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Sambhav-2025

  • 14 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस 89: ओज़ोन परत के क्षरण के प्रमुख कारक क्या हैं? मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल जैसी वैश्विक पहलों ने ओज़ोन क्षरणकारी पदार्थों को नियंत्रित करने में कितनी प्रभावशीलता दिखाई है? साथ ही, भारत ने इन वैश्विक प्रयासों के साथ अपनी नीतियों को किस प्रकार संरेखित किया है? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • ओज़ोन परत के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • ओज़ोन परत क्षरण के प्रमुख कारणों पर चर्चा कीजिये।
    • वैश्विक पहलों के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।
    • वैश्विक प्रयासों के साथ भारत के संरेखण पर चर्चा कीजिये।
    • उचित रूप से निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    समताप मंडल (पृथ्वी से 10-50 किमी. ऊपर) में स्थित ओज़ोन परत हानिकारक UV विकिरण को अवशोषित करती है और पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है। इसमें ओज़ोन (O₃) अणु होते हैं, जो तब बनते हैं जब ऑक्सीज़न (O₂) सौर विकिरण के साथ संपर्क करती है। ओज़ोन परत का ह्रास मानव निर्मित और प्राकृतिक कारकों के कारण ओज़ोन सांद्रता के पतले होने को संदर्भित करता है।

    मुख्य भाग: 

    ओज़ोन परत क्षरण के प्रमुख कारण

    • क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) – प्राथमिक कारण
      • CFC का उपयोग रेफ्रिज़रेटर, एयर कंडीशनर, एरोसोल स्प्रे और फोम उड़ाने वाले एजेंटों में किया जाता है।
      • एक बार छोड़े जाने पर, वे ओज़ोन अणुओं को तोड़ देते हैं, जिससे अंटार्कटिका के ऊपर ओज़ोन छिद्र बन जाता है (जिसका पहली बार वर्ष 1985 में पता चला था)।
    • हैलोन और ब्रोमीन यौगिक
      • अग्निशामक यंत्रों और औद्योगिक विलायकों में पाए जाने वाले हैलोन, CFC की तुलना में ओज़ोन के लिये 10 गुना अधिक विनाशकारी हैं।
      • ब्रोमीन क्लोरीन की तुलना में ओज़ोन विनाश में 60 गुना अधिक प्रभावी है
    • हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) और मिथाइल ब्रोमाइड
      • HCFC को CFC के स्थानांतरणीय विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन यह अभी भी ओज़ोन को नुकसान पहुँचाता है।
      • कीटनाशक के रूप में उपयोग किये जाने वाले मिथाइल ब्रोमाइड में उच्च ओज़ोन अवक्षय क्षमता (ODP) होती है।
    • नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) – उभरता खतरा
      • उर्वरकों, जीवाश्म ईंधनों और बायोमास दहन से उत्सर्जित नाइट्रस ऑक्साइड, CFC को पीछे छोड़कर सबसे बड़ी ओज़ोन परत को क्षति पहुँचाने वाली गैस बन गई है
      • नासा के वर्ष 2018 के अध्ययन ने N₂O को ओज़ोन के लिये सबसे बड़ा दीर्घकालिक खतरा बताया।

    मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल जैसी वैश्विक पहल का प्रभाव

    • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987) – एक ऐतिहासिक समझौता
      • सर्वत्र अनुमोदित होने वाली पहली वैश्विक संधि (198 देशों द्वारा)।
      • उद्देश्य: CFC, HCFC और हैलोन जैसे ODS को खत्म करना।
      • सफलता:
        • विश्व स्तर पर 98% ODC समाप्त हो चुका है (UNEP, 2022)।
        • अंटार्कटिका में ओज़ोन छिद्र सिकुड़ रहा है ( WMO के अनुसार, वर्ष 2066 तक सुधार की उम्मीद है)।
    • किगाली संशोधन (2016) – ओज़ोन और जलवायु कार्रवाई में अगला कदम
      • इसका लक्ष्य हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) है, जो ओज़ोन परत को नष्ट नहीं करता, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है
      • वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान में 0.5°C की कमी आने की उम्मीद है।
      • देश वर्ष 2047 तक 85% HFC को समाप्त करने के लिये प्रतिबद्ध हैं
    • चुनौतियाँ
      • प्रतिबंधित पदार्थों का अवैध उत्पादन: प्रतिबंध के बावजूद कुछ देशों में CFC-11 उत्सर्जन पाया गया।
      • विकासशील देशों को वैकल्पिक विकल्पों को अपनाने में वित्तीय एवं तकनीकी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

    वैश्विक प्रयासों के साथ भारत का संरेखण

    • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का शीघ्र अंगीकरण (1992)
      • भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के त्वरित कार्यक्रम के अनुरूप ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के अनुसार, वर्ष 2010 तक CFC को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया गया था और वर्ष 2030 तक HCFC को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर रहा है।
      •  भारत की HCFC चरण-आउट प्रबंधन योजना (HPMP) के कारण वर्ष 2020 तक HCFC के उपयोग में 35% की कमी आएगी
    • राष्ट्रीय शीतलन कार्य योजना (NCAP) (2019)
      • इसका लक्ष्य वर्ष 2037-38 तक शीतलन मांग को 25-30% तथा रेफ्रिजरेंट उपयोग को 85% तक कम करना है
      • ऊर्जा-कुशल शीतलन प्रौद्योगिकियों और अमोनिया जैसे प्राकृतिक रेफ्रिज़रेंट को बढ़ावा देता है।
    • किगाली संशोधन अनुसमर्थन (2021)
      • भारत ने वर्ष 2047 तक HFC खपत को 80% तक कम करने का संकल्प लिया है

    निष्कर्ष:

    मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल वैश्विक स्तर पर सफल रहा है, जिसने ओज़ोन क्षरण की प्रवृत्ति को उलट दिया है। वैश्विक समझौतों के साथ नीति संरेखण, हानिकारक पदार्थों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना और सतत् शीतलन को बढ़ावा देने सहित भारत के सक्रिय उपाय इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। हालाँकि पूर्ण ओजोन पुनर्स्थापन और जलवायु-अनुकूल विकल्पों की गारंटी के लिये निरंतर नवाचार एवं कठोर प्रवर्तन आवश्यक हैं।

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