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Sambhav-2025

  • 14 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस- 89: कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक प्लास्टिक संधि को अंतिम रूप देने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? साथ ही, प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावी रूप से निपटने के लिये वैश्विक सहयोग को सुनिश्चित करने हेतु उपाय सुझाइये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • वैश्विक प्लास्टिक संधि का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • संधि को अंतिम रूप देने में प्रमुख बाधाओं पर चर्चा कीजिये।
    • प्रभावी वैश्विक सहयोग सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये।
    • उचित रूप से निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    वैश्विक प्लास्टिक संधि को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) द्वारा वर्ष 2022 में प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करने के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचा स्थापित करने के लिये प्रस्तावित किया गया था, जिसे वर्ष 2025 तक अंतिम रूप देने का लक्ष्य रखा गया था। इस संधि का उद्देश्य प्लास्टिक उत्पादन को विनियमित करना, पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना और प्रदूषण को कम करना है, लेकिन अलग-अलग राष्ट्रीय प्राथमिकताओं तथा औद्योगिक प्रतिरोध के कारण इसे कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।

    मुख्य भाग: 

    संधि को अंतिम रूप देने में प्रमुख बाधाएँ

    • प्लास्टिक उत्पादन पर सीमाएँ: विवाद का मुख्य मुद्दा यह था कि क्या देशों को वर्जिन प्लास्टिक पॉलिमर्स (पेट्रोलियम से प्राप्त कच्चे माल से निर्मित) के उत्पादन को कम करने के लक्ष्य पर सहमत होना चाहिये।  
      • नॉर्वे और रवांडा के नेतृत्व में 66 देशों का समूह, यूरोपीय संघ के साथ मिलकर प्लास्टिक के पर्यावरणीय प्रभाव को नियंत्रित करने के लिये प्लास्टिक के उत्पादन पर सीमा लगाने का समर्थन कर रहा है। 
      • सऊदी अरब और भारत जैसे देश, जो अपनी अर्थव्यवस्थाओं के लिये पेट्रोकेमिकल्स एवं प्लास्टिक उत्पादन पर बहुत अधिक निर्भर हैं, ने ऐसे किसी भी उपाय का विरोध किया जो उत्पादन को सीमित करेगा। 
    • वित्तीय तंत्र का अभाव: विकासशील देशों के लिये प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन पर प्रतिवर्ष लगभग 32 बिलियन डॉलर का खर्च आता है, फिर भी उनकी सहायता के लिये कोई वैश्विक कोष स्थापित नहीं किया गया है।
      • मालदीव जैसे छोटे द्वीपीय राष्ट्र, जो समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से अत्यधिक पीड़ित हैं, के पास उचित अपशिष्ट प्रबंधन के लिये वित्तीय संसाधनों का अभाव है।
    • विकास संबंधी चिंताएँ: मसौदा संधि में वर्ष 2040 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और डाई (2-एथिलहेक्सिल) फथलेट (DEHP), डिब्यूटाइल फथलेट (DBP), बेंज़िल ब्यूटाइल फथलेट (BBP) और डाई-आइसोब्यूटाइल फथलेट (DIBP) जैसे खतरनाक रसायनों को प्रतिबंधित करने के लिये वर्ष-वार लक्ष्य प्रस्तावित किये गए हैं। 
      • यद्यपि इन उपायों का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना था, लेकिन इनके नकारात्मक आर्थिक प्रभावों के कारण कुछ देशों ने इन्हें अस्वीकार कर दिया। 
      • यद्यपि भारत ने प्लास्टिक अपशिष्ट को रोकने के लिये कदम उठाए हैं, जिनमें अल्पकालिक प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना और विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) व्यवस्था लागू करना शामिल है, फिर भी उसने प्रस्तावित लक्ष्यों का विरोध किया है और कहा है कि ऐसे नियम देश के विकास को नुकसान पहुँचा सकते हैं। 
    • संधि के दायरे पर असहमति: जबकि कई देश चाहते थे कि संधि प्लास्टिक के पूरे जीवन चक्र (उत्पादन, खपत, अपशिष्ट प्रबंधन और इसके प्रभाव सहित) को संबोधित करे, वहीं कुछ प्रतिनिधिमंडलों का मानना ​​था कि ध्यान केवल प्लास्टिक अपशिष्ट पर ही होना चाहिये।  
      • इससे व्यापक समाधान चाहने वालों और तत्काल अपशिष्ट प्रबंधन को प्राथमिकता देने वालों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया।  
      • कुवैत ने प्लास्टिक प्रदूषण से परे अधिदेश के विस्तार की आलोचना करते हुए दावा किया कि यह व्यापार प्रतिबंधों और आर्थिक एजेंडों का बहाना है।

    प्रभावी वैश्विक सहयोग के लिये उपाय

    • सामंजस्यपूर्ण विनियमन और मानकीकृत नीतियाँ: प्लास्टिक उत्पादन सीमा, पुनर्चक्रण लक्ष्य और अपशिष्ट निपटान प्रोटोकॉल के लिये सार्वभौमिक दिशा-निर्देश स्थापित करें।
      • यूरोपीय संघ के प्लास्टिक अपशिष्ट निर्देश में वर्ष 2030 तक 55% प्लास्टिक पुनर्चक्रण को अनिवार्य किया गया है, यह एक ऐसा मॉडल है जिसे विश्व स्तर पर लागू किया जा सकता है।
    • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) और कॉर्पोरेट जवाबदेही: EPR नीतियों के माध्यम से प्लास्टिक उत्पादक कंपनियों को उपभोक्ता-पश्चात अपशिष्ट प्रबंधन के लिये उत्तरदायी बनाएँ।
      • भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (2022) के अनुसार निर्माताओं को प्लास्टिक अपशिष्ट को वापस एकत्र करना होगा और उसके पुनर्चक्रण के लिये धन उपलब्ध कराना होगा।
    • वित्तीय सहायता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: सतत् विकल्प और अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढाँचे के विकास में कम आय वाले देशों की सहायता के लिये एक वैश्विक प्लास्टिक कोष बनाएँ।
      • बेसल कन्वेंशन की प्लास्टिक अपशिष्ट साझेदारी विकासशील देशों को प्लास्टिक अपशिष्ट के आयात पर नज़र रखने और उसे कम करने में सहायता करती है
    • बायोडिग्रेडेबल विकल्पों में निवेश: सरकारों को बायोप्लास्टिक्स (जैसे- PLA, PHA) और पौधे-आधारित पैकेजिंग के अनुसंधान एवं उत्पादन को सब्सिडी देनी चाहिये।
      • जापान के "बायोप्लास्टिक रोडमैप" का लक्ष्य वर्ष 2030 तक जैव-आधारित प्लास्टिक उत्पादों के उपयोग को लगभग 50,000 टन से बढ़ाकर 2 मिलियन टन करना है।
    • वैश्विक निगरानी एवं अनुपालन तंत्र को सुदृढ़ बनाना: वैश्विक प्रगति पर नज़र रखने और गैर-अनुपालन के लिये दंड लगाने के लिये UNEP के तहत एक प्लास्टिक प्रदूषण निगरानी निकाय की स्थापना करना
      • पेरिस समझौते के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) मॉडल को प्लास्टिक के लिये भी दोहराया जा सकता है।

    निष्कर्ष

    जबकि वैश्विक प्लास्टिक संधि प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है, इसकी सफलता पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ आर्थिक चिंताओं को संतुलित करने पर निर्भर करती है। इस संकट से निपटने में प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये एक मज़बूत प्रवर्तन तंत्र, विकासशील देशों के लिये वैश्विक वित्तपोषण और उद्योग की जवाबदेही आवश्यक है।

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