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Sambhav-2025

  • 18 Feb 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 68: भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) मानवाधिकारों की सुरक्षा में कितनी प्रभावी है? इसकी कार्यक्षमता बढ़ाने और अधिदेश को मज़बूत करने के लिये कौन-से सुधार आवश्यक हैं? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • NHRC और मानव अधिकारों की सुरक्षा में इसकी भूमिका का परिचय दीजिये।
    • NHRC की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये, उदाहरणों के साथ शक्तियों और सीमाओं पर प्रकाश डालिये।
    • NHRC के अधिदेश को मज़बूत करने के लिये आवश्यक सुधारों का सुझाव दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिये राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की स्थापना वर्ष 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के तहत की गई थी। यह मानवाधिकार उल्लंघनों को संबोधित करने, नीतिगत सुधारों की सिफारिश करने और जवाबदेही स्थापित करने में निर्णायक भूमिका निभाता है।

    मुख्य भाग:

    मानव अधिकारों की सुरक्षा में NHRC की प्रभावशीलता:

    • न्यायिक शक्तियाँ और जाँच भूमिका: NHRC मानव अधिकार उल्लंघन की जाँच कर सकता है और मुआवज़े की सिफारिश कर सकता है। 
      • उदाहरण: NHRC ने मणिपुर (2017) में मुठभेड़ हत्याओं जैसे मामलों में हस्तक्षेप किया, जिससे पीड़ितों के लिये न्याय सुनिश्चित हुआ।
    • मानवाधिकार उल्लंघन की निगरानी: यह हिरासत में मौत, पुलिस अत्याचार और हाशिये पर पड़े समुदायों के खिलाफ हिंसा की सक्रिय निगरानी करता है। 
      • उदाहरण: अभ्रक खदानों में बाल श्रम पर NHRC की रिपोर्ट (झारखंड) के कारण नीतिगत हस्तक्षेप हुआ।
    • हाशिये पर पड़े समूहों का संरक्षण: मैला ढोने, बँधुआ मज़दूरी, बाल अधिकार और दलित अत्याचारों पर रिपोर्टों के कारण नीतिगत परिवर्तन हुए हैं।
    • नीतिगत सिफारिशें और जागरूकता कार्यक्रम: NHRC कानूनी सुधारों, जेल की स्थितियों और पीड़ितों के पुनर्वास को प्रभावित करता है। 
      • उदाहरण: NHRC की सिफारिशों के कारण जेल सुधार हुए और विचाराधीन कैदियों के लिये बेहतर परिस्थितियाँ बनीं

    NHRC की कार्यप्रणाली में सीमाएँ और चुनौतियाँ:

    • सिफारिशों के प्रवर्तन में कमी: NHRC के सुझाव बाध्यकारी नहीं हैं, जिसके कारण राज्य एजेंसियों द्वारा खराब कार्यान्वयन होता है। 
      • उदाहरण: हिरासत में यातना के संबंध में NHRC की चिंताओं के बावजूद, पुलिस सुधार की प्रक्रिया धीमी बनी हुई है।
    • सीमित स्वायत्तता और राजनीतिक प्रभाव: नियुक्ति प्रक्रिया पर कार्यपालिका का प्रभुत्व है, जिससे स्वतंत्रता को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं। 
    • क्षेत्राधिकार संबंधी बाधाएँ: यह सशस्त्र बलों के उल्लंघनों की जाँच नहीं कर सकता, जिससे AFSPA के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में इसकी भूमिका सीमित हो जाती है।
    • अपर्याप्त संसाधन एवं मानवशक्ति: NHRC के पास पर्याप्त वित्तीय एवं मानव संसाधनों का अभाव है, जिससे जाँच एवं अनुवर्ती कार्रवाई प्रभावित होती है। 
      • उदाहरण: लंबित मामलों की उच्च दर समय पर न्याय प्रदान करने की इसकी दक्षता को कम करती है।

    NHRC के अधिदेश को मज़बूत करने के लिये आवश्यक सुधार:

    • NHRC की सिफारिशों को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाना: प्रवर्तनीय शक्तियाँ प्रदान करने से मानवाधिकार संरक्षण के कार्यान्वयन में सुधार होगा।
    • अधिक स्वायत्तता सुनिश्चित करना: कार्यकारी नियंत्रण को कम करने और स्वतंत्रता को बढ़ाने के लिये नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार करना।
    • वित्तीय एवं मानव संसाधन में वृद्धि: जाँच में तेज़ी लाने के लिये बजटीय आवंटन और कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि।
    • राज्य मानवाधिकार आयोगों (HSRC) को मज़बूत बनाना: धरातलीय स्तर पर मानवाधिकार संरक्षण के लिये बेहतर समन्वय और वित्तपोषण सुनिश्चित करना।

    निष्कर्ष:

    हालाँकि मानवाधिकारों की रक्षा में NHRC महत्त्वपूर्ण रहा है, लेकिन प्रवर्तन सीमाओं और राजनीतिक प्रभाव के कारण इसकी प्रभावशीलता में बाधा आती है। सुधारों के माध्यम से इसे मज़बूत करने से इसकी स्वतंत्रता बढ़ेगी और यह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (NHRC) जैसे वैश्विक मानकों के अनुरूप होगा

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