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Sambhav-2025

  • 07 Dec 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    दिवस- 6: भारतीय संस्कृति और विरासत की सुरक्षा और संवर्द्धन के उद्देश्य से संवैधानिक प्रावधानों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारतीय संविधान, भारतीय संस्कृति और विरासत की सुरक्षा और संवर्द्धन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, चर्चा कीजिये।
    • भारतीय संस्कृति और विरासत को सुरक्षित रखने और बढ़ावा देने के उद्देश्य से संवैधानिक प्रावधानों तथा कानूनी ढाँचे का उल्लेख कीजिये।
    • कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियों की पहचान कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय: 

    भारतीय संविधान भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की अद्वितीय विविधता तथा समृद्धि को मान्यता प्रदान करता है। यह विविधता में एकता को बढ़ावा देते हुए, पीढ़ियों तक इस विरासत की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिये इसे संरक्षित और संवर्द्धित करने के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।

    मुख्य भाग: 

    भारतीय संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने वाले संवैधानिक प्रावधान एवं कानूनी ढाँचा: 

    • मौलिक अधिकार
      • अनुच्छेद 29: नागरिकों को अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा और लिपि को संरक्षित रखने के अधिकार की रक्षा करता है।
      • अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति को संरक्षित करने के लिये शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार देता है।
    • मौलिक कर्त्तव्य
      • अनुच्छेद 51ए(एफ): नागरिकों को देश की समृद्ध विरासत को महत्त्व देने और संरक्षित करने का दायित्व देता है।
      • अनुच्छेद 51ए(जी): पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करता है, जो सांस्कृतिक प्रथाओं का अभिन्न अंग है।
    • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (डीपीएसपी)
      • अनुच्छेद 48: पर्यावरण, वन और वन्यजीवों के संरक्षण का समर्थन करता है, जो सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुड़े हुए हैं।
      • अनुच्छेद 49: राज्य को ऐतिहासिक महत्त्व के स्मारकों और स्थानों की सुरक्षा करने का दायित्व देता है।
    • विशेष प्रावधान 
      • छठी अनुसूची: पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों को अपने रीति-रिवाज़ों को संरक्षित करने के लिये स्वायत्तता प्रदान करती है।
      • आठवीं अनुसूची: संविधान भारत की भाषाई विविधता को मान्यता देता है।
    • कानूनी ढाँचा
      • प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा करता है।
      • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई) जैसी संस्थाओं की स्थापना से सांस्कृतिक संरक्षण सुनिश्चित होता है।
    • राष्ट्रीय संस्थाएँ
      • साहित्य अकादमी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय भारतीय साहित्य, कला रूपों तथा सांस्कृतिक परंपराओं को बढ़ावा देने एवं संरक्षित करने का कार्य करते हैं, साथ ही वे देश की सांस्कृतिक जीवंतता को समर्थन प्रदान करते हैं।
      • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) और राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्द्धन परिषद (एनसीपीयूएल) विभिन्न सांस्कृतिक परंपराओं की सुरक्षा की दिशा में कार्य करते हैं।

    कार्यान्वयन चुनौतियाँ

    • शहरीकरण और विकास: तेज़ी से शहरी विस्तार और बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ अक्सर विरासत स्थलों पर अतिक्रमण करती हैं।
      • कर्नाटक स्थित हम्पी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल को अवैध निर्माण और पर्यटन कुप्रबंधन से खतरा है।
    • अपर्याप्त जागरूकता: कई नागरिक अपने संवैधानिक कर्त्तव्यों और विरासत संरक्षण के महत्त्व से अनभिज्ञ हैं।
      • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों के संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी की कमी, इसके ऐतिहासिक महत्त्व के बावजूद उपेक्षा का कारण बनती है।
    • अपर्याप्त वित्तपोषण एवं संसाधन: विरासत संरक्षण परियोजनाएँ अपर्याप्त वित्तीय आवंटन और संस्थागत अक्षमताओं के कारण प्रभावित होती हैं।
      • ओडिशा के कोणार्क स्थित सूर्य मंदिर को नियमित रखरखाव की आवश्यकता है, लेकिन सीमित संसाधनों के कारण आवश्यक जीर्णोद्धार कार्य में विलंब हो रहा है।
    • कम ज्ञात परंपराओं की उपेक्षा: ज़्यादातर मुख्यधारा की विरासत पर ज़ोर दिया जाता है, जिससे स्थानीय और जनजातीय संस्कृतियों को हाशिये पर धकेला जाता है।
      • पश्चिम बंगाल के बाउल गीत जैसी लोक संगीत परंपराएँ, जो अपनी धुनों के माध्यम से आध्यात्मिक स्वतंत्रता पर ज़ोर देती हैं, अपने स्थानीय क्षेत्रों से बाहर मान्यता पाने के लिये संघर्ष करती हैं।

    निष्कर्ष: 

    भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिये संवैधानिक प्रावधान एसडीजी 11.4 के अनुरूप हैं, जिसमें सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत की रक्षा के लिये सशक्त प्रयासों की बात कही गई है। हालाँकि प्रभावी कार्यान्वयन के लिये सरकार और नागरिकों के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है, इसमें इन परंपराओं की सुरक्षा के लिये जन जागरूकता बढ़ाने, संसाधनों का बेहतर आवंटन, सक्रिय समुदाय भागीदारी एवं प्रौद्योगिकी के समुचित एकीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।

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