03 Feb 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) और शासन में इसकी भूमिका को परिभाषित करते हुए इसका परिचय दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि राष्ट्रपति शासन किस प्रकार लोकतांत्रिक जनादेश को बाधित करता है तथा संवैधानिक स्थिरता सुनिश्चित करता है।
- संवैधानिक स्थिरता और लोकतांत्रिक मूल्यों के बीच संतुलन की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष निकालिये।
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परिचय:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 में संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रावधान है। हालाँकि यह शासन संकट के दौरान स्थिरता सुनिश्चित करता है, लेकिन यह निर्वाचित सरकार को बर्खास्त करके लोकतांत्रिक जनादेश को भी बाधित करता है। समय के साथ, न्यायिक घोषणाओं ने संघवाद और संवैधानिक संतुलन बनाए रखने के लिये इसके दुरुपयोग को रोकने का प्रयास किया है।
मुख्य भाग:
राष्ट्रपति शासन लोकतांत्रिक जनादेश को बाधित करता है:
- निर्वाचित सरकार का निलंबन: जब इसे लागू किया जाता है, तो राज्य विधानमंडल को भंग या निलंबित कर दिया जाता है और राज्यपाल कार्यकारी नियंत्रण अपने हाथ में ले लेते हैं।
- उदाहरण: बिहार विधानसभा विघटन (2005)- रामेश्वर प्रसाद मामला (2006) में असंवैधानिक घोषित किया गया क्योंकि इसने सरकार के गठन को रोक दिया।
- संघवाद के लिये खतरा: इसका बार-बार उपयोग राज्य की स्वायत्तता को कमज़ोर करता है और सहकारी संघवाद (सातवीं अनुसूची) के सिद्धांत के विरुद्ध जाता है।
- उदाहरण: अरुणाचल प्रदेश (2016)- कार्यरत सरकार के बावजूद राष्ट्रपति शासन लागू किया गया, जिसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया।
- दुरुपयोग के विरुद्ध न्यायिक सुरक्षा: न्यायालयों ने निर्णय दिया है कि राष्ट्रपति शासन वस्तुनिष्ठ आधार पर होना चाहिये, न कि राजनीतिक आधार पर।
- उदाहरण: एस.आर. बोम्मई केस (1994)- अनुच्छेद 356 की न्यायिक समीक्षा की स्थापना की और कहा कि राष्ट्रपति शासन मनमाने ढंग से नहीं लगाया जा सकता।
- ऐतिहासिक दुरुपयोग: कई सरकारों ने इसका उपयोग विपक्षी शासित राज्यों को सत्ता से हटाने के लिये किया है, जिससे राजनीतिक तटस्थता प्रभावित हुई है।
- उदाहरण: इंदिरा गांधी की सरकार (1966-77)- अनुच्छेद 356 को 39 बार लागू किया गया, विपक्षी दलों के नेतृत्व वाली कई राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया।
राष्ट्रपति शासन संवैधानिक स्थिरता सुनिश्चित करता है:
- राजनीतिक या प्रशासनिक विफलता के दौरान शासन को बहाल करना: यदि सरकार गिर जाती है या अराजकता फैल जाती है, तो राष्ट्रपति शासन प्रशासन की निरंतरता सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण: जम्मू और कश्मीर (2018) - राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा खतरों को रोकने के लिये भाजपा-पीडीपी गठबंधन टूटने के बाद लगाया गया।
- भ्रष्टाचार या अराजकता के कारण शासन को पंगु होने से रोकता है: यह सुनिश्चित करता है कि जहाँ भ्रष्टाचार या उग्रवाद के कारण प्रशासन पंगु हो गया है, वहाँ शासन सुचारु रूप से कार्य कर रहा है।
- उदाहरण: पंजाब (1987) - खालिस्तान विद्रोह के दौरान कानून और व्यवस्था बहाल करने के लिये लगाया गया।
- न्यायिक और संवैधानिक निगरानी: कई आयोगों ने संतुलन बनाए रखने के लिये राष्ट्रपति शासन के प्रतिबंधात्मक उपयोग की सिफारिश की है।
- उदाहरण: सरकारिया आयोग (1988) - ने सिफारिश की कि अनुच्छेद 356 अंतिम उपाय होना चाहिये और पहले अन्य विकल्पों की खोज की जानी चाहिये।
न्यायिक हस्तक्षेप और केस स्टडी:
- सुरक्षा के रूप में न्यायिक समीक्षा: न्यायालयों ने राष्ट्रपति शासन के मनमाने ढंग से लागू किये गए प्रावधानों को पलट दिया है, जिससे संवैधानिक लोकतंत्र मज़बूत हुआ है।
- उदाहरण: उत्तराखंड (2016) - सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति शासन को निरस्त कर दिया, बर्खास्त सरकार को बहाल कर दिया और न्यायिक निगरानी की पुनः पुष्टि की।
- राजनीतिक अस्थिरता के कारण राष्ट्रपति शासन: जब गठबंधन टूट जाता है, तो राष्ट्रपति शासन एक अस्थायी स्थिरता के रूप में कार्य करता है।
- उदाहरण: कर्नाटक (2019) - बड़े पैमाने पर इस्तीफों के कारण राजनीतिक अनिश्चितता के कारण इसे कुछ समय के लिये लागू किया गया था।
निष्कर्ष:
राष्ट्रपति शासन एक दोधारी तलवार है- यह संकट के समय स्थिरता सुनिश्चित करता है लेकिन इसका दुरुपयोग होने पर लोकतांत्रिक जनादेश को बाधित करता है। सरकारिया आयोग (1988) ने भारत में संघवाद और लोकतांत्रिक शासन को बनाए रखने के लिये वैकल्पिक उपायों पर ज़ोर देते हुए इसे केवल अंतिम उपाय के रूप में उपयोग करने की सिफारिश की थी।