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटीज़) शुरू करने के लिये प्रोत्साहित करता है, जबकि सहकारी संघवाद समन्वित नीति कार्यान्वयन (जैसे- जल जीवन मिशन) सुनिश्चित करता है।
- राजकोषीय विकेंद्रीकरण को मज़बूती मिली: 15वें वित्त आयोग ने राज्यों को 42% कर हस्तांतरण की सिफारिश की, जिससे उन्हें वित्तीय रूप से सशक्त बनाया जा सके। GST परिषद का राजस्व-साझाकरण तंत्र सहकारी वित्तीय शासन को मज़बूत करता है।
- नीतिगत प्रयोग को प्रोत्साहन: कर्नाटक की स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और राजस्थान के श्रम कानून सुधार जैसी नीतियों ने अन्य राज्यों के लिये अनुकरणीय आदर्श स्थापित किये हैं।
- चुनौतियाँ और संघर्ष:
- केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति असंतुलन:
- अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का अक्सर निर्वाचित राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के लिये दुरुपयोग किया जाता है, जिससे संघीय सिद्धांतों को कमज़ोर किया जाता है।
- राज्यपाल की भूमिका (अनुच्छेद 155 और 156) के कारण संघर्ष की स्थिति बनी है, जैसा कि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में देखा गया है, जहाँ विपक्ष के नेतृत्व वाली सरकारों को कथित राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करना पड़ा है।
- केंद्र पर राज्यों की राजकोषीय निर्भरता:
- कुछ राज्य, विशेषकर बिहार, ओडिशा और उत्तर प्रदेश, केंद्रीय अनुदान पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जिसके कारण आर्थिक असमानताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
- GST क्षतिपूर्ति विवाद (जैसे- केरल और तमिलनाडु द्वारा अधिक क्षतिपूर्ति की मांग) केंद्र और राज्यों के बीच तनाव को उजागर करते हैं।
- सहयोग में बाधा डालने वाले राजनीतिक संघर्ष:
- कुछ राज्य केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं जैसे PMAY और मनरेगा का विरोध करते हैं तथा केंद्र पर पक्षपातपूर्ण निधि आवंटन का आरोप लगाते हैं।
- जल-बँटवारे संबंधी विवाद (जैसे- कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी विवाद) अंतर-राज्यीय तनाव उत्पन्न करते हैं।
- हालिया रुझान और केस अध्ययन:
- सहकारी संघवाद के मॉडल के रूप में GST परिषद:
- यह आम सहमति से संचालित कराधान नीति को सक्षम बनाता है। हालाँकि GST मुआवज़े और कराधान दरों पर हाल की असहमतियाँ राजकोषीय संघवाद में चुनौतियों को उजागर करती हैं।
- प्रतिस्पर्द्धा और सहयोग को बढ़ावा देने में नीति आयोग की भूमिका:
- केंद्रीकृत योजना आयोग का स्थान लिया गया, जिससे राज्य-विशिष्ट नीति-निर्माण की अनुमति मिली तथा यह सुनिश्चित हुआ कि राष्ट्रीय विकास लक्ष्य क्षेत्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप हों।
- जाँच एजेंसियों को लेकर केंद्र-राज्य विवाद:
- पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने CBI को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है तथा उन पर विपक्षी नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को निशाना बनाने के लिये केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है।
निष्कर्ष:
भारत को सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद के बीच संतुलन की आवश्यकता है। सहयोग एकता को बढ़ावा देता है, जबकि प्रतिस्पर्द्धा दक्षता को बढ़ाती है। अंतर-राज्य परिषद को मज़बूत करना, निष्पक्ष वित्तीय हस्तांतरण सुनिश्चित करना और पारदर्शी केंद्र-राज्य समन्वय शासन दक्षता से समझौता किये बिना संघीय सिद्धांतों को मज़बूत कर सकता है। अत्यधिक केंद्रीकरण संघवाद को कमज़ोर करता है।