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26 Dec 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस-22: भारतीय पुनर्जागरण जातिगत भेदभाव, बाल विवाह और महिलाओं की स्थिति जैसे सामाजिक सुधार आंदोलनों से गहराई से जुड़ा हुआ था। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय पुनर्जागरण का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- उन सामाजिक सुधार आंदोलनों पर चर्चा कीजिये जिनमें जातिगत भेदभाव, बाल विवाह और महिलाओं की स्थिति जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया गया।
- इन आंदोलनों की चुनौतियों और सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
- इन सुधार आंदोलनों की वर्तमान प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारतीय पुनर्जागरण, 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में सांस्कृतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक जागृति का काल था, जो भारतीय समाज में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का समय था। यह आंदोलन सामाजिक सुधार पहलों के साथ गहराई से जुड़ा हुआ था, जिसका उद्देश्य जातिगत भेदभाव, बाल विवाह और महिलाओं की स्थिति जैसे प्रचलित सामाजिक अन्याय को संबोधित करना था।
मुख्य भाग:
जातिगत भेदभाव: राजा राम मोहन राय, ज्योतिराव फुले और डॉ. बी.आर. अंबेडकर जैसे समाज सुधारकों ने कठोर जाति व्यवस्था को खत्म करने तथा सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिये आंदोलनों का नेतृत्व किया।
- ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राम मोहन राय जाति-आधारित भेदभाव के उन्मूलन के प्रबल समर्थक थे। वे सभी धर्मों की एकता में विश्वास करते थे और तर्कवाद एवं सामाजिक सुधार के महत्त्व पर ज़ोर देते थे।
- महाराष्ट्र के एक प्रमुख सुधारक ज्योतिराव फुले ने ब्राह्मण वर्ग के प्रभुत्व को चुनौती दी और विशेष रूप से शिक्षा के माध्यम से निचली जातियों के उत्थान का समर्थन किया।
- फुले ने वर्ष 1873 में सत्यशोधक समाज (सत्य शोधक समाज) की स्थापना की, इस समाज का नेतृत्व पिछड़े वर्गों, माली, तेली, कुनबी, साड़ी और धनगर से आता था।
- ई.वी. रामास्वामी नायकर ने आत्म-सम्मान आंदोलन का नेतृत्व करते हुए मांग की कि मंदिरों में निचली जातियों के प्रवेश पर प्रतिबंध हटाया जाए।
- हाशिये पर पड़े समुदायों के अधिकारों के लिये लड़ने वाले डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करके एक कदम आगे बढ़ाया, जिसने कानूनी रूप से अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया और निचली जातियों के लिये सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया।
- बाल विवाह: बाल विवाह एक और महत्त्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था जिसे भारतीय पुनर्जागरण के दौरान सुधारकों ने संबोधित करने का प्रयास किया। इस प्रथा ने युवा लड़कियों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास को बुरी तरह से बाधित किया और लैंगिक असमानता को बढ़ावा दिया।
- राजा राम मोहन राय बाल विवाह के विरोध में अग्रणी थे और उन्होंने सहमति आयु अधिनियम (1891) का समर्थन किया, जिसने विवाह के लिये सहमति की कानूनी आयु बढ़ा दी गई, जो कम उम्र में विवाह से युवा लड़कियों की रक्षा करने में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
- पारसी सुधारक बी.एम. मालाबारी के अथक प्रयासों का परिणाम सहमति आयु अधिनियम (1891) के अधिनियमन के रूप में हुआ, जिसने 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया।
- 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम ने विवाह के लिये न्यूनतम कानूनी आयु निर्धारित करके इन सुधारों को और मज़बूत किया, जिससे बाल विवाह पर अंकुश लगाने में मदद मिली।
- महिलाओं की स्थिति और सशक्तीकरण: महिलाओं की स्थिति की समस्या भारतीय पुनर्जागरण की केंद्रीय समस्या थी, जिसमें सुधारकों ने महिलाओं की शिक्षा, स्वतंत्रता और सामाजिक अधिकारों का समर्थन किया।
- राजा राममोहन राय के नेतृत्व में प्रबुद्ध भारतीय सुधारकों द्वारा शुरू किये गए आक्रमण से प्रभावित होकर, गवर्नर-जनरल विलियम बेंटिक के अधीन सरकार ने सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया तथा आपराधिक अदालतों द्वारा इसे गैर-इरादतन हत्या के रूप में दंडनीय घोषित कर दिया।
- यह मुख्य रूप से कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर (1820-91) के प्रयासों के कारण था कि हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 पारित किया गया; इसने विधवाओं के विवाह को वैधानिक बना दिया और ऐसे विवाहों से उत्पन्न बच्चों को वैध घोषित कर दिया।
- वर्ष 1916 में प्रोफेसर डी.के. कर्वे द्वारा स्थापित भारतीय महिला विश्वविद्यालय महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने वाले उत्कृष्ट संस्थानों में से एक था।
- पंडिता रमाबाई सरस्वती ने महिलाओं के हित के लिये आर्य महिला समाज की स्थापना की।
चुनौतियाँ और सीमाएँ: भारतीय पुनर्जागरण के दौरान हुई प्रगति के बावजूद, इन सुधार आंदोलनों को महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- रूढ़िवादी तत्त्वों का प्रतिरोध: परंपरावादियों ने, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, इन सुधारों का कड़ा विरोध किया, क्योंकि उन्हें स्थापित रीति-रिवाज़ों और सत्ता संरचनाओं के लिये एक खतरा माना जाता था।
- परिवर्तन की धीमी गति: सामाजिक परिवर्तन की गति धीमी थी, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, जहाँ जातिगत भेदभाव और बाल विवाह जैसी गहरी जड़ें जमाई प्रथाएँ अभी भी जारी थीं।
- अपूर्ण सामाजिक एकीकरण: यद्यपि कानूनी सुधारों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई, लेकिन महिलाओं और निचली जातियों का पूर्ण एकीकरण तथा समानता अभी भी एक दूर का लक्ष्य था, क्योंकि सामाजिक मानदंडों एवं दृष्टिकोणों को बदलने में अधिक समय लगा।
निष्कर्ष:
इन आंदोलनों ने परिवर्तनकारी सामाजिक और कानूनी सुधारों के लिये आधार तैयार किया, जिसने आधुनिक भारतीय समाज को महत्त्वपूर्ण रूप से आकार दिया है, जिसमें नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 जैसे कानून सामाजिक एवं राजनीतिक समानता को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में काम कर रहे हैं।