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06 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस- 82: भारत में आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के पेटेंट कराने से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? इन्हें संरक्षित करने में जैविक विविधता अधिनियम और बौद्धिक संपदा अधिकार कानून की क्या भूमिका है? (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में आनुवंशिक संसाधन (GR) और पारंपरिक ज्ञान (TK) तथा उनके महत्त्व को परिभाषित कीजिये।
- GR और TK को पेटेंट कराने में आने वाली चुनौतियों और कानूनी सुरक्षा उपायों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
आनुवंशिक संसाधन (GR) औषधीय पौधों और कृषि फसलों जैसी जैविक सामग्रियों को संदर्भित करते हैं, जबकि पारंपरिक ज्ञान (TK) में जैवविविधता से जुड़ी स्वदेशी ज्ञान प्रणालियाँ शामिल हैं। उनके आर्थिक और सांस्कृतिक महत्त्व के बावजूद, उन्हें पेटेंट कराने में बायोपाइरेसी, कमज़ोर दस्तावेज़ीकरण तथा मज़बूत वैश्विक कानूनी ढाँचों की कमी के कारण बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
मुख्य भाग:
भारत में आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने में चुनौतियाँ:
- बायोपाइरेसी और दुरुपयोग: विदेशी संस्थाएँ स्वदेशी योगदान को मान्यता दिये बिना या उचित लाभ-साझाकरण सुनिश्चित किये बिना टीके-आधारित उत्पादों का पेटेंट कराती हैं (उदाहरण के लिये, नीम, हल्दी, बासमती पेटेंट मामले)।
- दस्तावेज़ीकरण का अभाव: कई टीके प्रणालियाँ मौखिक रूप से प्रसारित की जाती हैं, जिससे निगमों द्वारा ज्ञान की हानि या दुरुपयोग का जोखिम बढ़ जाता है।
- एक मज़बूत वैश्विक कानूनी ढाँचे का अभाव: WTO-ट्रिप्स GR और टीके की उत्पत्ति के प्रकटीकरण को अनिवार्य नहीं करता है, जिससे अनधिकृत वाणिज्यिक शोषण को बढ़ावा मिलता है।
- किसानों पर प्रभाव: बहुराष्ट्रीय निगम पौधों की किस्मों का पेटेंट कराते हैं, जिससे पारंपरिक बीज-बचत प्रथाओं पर प्रतिबंध लगता है (उदाहरण के लिये, मोनसेंटो का बीटी कॉटन मामला )।
- जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता हानि: पर्यावरणीय क्षरण उन पारिस्थितिक तंत्रों के लिये खतरा उत्पन्न करता है जो आनुवंशिक विविधता और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कानूनी सुरक्षा उपाय: जैविक विविधता अधिनियम, IPR कानून और WIPO संधि (2024):
- बौद्धिक संपदा, आनुवंशिक संसाधन और संबद्ध पारंपरिक ज्ञान पर WIPO संधि (2024):
- आनुवंशिक संसाधनों के मूल देश और पारंपरिक ज्ञान प्रदान करने वाले स्वदेशी लोगों या स्थानीय समुदाय के पेटेंट प्रकटीकरण को अनिवार्य बनाता है।
- पेटेंट में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और निष्पक्ष लाभ-साझाकरण तंत्र को मज़बूत करता है।
- जैवविविधता अधिनियम, 2002:
- जैविक संसाधनों तक पहुँच को नियंत्रित करता है और अनधिकृत पेटेंट को रोकता है।
- राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण (NBA) पहुँच तथा लाभ-साझाकरण (ABS) प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करता है।
- पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL):
- एक डिजिटल डाटाबेस जिसने गलत पेटेंटों को सफलतापूर्वक रोका है (उदाहरण के लिये, अमेरिका में हल्दी के घाव भरने का पेटेंट रद्द कर दिया गया )।
- पेटेंट अधिनियम, 1970:
- पेटेंट आवेदनों में GR और टीके का खुलासा आवश्यक है, जिससे बायोपाइरेसी को रोका जा सके।
- पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001:
- पारंपरिक बीज किस्मों और प्रजनन प्रथाओं पर किसानों के अधिकारों को मान्यता देता है।
- भौगोलिक संकेत (GI) अधिनियम, 1999:
- क्षेत्र-विशिष्ट टीके-आधारित उत्पादों ( दार्जिलिंग चाय, मैसूर चंदन) पर सामूहिक अधिकार प्रदान करता है।
- वन अधिकार अधिनियम, 2006:
- जनजातीय समुदायों को वन संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिये सशक्त बनाता है।
निष्कर्ष:
WIPO संधि (2024) टीके और GR की वैश्विक मान्यता को मज़बूत करती है, जो भारत के कानूनी सुरक्षा उपायों का पूरक है। उन्हें और अधिक संरक्षित करने के लिये, भारत को सतत् उपयोग के लिये नीतियों में जागरूकता और एकीकरण को बढ़ावा देते हुए अनुसंधान, संरक्षण और उचित लाभ-साझाकरण को बढ़ाना चाहिये।