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14 Jan 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस- 38: केन-बेतवा लिंक परियोजना (KBLP) को जल संकट, बाढ़ प्रबंधन और सिंचाई चुनौतियों के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस पर आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- केन-बेतवा लिंक परियोजना (KBLP) और इसके उद्देश्यों का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- उदाहरणों और आँकड़ों के साथ संभावित लाभों एवं चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।
- स्थिरता पर बल देते हुए संतुलित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष निकालिये।
परिचय:
राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) 1980 के तहत, राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) ने व्यवहार्यता रिपोर्ट के लिये 30 लिंक (प्रायद्वीपीय घटक के तहत 16 और हिमालयी घटक के तहत 14) की पहचान की है। केन-बेतवा लिंक परियोजना (KBLP) इस योजना के तहत एक प्रमुख पहल है, जो सूखे को संबोधित करती है और बुंदेलखंड में क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देती है।
मुख्य भाग:
संभावित लाभ:
- जल उपलब्धता सुनिश्चित करना: KBLP का उद्देश्य मध्य प्रदेश में केन नदी से अधिशेष जल को उत्तर प्रदेश में बेतवा नदी में स्थानांतरित करना है, जिससे 22 ज़िलों के 6.2 मिलियन लोगों को विश्वसनीय पेयजल आपूर्ति मिल सके।
- इससे बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में लंबे समय से व्याप्त जल की कमी दूर होगी।
- सिंचाई और कृषि को बढ़ावा: प्रतिवर्ष 6.3 लाख हेक्टेयर सिंचाई कवरेज के साथ, इस परियोजना से 2,000 गाँवों को लाभ मिलेगा तथा किसानों के लिये जल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
- सिंचाई की विश्वसनीयता से कृषि उत्पादकता में वृद्धि होगी, मानसून पर निर्भरता घटेगी और सूखे के कारण होने वाले पलायन को रोकते हुए ग्रामीण आजीविका में सुधार किया जा सकेगा।
- नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न करना: यह परियोजना 103 मेगावाट जल विद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न करेगी, जिससे भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि होगी तथा गैर-नवीकरणीय स्रोतों पर निर्भरता कम होगी।
- बाढ़ के जोखिम को कम करना: केन नदी से अतिरिक्त पानी को बेतवा नदी में प्रवाहित करके, परियोजना बाढ़ और सूखे की दोहरी समस्या का समाधान करती है तथा बेहतर जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करती है।
- क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा: ऐतिहासिक रूप से सूखाग्रस्त और अविकसित बुंदेलखंड को इससे काफी लाभ होगा।
- उन्नत जल उपलब्धता आर्थिक विकास को गति देगी, औद्योगिक विस्तार को प्रोत्साहन देगी और रोज़गार के नए अवसर सृजित करेगी, जिससे क्षेत्रीय असमानताएँ कम करने में मदद मिलेगी।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ:
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: इस परियोजना के कारण पन्ना टाइगर रिज़र्व के मुख्य क्षेत्र का 10% से अधिक हिस्सा जलमग्न हो सकता है, जिससे बाघों, गिद्धों और अन्य प्रजातियों के लिये महत्त्वपूर्ण आवासों पर गंभीर खतरा उत्पन्न होगा।
- इसके अतिरिक्त, निर्माण कार्यों के लिये 23 लाख पेड़ों की कटाई से वनों की हानि और पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ने का गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- वन्यजीव विस्थापन और पारिस्थितिकी तंत्र व्यवधान: नदी पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन से मत्स्य आबादी और जलीय जैवविविधता प्रभावित हो सकती है, जिससे इन संसाधनों पर निर्भर समुदायों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
- उच्च वित्तीय लागत: परियोजना की अनुमानित लागत 44,605 करोड़ रुपए है, जो एक महत्त्वपूर्ण वित्तीय बोझ है, जिससे लागत-लाभ दक्षता पर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, विशेष रूप से इस तरह के बड़े पैमाने के बुनियादी ढाँचे परियोजनाओं के लिये।
- सामाजिक एवं कानूनी मुद्दे: इस परियोजना में स्थानीय समुदायों का विस्थापन शामिल है, जिससे उनकी आजीविका और सामाजिक स्थिरता प्रभावित होती है।
- इसके अलावा, राज्यों के बीच जल बँटवारे को लेकर संभावित विवाद अंतर्संयोजन परियोजनाओं के कार्यान्वयन को जटिल बना सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण अनिश्चितता: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में बदलाव और अधिशेष नदियों में जल उपलब्धता में कमी के चलते, अंतर्संयोजन परियोजनाओं की प्रभावशीलता समय के साथ घट सकती है, जिससे उनकी दीर्घकालिक स्थिरता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।
निष्कर्ष:
भारत में जल और सिंचाई संबंधी चुनौतियों के समाधान के लिये नदियों को आपस में जोड़ना, जैसे केन-बेतवा लिंक परियोजना, एक संभावित उपाय प्रस्तुत करता है। हालाँकि ऐसी परियोजनाओं को विकास के लाभों को पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय के साथ संतुलित करना अनिवार्य होगा। स्थायी और अनुकूली दृष्टिकोण, जिसे मज़बूत सुरक्षा उपायों एवं सहकारी शासन का समर्थन प्राप्त हो, इस परियोजना की सफलता सुनिश्चित करने तथा इसके संभावित प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।