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02 Jan 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-28: भारत की अंतरिम सरकार द्वारा सामना की गई प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और स्वतंत्र शासन में संक्रमण को सुगम बनाने में इसकी भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत की अंतरिम सरकार का संक्षिप्त अवलोकन प्रस्तुत कीजिये।
- अंतरिम सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- अंतरिम सरकार के योगदान पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
वर्ष 1946 में गठित और भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में, अंतरिम सरकार को वर्ष 1947 में सत्ता के औपचारिक हस्तांतरण तक भारत के प्रशासन की देखरेख का कार्य सौंपा गया था। यह अंतरिम व्यवस्था भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर थी, जिसने स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र की स्थापना के लिये आधार तैयार करते हुए तत्कालीन चुनौतियों का सामना किया।
मुख्य भाग:
अंतरिम सरकार के समक्ष चुनौतियाँ:
- सांप्रदायिक तनाव:
- प्रमुख चुनौतियों में से एक हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बढ़ता सांप्रदायिक तनाव था, जिसे पृथक मुस्लिम राज्य की मांग ने और अधिक गंभीर बना दिया।
- अंतरिम सरकार को स्थिरता बनाए रखने और व्यापक हिंसा को रोकने के लिये इन तनावों से निपटना पड़ा।
- विभाजन और विस्थापन:
- भारत का विभाजन कर पाकिस्तान बनाने के निर्णय के कारण बड़े पैमाने पर पलायन, सांप्रदायिक दंगे और जनसंख्या का विस्थापन हुआ।
- अंतरिम सरकार को मानवीय संकट और बड़े पैमाने पर जनसंख्या स्थानांतरण के प्रबंधन जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- रियासतों का एकीकरण:
- विलय की प्रक्रिया के लिये इन राज्यों के शासकों के साथ सावधानीपूर्वक और जटिल वार्ता करना आवश्यक था।
- विभिन्न निष्ठाओं वाली रियासतों को एकजुट कर नवगठित राष्ट्र की अखंडता सुनिश्चित करने के लिये गहन कूटनीतिक कौशल की आवश्यकता थी।
- आर्थिक पुनर्वास:
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की आर्थिक परिस्थितियों और औपनिवेशिक शोषण के दीर्घकालिक प्रभावों ने भारत के लिये गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न कर दिये।
- अंतरिम सरकार को आर्थिक पुनर्वास की चुनौती का सामना करना पड़ा, जिसमें मुद्रास्फीति, बेरोज़गारी और संसाधन आवंटन जैसे मुद्दों का समाधान करना शामिल था।
अंतरिम सरकार का योगदान:
- स्वतंत्रता की ओर संक्रमण:
- अंतरिम सरकार ने ब्रिटिश शासन से भारतीय स्वतंत्रता तक के संक्रमण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसकी स्थापना से भारतीय स्वशासन की शुरुआत हुई और औपनिवेशिक सत्ता का अंत हुआ।
- संवैधानिक ढाँचा:
- अंतरिम सरकार ने भारत के भविष्य के संविधान की आधारशिला तैयार की।
- वर्ष 1946 में संविधान सभा का गठन, स्वतंत्र राष्ट्र पर शासन करने वाले संविधान का प्रारूप तैयार करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
- रियासतों का एकीकरण:
- रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने के प्रयास किये गए, ताकि एकीकृत और समरस राष्ट्र का निर्माण सुनिश्चित किया जा सके।
- हैदराबाद और जूनागढ़ जैसे राज्यों के सफल एकीकरण ने अंतरिम सरकार के कूटनीतिक प्रयासों की प्रभावशीलता को प्रदर्शित किया।
- विदेश नीति पहल:
- अंतरिम सरकार ने भारत की विदेश नीति को आकार देने तथा अन्य देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- भारत को संयुक्त राष्ट्र में शामिल कराने और उसे वैश्विक मंच पर एक स्वतंत्र एवं संप्रभु सदस्य के रूप में स्थापित करने में इसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आर्थिक पहल:
- अंतरिम सरकार ने युद्धोत्तर आर्थिक चुनौतियों से निपटने के उद्देश्य से आर्थिक नीतियाँ शुरू कीं।
- स्वतंत्रता के बाद की अवधि में, अर्थव्यवस्था को स्थिर करने, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और योजनाबद्ध आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए।
निष्कर्ष:
भारत की अंतरिम सरकार ने देश के स्वतंत्रता-पूर्व राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। चुनौतियों के बावजूद, इसने संवैधानिक ढाँचे की स्थापना, सांप्रदायिक तनावों का प्रबंधन, रियासतों का एकीकरण और आर्थिक पुनर्वास की शुरुआत जैसे महत्त्वपूर्ण योगदान दिये, जिनसे स्वतंत्र तथा संप्रभु भारत की नींव रखी गई।