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Sambhav-2025

  • 11 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 9: प्राचीन भारत में महाजनपदों की राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना तथा प्रारंभिक राज्य प्रणाली को आकार देने में उनकी भूमिका पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • महाजनपदों और उनके ऐतिहासिक संदर्भ को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
    • महाजनपदों की राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना पर चर्चा कीजिये।
    • प्राचीन भारत में प्रारंभिक राज्य प्रणाली को आकार देने में उनकी भूमिका का उल्लेख कीजिये। 
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय: 

    6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास उभरे महाजनपद प्राचीन भारत में आदिवासी समाजों से संगठित राज्यों में संक्रमण का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन 16 प्रमुख राजनीतिक संस्थाओं ने प्रादेशिक शासन और केंद्रीकृत प्रशासन की नींव रखी, जिसने प्रारंभिक राज्य प्रणालियों को आकार दिया।

    मुख्य भाग: 

    राजनीतिक संरचना

    • शासन के प्रकार:
      • राजतंत्र (राज्य):
        • मगध, कोसल और काशी में वंशानुगत राजत्व की विशेषता थी।
        • राजा के पास सर्वोच्च सत्ता होती थी, जिसे मंत्रियों और सलाहकारों का सहयोग प्राप्त होता था।
    • गणराज्य:
      • इसके उदाहरणों में वैशाली और शाक्य शामिल हैं, जहाँ शासन सहभागिता पर आधारित था।
      • निर्णय लेने का कार्य सभा और समिति जैसी संस्थाओं के माध्यम से होता था।
    • विधानसभाएँ और परिषदें:
      • राजतंत्र: सभाएँ सलाहकारी भूमिका निभाती थीं, जिनमें प्रायः अभिजात वर्ग का प्रभुत्व होता था।
      • गणराज्य: निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ विधानसभाएँ निर्णय लेने वाली निकायों के रूप में कार्य करती थीं।
    • युद्ध और कूटनीति:
      • प्रभुत्व के लिये अंतर-महाजनपद संघर्ष अक्सर होते थे, जैसे– मगध और कोसल के बीच।
      • कूटनीति और रणनीतिक गठबंधनों ने भी क्षेत्रीय विस्तार में भूमिका निभाई।

    प्रशासनिक संरचना

    • राजस्व प्रणाली:
      • बलि (स्वैच्छिक योगदान) और भाग (उत्पाद का हिस्सा) जैसे कर एकत्र किये गए।
      • राजस्व से प्रशासन और सैन्य रखरखाव को सहायता मिलती थी।
    • सैन्य संगठन:
      • राजतंत्रों के पास स्थायी सेनाएँ थीं, जो रक्षा और विस्तार के लिये महत्त्वपूर्ण थीं।
      • युद्ध के समय गणराज्यों ने नागरिकों को सैनिकों के रूप में संगठित किया।
    • न्यायिक एवं कानून निर्माण:
      • राज्यों में राजा न्याय के मुख्य प्रवर्तक थे, जबकि गणराज्यों में सामूहिक निर्णय प्रक्रिया अपनाई जाती थी।
      • कानून संहिताएँ उभरने लगीं, जिनमें व्यवस्था और शासन पर ज़ोर दिया गया।
    • शहरी प्रशासन:
      • पाटलिपुत्र और वाराणसी जैसे शहरी केंद्रों में व्यापार, बाज़ार एवं सार्वजनिक कल्याण की देखरेख करने वाले अधिकारी थे।

    प्रारंभिक राज्य प्रणालियों को आकार देने में भूमिका

    • प्रादेशिक राज्य गठन:
      • कुल-वंश आधारित जनजातीय शासन से क्षेत्रीय प्रशासन की ओर परिवर्तन।
      • केंद्रीकृत प्राधिकरण की अवधारणा स्पष्ट सीमाओं के साथ विकसित हुई।
    • आर्थिक आधार:
      • शहरीकरण और अधिशेष कृषि ने महाजनपदों के विकास को बढ़ावा दिया।
      • व्यापार नेटवर्क और सिक्का-निर्माण ने आर्थिक स्थिरता को सुगम बनाया।
    • सांस्कृतिक और राजनीतिक एकीकरण:
      • महाजनपदों ने वैदिक अनुष्ठानों और बौद्ध तथा जैन धर्म के उदय जैसी समान धार्मिक प्रथाओं के माध्यम से सांस्कृतिक एकता को प्रोत्साहित किया।
      • बिंबिसार और अजातशत्रु के शासनकाल में मगध का प्रभुत्व साम्राज्यिक एकीकरण की दिशा में पहला महत्त्वपूर्ण कदम था।
    • साम्राज्यों के अग्रदूत:
      • महाजनपदों ने सशक्त शासन, संगठित नौकरशाही और सैन्य शक्ति पर ज़ोर देकर मौर्य साम्राज्य जैसे बाद के साम्राज्यों के लिये एक आदर्श स्थापित किया।

    निष्कर्ष

    महाजनपदों ने शासन के ऐसे मॉडल स्थापित करके प्रारंभिक राज्य प्रणालियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्होंने भारत को जनजातीय संरचनाओं से क्षेत्रीय राजनीतिक प्रणालियों में परिवर्तित किया। महाजनपदों की विरासत प्रशासनिक ढाँचों और राजनीतिक रणनीतियों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जिन्होंने बाद के साम्राज्यों को प्रभावित किया। अपने योगदान के माध्यम से, महाजनपदों ने भारत की समृद्ध और विविध राज्य निर्माण परंपरा की नींव रखी।

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