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20 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-17: कबीर और गुरु नानक ने निर्गुण भक्ति आंदोलन के माध्यम से अपने युग की धार्मिक रूढ़ियों और सामाजिक असमानताओं को कैसे चुनौती दी? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- निर्गुण भक्ति आंदोलन का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- अपने समय की धार्मिक रूढ़िवादिता को चुनौती देने में कबीर और गुरु नानक के योगदान का उल्लेख कीजिये।
- अधिक समावेशी समाज की नींव रखने में उनकी विरासत को मान्यता देते हुए निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भक्ति आंदोलन की निर्गुण शाखा एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक और धार्मिक आंदोलन थी, जिसने निराकार, अव्यक्त ईश्वर के प्रति भक्ति पर ज़ोर दिया, जिसे अक्सर निर्गुण (गुण रहित) कहा जाता है। इस आंदोलन से जुड़े दो सबसे प्रमुख व्यक्ति कबीर और गुरु नानक थे, जिनकी शिक्षाओं ने निर्गुण शाखा के विकास और प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
मुख्य भाग:
निर्गुण भक्ति आंदोलन में कबीर का योगदान:
- कर्मकांड और मूर्तिपूजा का खंडन: कबीर ने मूर्ति पूजा और कर्मकांडवादी धर्म की प्रचलित प्रथाओं का कड़ा विरोध किया, जिसे वे सच्चे आध्यात्मिक मार्ग से भटकाने वाला मानते थे।
- कबीर की कविता में अक्सर ईश्वर के साथ व्यक्तिगत संबंध की बात की जाती थी, जो कर्मकांडीय धर्म की बाधाओं से मुक्त था।
- कबीर का यह दोहा, " पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोई; ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होई" प्रेम और भक्ति के बिना कर्मकांडीय ज्ञान की निरर्थकता को रेखांकित करता है।
- सार्वभौमिकता और सामाजिक सुधार: उन्होंने जाति व्यवस्था को खारिज कर दिया और आध्यात्मिक समतावाद का समर्थन किया, जहाँ सभी मनुष्य, उनकी सामाजिक या धार्मिक पृष्ठभूमि की चिंता किये बिना, भगवान के समक्ष समान थे।
- कबीर के अनुयायियों, जिन्हें कबीरपंथी के नाम से जाना जाता है, में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक पृष्ठभूमि के लोग शामिल थे।
- भक्ति के माध्यम के रूप में कविता और गीत: उनके भजन, जिन्हें “कबीर के दोहे" के रूप में जाना जाता है, सरल लेकिन गहन हैं, जो अक्सर गहन आध्यात्मिक सत्य और समकालीन धार्मिक प्रथाओं की आलोचना व्यक्त करते हैं।
- उनके भजनों को बाद में सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया, जो उनके विचारों के स्थायी प्रभाव को दर्शाता है।
निर्गुण भक्ति आंदोलन में गुरु नानक का योगदान:
- एक ईश्वर और मूर्तियों की अस्वीकृति: गुरु नानक की शिक्षाओं में एकल, निराकार ईश्वर की पूजा पर ज़ोर दिया गया।
- इक ओंकार (एक ईश्वर) की उनकी अवधारणा सिख धर्मशास्त्र का केंद्र थी और निर्गुण दर्शन के साथ निकटता से जुड़ी हुई थी।
- उन्होंने घोषणा की: "कोई हिंदू नहीं है, कोई मुसलमान नहीं है; सभी एक हैं, एक ही ईश्वर द्वारा बनाए गए हैं", दिव्य उपस्थिति की सार्वभौमिकता पर ज़ोर दिया।
- समानता और सामाजिक न्याय: गुरु नानक ने जाति व्यवस्था और सामाजिक असमानताओं का कड़ा विरोध किया। लंगर (सामुदायिक रसोई) और संगत (सामूहिक पूजा) जैसी पहलों के माध्यम से, उन्होंने एक समावेशी समाज को बढ़ावा दिया, जहाँ सभी वर्गों के लोग एक साथ भोजन करते थे और एक साथ पूजा करते थे।
- ईश्वर के साथ आध्यात्मिक संबंध: गुरु नानक ने ध्यान, प्रार्थना और सेवा के माध्यम से निराकार ईश्वर के साथ सीधे व्यक्तिगत संपर्क पर ज़ोर दिया।
- गुरु नानक की शिक्षाओं ने सिख धर्म की नींव रखी, जो तीन मूल सिद्धांतों पर केंद्रित थी:
- नाम जपना: भगवान के नाम का ध्यान करना।
- किरात कर्ण: ईमानदार श्रम और नैतिक जीवन।
- वंड छकना: दूसरों के साथ साझा करना और सामुदायिक कल्याण को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष:
कर्मकांडों, मूर्तिपूजा और सामाजिक असमानताओं को नकारते हुए, निराकार ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति पर ज़ोर देकर कबीर तथा गुरु नानक ने एक समावेशी एवं समानतावादी आध्यात्मिक परंपरा की नींव रखी, जो सभी जातियों और वर्गों को समान मानते हुए उन्हें एक साझा धार्मिक तथा सामाजिक जीवन की दिशा में मार्गदर्शन करती है। कविता, भजन और गीतों के माध्यम से कबीर तथा नानक द्वारा दी गई शिक्षाएँ धार्मिक एवं सांस्कृतिक सीमाओं से परे फैल गईं और आज भी लोगों के मन में गूंजती हैं। इन शिक्षाओं ने निर्गुण भक्ति आंदोलन को भारत की आध्यात्मिक धरोहर का एक स्थायी और महत्त्वपूर्ण भाग बना दिया है, जो समानता, समावेशिता तथा एकता के मूल्यों को प्रकट करता है।