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Sambhav-2025

  • 30 Jan 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 52: भूमि सुधारों और संपत्ति पर राज्य की नियामक शक्तियों के संदर्भ में, अनुच्छेद 31 के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय में अनुच्छेद 31 और संपत्ति अधिकारों में इसकी भूमिका को परिभाषित कीजिये। 
    • भूमि सुधार और राज्य नियामक शक्तियों में इसके महत्त्व को समझाइये।
    • भूमि पुनर्वितरण और संवैधानिक संशोधनों पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। 
    • भारत में संपत्ति अधिकारों के विकास के साथ उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 ने शुरू में संपत्ति को मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी दी, लेकिन राज्य को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिये संपत्ति को अधिगृहीत करने की अनुमति दी। इसने भू-स्वामियों के लिये मुआवजे के साथ भूमि सुधारों की सुविधा प्रदान की। हालाँकि, व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक न्याय के बीच तनाव के कारण, इसे 1978 में 44वें संशोधन द्वारा निरस्त कर दिया गया, जिससे संपत्ति अनुच्छेद 300A के तहत एक कानूनी अधिकार बन गया।

    मुख्य भाग:

    अनुच्छेद 31 और भूमि सुधार में इसकी भूमिका:

    • राज्य को सार्वजनिक कल्याण के लिये मुआवजे के साथ निजी संपत्ति का अधिग्रहण करने की अनुमति दी गई।
    • जमींदारी प्रथा को समाप्त कर न्यायसंगत भूमि वितरण सुनिश्चित किया गया।
    • कुछ व्यक्तियों के बीच भूमि के संकेंद्रण को रोकने के लिये भूमि हदबंदी कानून को लागू करने में सहायता की।
    • भूमिहीन किसानों को भूमि वितरित करना सुनिश्चित करके कृषि सुधारों को मज़बूत किया गया।

    चुनौतियाँ और संघर्ष:

    • भूस्वामियों ने संपत्ति अधिकारों के उल्लंघन का हवाला देते हुए भूमि अधिग्रहण कानूनों को चुनौती दी।
    • न्यायपालिका ने प्रायः भूमि सुधार कानूनों को रद्द कर दिया, जिससे न्यायसंगत भूमि वितरण में बाधा उत्पन्न हुई।
    • अनुच्छेद 31 में मुआवजे के प्रावधानों के कारण लंबी मुकदमेबाज़ी के कारण भूमि अधिग्रहण में देरी हुई।
    • कामेश्वर सिंह मामले (1952) में सर्वोच्च न्यायालय ने संपत्ति के अधिकारों के उल्लंघन का हवाला देते हुए जमींदारी उन्मूलन कानूनों को अमान्य करार दिया।

    संशोधनों के माध्यम से राज्य नियामक शक्तियों को सशक्त करना:

    • प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951: भूमि सुधार कानूनों को न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिये अनुच्छेद 31A और अनुच्छेद 31B जोड़े गए।
    • चौथा संविधान संशोधन अधिनियम, 1955: राज्य को मुआवज़ा तय करने की अनुमति दी गई, जिससे न्यायिक हस्तक्षेप कम हो गया।
    • सत्रहवाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1964: अनुच्छेद 31B की नौवीं अनुसूची का विस्तार किया गया, जिससे अतिरिक्त भूमि सुधार कानूनों की सुरक्षा की गई।
    • 44वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1978: संपत्ति को अनुच्छेद 31 से हटा दिया गया, जिससे संपत्ति अनुच्छेद 300 A के तहत एक कानूनी अधिकार बन गया।

    अनुच्छेद 31 से संपत्ति अधिकार को निरस्त करने का प्रभाव:

    • भूमि सुधारों पर राज्य की शक्ति मज़बूत हुई, जिससे न्यायसंगत भूमि पुनर्वितरण सुनिश्चित हुआ।
    • मुआवजे पर लंबी कानूनी विवाद को रोका गया,  अवसंरचनात्मक परियोजनाओं और शहरीकरण में तेज़ी लाई गई।
    • एसईज़ेड, औद्योगीकरण और ग्रामीण विकास परियोजनाओं के लिये न्यायिक बाधाओं में कमी आई।
    • तथापि, राज्य द्वारा मनमाने ढंग से अधिग्रहण किये जाने के कारण विस्थापन और अपर्याप्त मुआवजे को लेकर चिंताएँ उभरीं हैं।

    निष्कर्ष:

    अनुच्छेद 31 ने भूमि सुधारों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन कानूनी चुनौतियों ने इसकी प्रभावशीलता को कमज़ोर कर दिया। 44वें संविधान संशोधन के तहत इसके निरस्तीकरण से राज्य की विनियामक शक्तियाँ बढ़ गईं, जिससे भूमि पुनर्वितरण और आर्थिक विकास सुनिश्चित हुआ। हालाँकि, अनुच्छेद 31C के प्रावधान, अनुच्छेद 14 और 19 के तहत मौलिक अधिकारों पर प्रभावी होने के कारण, नागरिकों को अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण से बचाने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं, साथ ही समान विकास तथा बुनियादी ढाँचे के विस्तार को बढ़ावा देना भी आवश्यक है।

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