Sambhav-2025

दिवस- 56: भारत में सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत मंत्रिमंडल को एक इकाई के रूप में कार्य करने हेतु बाध्य करता है। गठबंधन सरकार में सामूहिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने से जुड़े प्रावधानों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

04 Feb 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • परिचय में सामूहिक उत्तरदायित्व और मंत्रिमंडल की कार्यप्रणाली में इसकी भूमिका को परिभाषित कीजिये।
  • सामूहिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने वाले प्रावधानों की व्याख्या कीजिये।
  • इसे बनाए रखने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये, विशेषकर गठबंधन सरकार में।
  • सामूहिक उत्तरदायित्व के महत्त्व के साथ निष्कर्ष निकालिये।

परिचय:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75(3) में निहित सामूहिक ज़िम्मेदारी के सिद्धांत के अनुसार, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय सामूहिक रूप से लिये जाएँ और सभी मंत्री उनका पालन करें। हालाँकि गठबंधन सरकारों में विभिन्न विचारधाराओं और हितों वाले कई राजनीतिक दलों की उपस्थिति के कारण सामूहिक ज़िम्मेदारी बनाए रखना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बन जाता है।

मुख्य भाग:

सामूहिक उत्तरदायित्व पर संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 75(3) में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है।
  • यदि कोई मंत्री किसी निर्णय से असहमत है तो उन्हें या तो निर्णय स्वीकार करना होगा या इस्तीफा देना होगा।
  • यदि लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो संपूर्ण मंत्रिमंडल को पद छोड़ देना चाहिये, जिससे एकता के सिद्धांत को सुदृढ़ता मिलेगी।
  • राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति करता है, जिससे मंत्रिमंडल पर प्रधानमंत्री का अधिकार सुनिश्चित होता है।

सामूहिक उत्तरदायित्व का महत्त्व

  • निर्णय लेने में एकता और समन्वय सुनिश्चित करता है।
  • संसदीय जवाबदेही को मज़बूत करता है।
  • नीतिगत विरोधाभासों और शासन पक्षाघात को रोकता है।
  • एकीकृत सरकारी रुख सुनिश्चित करके कार्यकारी दक्षता को बढ़ाता है।

गठबंधन सरकारों में चुनौतियाँ:

  • वैचारिक मतभेद: गठबंधन साझेदारों की राजनीतिक विचारधाराएँ अक्सर विपरीत होती हैं, जिसके कारण संघर्ष होता है।
    • उदाहरण: UPA-I (2004-2009) को भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर वाम मोर्चे के विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें गठबंधन से हटना पड़ा।
  • नीतिगत निष्क्रियता और विलंब: विभिन्न गठबंधन साझेदार परस्पर विरोधी नीतियों पर ज़ोर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप निर्णय लेने में विलंब होता है
    • उदाहरण: NDA-I (1999-2004) के दौरान, कुछ गठबंधन सहयोगियों के प्रतिरोध के कारण आर्थिक सुधारों में देरी हुई।
  • व्यक्तिगत मंत्रिस्तरीय स्वायत्तता बनाम मंत्रिमंडल की एकता: गठबंधन युग के मंत्री अक्सर स्वतंत्र रुख अपनाते हैं जो मंत्रिमंडल के सामूहिक निर्णयों के साथ टकराव उत्पन्न करता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2012 में, सरकार की एक गठबंधन पार्टी के तत्कालीन रेल मंत्री को अपनी पार्टी के रुख के विरुद्ध रेल किराया वृद्धि का प्रस्ताव करने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।
  • बार-बार अस्थिरता और शक्ति परीक्षण: गठबंधन सरकारें गठबंधन वापसी के प्रति संवेदनशील होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप सरकार गिर जाती है।
    • उदाहरण: अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार (1998-99) AIADMK द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद गिर गई थी।
  • क्षेत्रीय दलों और लोकलुभावनवाद का दबाव: गठबंधन साझेदार अक्सर राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा क्षेत्रीय मांगों को प्राथमिकता देते हैं
    • उदाहरण: UPA-2 के दौरान श्रीलंका नीति पर AIADMK और DMK का प्रभाव।

गठबंधन सरकारों में सामूहिक उत्तरदायित्व को मज़बूत करना:

  • चुनाव पूर्व स्पष्ट गठबंधन: चुनाव से पहले गठबंधन बनाकर अवसरवादी गठबंधन से बचना चाहिये, वैचारिक स्थिरता सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • न्यूनतम साझा कार्यक्रम (CMP): नीतिगत टकरावों से बचने के लिये सभी भागीदारों द्वारा सहमत एक शासकीय एजेंडा तैयार करना चाहिये।
  • दल-बदल विरोधी कानून को मज़बूत करना: गठबंधन सहयोगियों को राजनीतिक लाभ के लिये आंतरिक असंतोष का फायदा उठाने से रोकना चाहिये।
  • संस्थागत सुधार:
    • मंत्रिस्तरीय नियुक्तियों में प्रधानमंत्री को अधिक अधिकार देना चाहिये।
    • नीतिगत असहमतियों को सक्रिय रूप से हल करने के लिये नियमित गठबंधन बैठकें करनी चाहिये
  • क्षेत्रीय मांगों पर राष्ट्रीय हित: गठबंधन सरकारों को क्षेत्रीय राजनीति पर राष्ट्रीय शासन को प्राथमिकता देनी चाहिये।

निष्कर्ष:

सामूहिक ज़िम्मेदारी का सिद्धांत भारत की संसदीय प्रणाली की स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि गठबंधन की राजनीति अक्सर वैचारिक संघर्षों, नीतिगत गतिरोधों और क्षेत्रीय दबावों के कारण अपनी प्रभावशीलता को कमज़ोर कर देती है। संस्थागत तंत्र को मज़बूत करना, चुनाव पूर्व प्रतिबद्धताओं को लागू करना और आंतरिक सहमति सुनिश्चित करना गठबंधन की राजनीति को समायोजित करते हुए सामूहिक ज़िम्मेदारी के सिद्धांत को बनाए रखने में मदद कर सकता है। भारत के शासन को स्थिरता और नीति निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय हित के साथ गठबंधन की मजबूरियों को संतुलित करना चाहिये।